शुक्रवार को पाकिस्तान में स्थित गुरु नानक देव के जन्मस्थान से कुछ बेहद ही भयानक तस्वीरें सामने आई। मुसलमानों की हिंसक भीड़ ने गुरुद्वारा को घेरते हुए जमकर पत्थरबाजी की। इस भीड़ की अगुवाई करने वाले एक दंगाई ने ये भी कहा कि इस स्थान पर बसे हर सिख को यहाँ से न सिर्फ भगाया जाएगा, बल्कि गुरुद्वारे को तोड़कर नगर का नाम ‘ग़ुलाम ए मुस्तफा’ रखा जाएगा इस घटना ने न सिर्फ पाकिस्तान के कट्टरपंथी स्वभाव को उजागर किया है, बल्कि इसने ISI द्वारा वित्तपोषित खालिस्तानियों और उनके रेफरेंडम 2020 गैंग की भी पोल खोल दी है। ये लोग चीख-चीख कर भारत में सिखों पर हो रहे कथित अत्याचारों के बारे में बताते रहते हैं, पर पाकिस्तान में सिखों पर वास्तव में हो रहे अत्याचारों पर ऐसे मौन धारण करते हैं, मानो उनकी ज़ुबान को लकवा मार गया हो।
#BREAKING : Hundreds of angry Muslim residents of #NankanaSahib pelted stones on #GurdwaraNankanaSahib on Friday. They have surrounded the Gurdwara . The mob was lead by the family of Mohammad Hassan the boy who allegedly abducted and converted sikh girl #JagjitKaur . pic.twitter.com/L5A7ggKcD9
— Ravinder Singh Robin ਰਵਿੰਦਰ ਸਿੰਘ رویندرسنگھ روبن (@rsrobin1) January 3, 2020
जिस देश में सिखों को हमेशा सम्मान की दृष्टि से देखा गया, उस भारत से खालिस्तानियों को बहुत नफरत है, परंतु जिस देश में हमेशा सिखों को हर तरह से प्रताड़ित किया गया, उस पाकिस्तान से इन खालिस्तानियों का पता नहीं कैसा आकर्षण है। शायद यही कारण था कि खालिस्तानी समर्थक नेता गोपाल सिंह चावला जब घटनास्थल पर पहुंचे, तो उन्होने मीडिया वालों को अपने कैमरा बंद करने को कहा। सिख समुदाय पर हिंसक भीड़ हमला कर रही थी, पर इनके लिए प्रथम प्राथमिकता यह थी कि पाकिस्तान की यह सच्चाई दुनिया को, विशेषकर भारत के सिख समुदाय को न पता चले। उनके एजेंडे पर सिख समुदाय का हित तो बिलकुल नहीं था।
खालिस्तानियों ने कई बार पाकिस्तान और आईएसआई को अपनी वफादारी के कई बार प्रमाण दिये, और अनुच्छेद 370 के विशेषाधिकार संबंधी प्रावधान निरस्त होने पर भारतीय दूतावास के सामने पाकिस्तान द्वारा प्रायोजित हिंसक प्रदर्शनों में हिस्सा लेने से बढ़िया उदाहरण क्या हो सकता है। पर पाकिस्तान के खालिस्तानी केवल उनके शतरंज के क्षेत्र के प्यादे मात्र हैं, जिनका काम उनकी तथाकथित ‘भारत को हज़ार घावों’ से रक्तरंजित करने की नीति को सफल करना मात्र ही है। पूर्व आईएसआई प्रमुख हामिद गुल ने एक बार तत्कालीन प्रधानमंत्री बेनज़ीर भुट्टो को कहा था, “मैडम, पंजाब को अस्थिर बनाए रखना पाकिस्तान की सेना के एक अतिरिक्त डिविजन को नियुक्त करने के बराबर है, जिसमें करदाताओं के लिए किसी भी कीमत पर दुखदाई नहीं है।”
सच कहें तो पंजाब में खालिस्तानी आतंकवाद के कारण 1981 के बाद से 12,000 नागरिकों की मौत के अलावा कई सैकड़ों सुरक्षाकर्मियों के हताहत की खबरें भी आई। खालिस्तानियों ने इस प्रकार से पंजाब राज्य में अशांति फैलाने की पाकिस्तानी रणनीति का शिकार होकर पाकिस्तान और आईएसआई के हाथों का मोहरा बन चुके थे।
अब जब पंजाब आतंकवाद से फिलहाल के लिए मुक्त है, तब भी आईएसआई द्वारा प्रायोजित खालिस्तान पंजाब में आतंकवाद को बढ़ावा देने के लिए हर संभव प्रयास करने की कोशिश कर रहा है। पाकिस्तान के साथ हाथ मिलाते हुए, खालिस्तानियों एक बार फिर पंजाब में आतंकी हमले करने की कोशिश की है। जिस बात को वे स्वीकार नहीं करते (या स्वीकार नहीं करना चाहते हैं)वह यह है कि भारत एकमात्र ऐसा देश है जो सिख समुदाय की न केवल बात करता है बल्कि उसकी देखभाल करता है। दूसरी ओर, पाकिस्तान ने स्वतन्त्रता के पश्चात से सिख समुदाय को व्यवस्थित रूप से सताया है।
जब से पंजाब में आतंकवाद पर नियंत्रण पाने में सफलता मिली है, पाकिस्तान भारत में सिख युवाओं के दिमाग में घुसने में असमर्थ रहा है। यह ज्यादातर विदेशों में बसे खालिस्तानी ही हैं, जो भारत विरोधी प्रचार में लिप्त हैं और पंजाब राज्य में अलगाववादी भावना को पुनर्जीवित करने की कोशिश कर रहे हैं। पाकिस्तान ने करतारपुर कॉरीडोर को धार्मिक सौहार्द के लिए नहीं, परंतु सिख भावनाओं का फायदा उठाने, और सिखों को भारत विरोधी प्रचार से उकसाने के लिए एक सुनहरे अवसर के तौर पर खुलवाया था। पंजाब के पूर्व डीजीपी शशि कांत की माने तो आईएसआई के गुर्गों ने सिखों की भावनाओं का दुरुपयोग करने के उद्देश्य से सिख तीर्थयात्रियों के साथ खुलकर बातचीत की।
जबकि इमरान खान ने करतारपुर कॉरिडोर खुलवाकर अपने आप को सिखों के मसीहा के रूप में प्रोजेक्ट करने की कोशिश की, तो इस प्रोपगैंडा में भारत के तथाकथित बुद्धिजीवी एवं नवजोत सिंह सिद्धू जैसे अवसरवादी नेता भी शामिल हुए। हालांकि, प्रो-खालिस्तान और करतारपुर साइट पर खालिस्तानी नेता जरनैल सिंह भिंडरावाले के पोस्टरों ने सिखों के प्रति पाकिस्तान के वास्तविक इरादों को उजागर किया था। पाकिस्तान के एक पूर्व सेना प्रमुख ने भी पाकिस्तान के नापाक मंसूबों पर पानी फेरते हुए स्वीकार किया था कि पाकिस्तान खालिस्तान आतंक के लिए करतारपुर का इस्तेमाल करना चाहता था।
ननकाना साहिब में सिख तीर्थयात्रियों पर जानलेवा हमला स्पष्ट करता है कि सिखों के प्रति इमरान खान कितने सहिष्णु है। पाकिस्तान यूं तो खालिस्तान का समर्थक है, लेकिन सिख धर्म के खिलाफ सीना तान के खड़ा है। खालिस्तानियों को भी केवल पाकिस्तान और आईएसआई के प्रति वफादार माना गया है। सिख समुदाय के हितों वास्तव में उनके लिए कोई मायने नहीं रखते। जिस तरह से ननकाना साहिब पर इस हमले पर खालिस्तानी मौन है, वह उनके पाखंडी अभियान की वास्तविकता को उजागर करता है।