“कुछ लोग बाहर से आए, खुद के रिश्तेदारों को मारा, ये भारत का इतिहास नहीं है’, PM मोदी ने मार्क्सवादी इतिहासकारों को लताड़ा

मोदी

(PC: PTI)

CAA पर विरिधियों को पस्त करने के बाद पीएम मोदी ने कल देश के उन तथाकथित बुद्धिजीवी वर्ग को आड़े-हाथों लिया जिसने सदियों तक देश के इतिहास के साथ छेड़छाड़ कर भारतवासियों को गुमराह करने की कोशिश की। पीएम मोदी ने कहा कि “यह बहुत दुर्भाग्यपूर्ण रहा कि अंग्रेजी शासन के दौरान और स्वतंत्रता के बाद भी देश का जो इतिहास लिखा गया, उसमें इतिहास के कुछ अहम पक्षों को नजरअंदाज कर दिया गया”। दो दिवसीय दौरे पर पश्चिम बंगाल की राजधानी कोलकाता पहुंचे प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने बंगाल की संस्कृति और इतिहास के जरिए ‘राष्ट्रवादी अभियान’ की शुरुआत करने के मौके पर ये बात कही। आज़ादी के बाद ऐसा पहली बार होगा जब किसी प्रधानमंत्री ने सीधे तौर पर इन मार्क्सवादी इतिहासकारों के खिलाफ कुछ बोला हो।

पीएम मोदी ने बातों ही बातों में नेहरूवादी और लेफ्ट के इतिहासकारों को भी लपेटे में लिया और उन्हें बाहरी बताया। रबीन्द्रनाथ टैगोर के एक बयान का हवाला देते हुए उन्होंने कहा “गुरुदेव ने अपने एक लेख में एक बहुत महत्वपूर्ण उदाहरण भी दिया था- आंधी और तूफान का। उन्होंने लिखा था कि चाहे जितने भी तूफान आए, उससे भी ज्यादा अहम होता है कि संकट के उस समय में, वहां के लोगों ने उस तूफान का सामना कैसे किया। गुरुदेव टैगोर ने 1903 के अपने लेख में लिखा था कि भारत का इतिहास वो नहीं है जो हम परीक्षाओं के लिए पढ़ते हैं, कुछ लोग बाहर से आए, पिता बेटे की हत्या करता रहा, भाई-भाई को मारता रहा, सिंहासन के लिए संघर्ष होता रहा, ये भारत का इतिहास नहीं है”।

भारतीय इतिहास के साथ छेड़-छाड़ का इतिहास बहुत पुराना रहा है। पहले 800 सालों तक मुग़लों ने देश पर राज किया और फिर मुस्लिम शासकों ने, इन सब ने भारत के इतिहास के तथ्यों को तोड़-मरोड़कर पेश किया और असल इतिहास की शान को कम करने की कोशिश की। अपने द्वारा रचित इतिहास को ही आधिकारिक रूप दिया।

मुग़लों के बाद जब भारत पर ब्रिटिश राज आया, तो उन्होंने अपने हिसाब से इतिहास को लिखना शुरू किया। यहाँ तक कि देश की शिक्षा प्रणाली को भी दूषित कर दिया गया। शिक्षा प्रणाली को इस तरह तैयार किया गया कि उसे पढ़ने के बाद सभी ब्रिटिश साम्राज्य के अनुकूल ही काम कर सकें। इसके लिए कई कमीशन भी स्थापित किए गए थे।

भारत में पश्चिमी शिक्षा को लाने वाले ब्रिटिश लॉर्ड टीबी मैकाले ने भी इस बात को स्वीकार किया था। उन्होंने स्वयं कहा था कि ‘हम अंग्रेज़ी बोलने वालों का एक ऐसा वर्ग तैयार करें जो हमारे और शासित लोगों के बीच पुल का काम करें। उनका रंग और खून तो भारतीय हो, पर सोच, नैतिकता और बुद्धिमता अंग्रेजों के मुक़ाबिल हो।’ मैकाले का यह भी मानना था कि अंग्रेज़ अपने सीमित साधनों से इस महासागर को शिक्षित नहीं कर पाएंगे। लिहाज़ा, उसने सुझाव दिया कि अंग्रेजी बोलने वाले भारतीयों को यह काम दिया जाये कि वे हिंदुस्तान की बोलियों और भाषाओं के भीतर पश्चिम के वैज्ञानिक तथ्य और जानकारी मिलाकर यहां के लोगों को पढ़ाएं। यह बात अपने आप में मौलिक प्रतीत होती है। मैकाले समझता था कि अंग्रेजी और यहां की भाषाएं मिलकर ही भारतीयों का ज्ञान बढ़ा सकती हैं।

जब अंग्रेजों ने देश छोड़ा तो मार्क्सवादी इतिहासकारों ने देश के इतिहास को हाईजैक कर लिया। स्कूलों में इतिहास की किताबें उन्हीं इतिहासकारों के काम के आधार पर लिखी हुई हैं। ये इतिहासकर खुद मानते हैं कि वे मार्क्सवादी इतिहास को बढ़ावा देते हैं। इरफान हबीब, रोमिला थापर और सतीश चंद्रा ऐसे ही इतिहासकार रहे हैं।

भारतीय इतिहास में मुग़लों, अंग्रेजों और मार्क्सवादियों से जुड़े मुद्दों पर निष्पक्ष राय नहीं रखी गयी है। भारतीय इतिहास को भारतीय दृष्टिकोण से लिखे जाने की आवश्यकता है। यह बेहद खुशी की बात है कि पीएम मोदी सीधे तौर पर इससे जुड़े हुए हैं और वे देश के असल क्रांतिकारियों को श्रेय देने की बात कर रहे हैं।

Exit mobile version