आज से करीब 10-15 वर्ष पूर्व भारत में कार खरीदना या कार का होना एक स्टेटस सिंबल माना जाता था और यह लोगों के महत्वाकांक्षाओं में से एक था। आज ऐसा नहीं है। लोग अगर कार खरीदना चाहते हैं तो एक अच्छी कार खरीदना चाहते है। भारत में जब कार aspirations हुआ करता था तब एक कार आई थी नैनो। टाटा नैनो का नाम तो अपने सुना ही होगा जिसे लखटकिया कार भी कहा जाता है। परंतु अब यह कार बंद होने वाली वाली है।
दरअसल, कंपनी ने नैनो के प्रोडक्शन को बंद कर दिया है। शेयर बाजार को दी जानकारी में टाटा मोटर्स ने बताया कि दिसंबर, 2019 में टाटा मोटर्स ने नैनो की एक भी इकाई का प्रोडक्शन नहीं किया। इस महीने एक भी नैनो बेची नहीं गई। एक साल पहले यानी 2018 के दिसंबर महीने में टाटा मोटर्स ने 82 नैनो कार का प्रोडक्शन किया था जबकि 88 नैनो कार बिकी थीं।
वर्ष 2009 में रतन टाटा ने टाटा मोटर्स ने ”नैनो” कार को लॉन्च किया था। इससे पहले 2008 में कार को ऑटो एक्सपो में प्रदर्शित किया गया।
इस कार के बनने की कहानी की भी एक कहानी है। मुंबई में बारिश के मौसम में रतन टाटा जब अपनी गाड़ी से गुजर रहे थे तभी उनकी नज़र एक परिवार पर पड़ी। यह परिवार स्कूटर पर सवार था। तेज़ बारिश से बचने के लिए वह एक फ्लाईओवर के नीच आकर खड़ा हो गया। इस दृश्य को देखकर टाटा ने आम आदमी को का सामना करते हुए देखा। ये देखकर उन्होंने सोचा कि क्यों न एक ऐसी कार बनायीं जाए जिसे मध्यम वर्गीय लोग अफोर्ड कर सके। साथ ही, उस गाड़ी में खुद को दुपहिए वाहनों की अपेक्षा ज्यादा सुरक्षित महसूस करें।
रतन टाटा ने इसे बनाने के बारे में तो सोच लिया था लेकिन अब सबसे बड़ी चुनौती थी कि आखिर कैसे कम से कम कीमत में इसका निर्माण किया जाए।
नैनो के डिजाईन और कीमत के बारे में अभी कंपनी सोच ही रही थी कि एक पत्रकार ने रतन टाटा से इस कार की कीमत के बारे में एक इंटरव्यू लिया। जिसमें टाटा ने बोल दिया कि इसकी लागत लगभग 1 लाख रुपये होगी। उनका ये इंटरव्यू मीडिया में आग की तरह फैला और सारे मीडिया में ये ख़बरे छा गयी कि टाटा 1 लाख रुपये में कार बनाना चाहते हैं।
पहली बार में तो ये ऑटो रिक्शा से थोड़ा ही अधिक था जिसके प्रोटोटाइप में बार और ग्रिल से ही बॉडी पार्ट्स बने थे तथा उसके गेट प्लास्टिक के बने थे, लेकिन टाटा इससे खुश नहीं हुए।
कंपनी की सबसे बड़ी चुनौती थी इसे एक लाख रुपए में लोगों को उपलब्ध कराना। जिसकी वजह से ही इसके पार्ट्स को कई-कई बार डिजाईन करना पड़ा ताकि वह बजट में आ जाए। यह कार जर्मनी में डिज़ाइन हुई और यूके और इंडिया में डेवेलप हुई। लिहाज़ा, जर्मनी की बॉश ने इसे स्पार्क प्लग को मोटरसाइकिल स्पार्क प्लग के आधार पर इंजीनियर किया। कार के इंजन को पूरी तरह से एल्यूमीनियम से बनाया गया।
डिज़ाइन से लेकर निर्माण तक नैनो की यात्रा कठिन रही है। कई सारे एक्सपेरिमेंट्स के बाद आखिरकार साल 2009 में यह बनकर तैयार हो गयी। बता दें कि मूल रूप से यह कार पश्चिम बंगाल के सिंगुर में निर्मित होने वाली थी लेकिन, प्लांट के लिए जमीन अधिग्रहण में कंपनी को किसानों के विरोध का सामना करना पड़ा। मामले ने राजनीतिक रंग ले लिया। इसी दौरान इस प्लांट को लेकर वहां छोटे-मोटे आंदोलन होने लगे, जिसका बड़ा चेहरा बनी ममता बनर्जी। सिंगूर में Tata के प्लांट लगाने को लेकर ममता बनर्जी धरने पर बैठ गईं। इसके बाद टाटा को गुजरात में सानंद में इसका प्लांट लगाने का फैसला लेना पड़ा। इसके बाद रतन टाटा का सपना कही जाने वाली Tata Nano का प्लांट गुजरात में लगा। दरअसल, उस समय गुजरात के मुख्यमंत्री नरेंद्र मोदी थे, जिन्होंने Tata Motors को गुजरात में अपना प्लांट लगाने का निमंत्रण दिया था। यह सिंगूर आंदोलन ही था जिसने ममता बनर्जी की लोकप्रियता को सातवें आसमान पर पहुंचा दिया। इससे उन्होंने 24 वर्ष कम्युनिस्ट शासन का अंत कर स्वयं मुख्यमंत्री बनी।
साल 2009 में टाटा नैनो को बाज़ार में लांच किया गया। यह बाज़ार में लांच होते गिनेस बुक ऑफ़ वर्ल्ड रिकॉर्ड में अपना नाम दर्ज करने में कामयाब हो गयी और यह दुनिया की सबसे सस्ती कार मानी गयी।
वर्ष 2009 में, इस बहुप्रतीक्षित कार को दो वेरिएंट में लॉन्च किया गया: एक बेसिक मॉडल जिसकी कीमत 1,12,735 रुपये और लग्जरी वर्जन की कीमत 1,70,335 रुपये है। इससे पूरा कार उद्योग सकते में था। लॉन्च के समय टाटा मोटर्स ने प्रति वर्ष 250,000 यूनिट बेचने की योजना बनाई थी। वित्त वर्ष 2011-2012 के दौरान अब तक की अधिकतम बिक्री 74,527 यूनिट थी और इसके बाद बिक्री में साल दर साल तेजी से गिरावट आई।
लॉन्चिंग के तुरंत बाद नैनो में आग लगने के मामले सामने आए। इसका असर भी ग्राहकों पर पड़ा। रतन टाटा ने बाद में माना था कि सबसे सस्ती कार के रूप में इसे प्रचारित करना भूल थी। बाद में टाटा समूह के अध्यक्ष बने सायरस मिस्त्री ने भी इस परियोजना को सफेद हाथी बताया।
सिर्फ सुरक्षा कारण ही नहीं था बल्कि इस दौरान भारतीयों की खर्च करने की क्षमता में भी जबरदस्त वृद्धि हुई। मिडिल क्लास अब यही सोचता था कि 1.5 लाख नैनो खरीदने की बजाय, थोड़े और पैसे लगा कर एक मारुति सुजुकी अल्टो ही ले ली जाए। यह सुरक्षित भी रहेगा और अधिक स्पेस वाला भी। इसके परिणामस्वरूप, एक बार दुनिया की सबसे सस्ती कार, आज विलुप्त होने के कगार पर है।
एक साल पहले यानी 2018 के दिसंबर महीने में टाटा मोटर्स ने 82 नैनो कार का प्रोडक्शन किया था जबकि 88 नैनो कार बिकी थीं। इसी तरह नवंबर 2019 में भी कंपनी ने नैनो की एक भी कार का प्रोडक्शन और बिक्री नहीं की। एक साल पहले नवंबर, 2018 में नैनो का प्रोडक्शन 66 इकाई और बिक्री 77 इकाई रही थी। जबकि अक्टूबर में एक भी नैनो का प्रोडक्शन या बिक्री नहीं हुई।
टाटा मोटर्स ने यह भी माना हैं यह कार नए सेफ़्टी रेगुलेशन और BS IV के नियमों को पूरा नहीं कर सकती है। टाटा समूह के पूर्व अध्यक्ष साइरस मिस्त्री ने भी यह कहा था कि नैनो को डिजाइन करते समय, इससे लाभ की संभावना पर अधिक ध्यान नहीं दिया गया और इसका कारण रतन टाटा का इससे भावनात्मक जुड़ाव। अब नैनो सिर्फ डिमांड पर ही बनती है इससे यह स्पष्ट हो गया है कि इसका प्रॉडक्शन हमेशा के लिए बंद हो जाएगा। भावना से शुरू हुई इस कार का सफर सुरक्षा और मुनाफा पर जाकर समाप्त हो रहा है।