National Crime Record Bureau यानि NCRB ने वर्ष 2018 में हुए अपराधों के संबंध में अपनी विस्तृत रिपोर्ट को प्रकाशित कर दिया है। इस रिपोर्ट के आधार पर यह बात सामने आई है कि एसिड अटैक जैसे गंभीर अपराधों की श्रेणी में पश्चिम बंगाल ने टॉप रैंक हासिल किया है। इस राज्य की मुख्यमंत्री स्वयं एक महिला हैं लेकिन वे महिलाओं के खिलाफ होने वाले इस जघन्य अपराध को रोकने में असफल साबित हुई हैं। इससे पहले वर्ष 2016 में भी राज्य ने इस श्रेणी में पहला स्थान हासिल किया था, जो दिखाता है कि राज्य सरकार ने महिला सुरक्षा की स्थिति को बेहतर करने की दिशा में कोई कदम नहीं उठाए हैं।
NCRB की ताजा रिपोर्ट में कहा गया है कि एसिड हमलों के मामले में पश्चिम बंगाल ने उत्तर प्रदेश को पीछे छोड़ कर पहला स्थान हासिल कर लिया है। वर्ष 2016 में राज्य में ऐसी 83 घटनाएं हुई थीं। वर्ष 2017 में ऐसे मामलों में कुछ कमी आई और कुल 54 मामले दर्ज हुए जिससे इस राज्य की रैंकिंग 2 नम्बर पर थी, लेकिन वर्ष 2018 में 53 मामलों के साथ बंगाल सबसे टॉप पर है। लेकिन एसिड हमलों के पीड़ितों के पुनर्वास के लिए काम करने वाले संगठनों का दावा है कि यह तादाद असली घटनाओं के मुकाबले बहुत कम है। ऐसे कई मामले दर्ज ही नहीं होते। इन संगठनों का कहना है कि देश में रोजाना एसिड हमले की औसतन एक घटना होती है।
पश्चिम बंगाल में इस जघन्य अपराध की बढ़ती दरों पर चिंता जताते हुए Acid Survivors & Women Welfare Foundation के कोर्डिनेटर बताते हैं कि राज्य में पुलिस और सुरक्षा एजेंसियों द्वारा एसिड की बिक्री पर ध्यान नहीं दिया जाता है, जिसके कारण एसिड का अपराधों में दुरुपयोग किया जाता है। इसके अलावा उन्होंने यह भी कहा कि पीड़ित महिलाएं धमकी मिलने के बाद पुलिस में शिकायत दर्ज भी नहीं कराती हैं, जिसके कारण NCRB की रिपोर्ट को शत-प्रतिशत सही नहीं माना जा सकता है। उन्होंने कहा “ऐसे ज्यादातर मामलों में अभियुक्तों की ओर से पीड़िता और उसके परिजनों को पुलिस में शिकायत दर्ज नहीं कराने की धमकी दी जाती है। इस वजह से खासकर पिछड़े तबके के लोग पुलिस के पास नहीं जाते”।
ममता बनर्जी के राज में जहां एक तरफ राजनीतिक हत्याएँ देशभर में सबसे ज़्यादा पश्चिम बंगाल में हुई हैं, तो वहीं महिलाओं की सुरक्षा के प्रति भी राज्य सरकार गंभीर नहीं दिखाई देती। समस्या पुरानी है और इसका इलाज़ एक वर्ष में संभव भी नहीं, लेकिन एसिड की बिक्री को सख्ती से मॉनिटर कर ऐसी आपराधिक घटनाओं में भारी कमी लाई जा सकती है। राज्य सरकार को इसके लिए तत्परता से ठोस कदम उठाने ही होंगे।