भारत को त्योहारों का देश कहा जाता है लेकिन सही मायनों में देखें तो भारत चुनावों का देश है। एक चुनाव खत्म नहीं होता कि दूसरा शुरू हो जाता। अभी हाल ही में महाराष्ट्र, और हरियाणा में चुनाव हुये थे उसके बाद दिल्ली में हुए और अब बिहार सहित अन्य राज्यों के चुनाव के लिए तैयारियां होने लगी हैं।
बिहार में इस वर्ष के आखिरी महीनों में विधानसभा चुनाव होंगे और बिहार की राजनीतिक परिस्थियाँ आखिरी समय में भी बदल सकती हैं। पिछले विधान सभा में भी यह देखा गया था कि किस तरह धूर विरोधी पार्टियां BJP को हराने के लिए एक साथ आकर महागठबंधन कर चुकीं थी। राजनीति में गठबंधन क्रिकेट मैच के जैसा होता है यानि कभी भी कुछ भी हो सकता हैं। इस बार के चुनाव में भी अगर कुछ होता है तो आश्चर्य की बात नहीं होगी।
बिहार की राजनीति में मुख्य रूप से तीन परिस्थितियाँ बन सकती हैं। यह तीनों ही परिस्थितियाँ बिहार के मौजूदा मुख्यमंत्री नितीश कुमार पर निर्भर करता है। आइये देखते हैं क्या क्या परिस्थितियाँ बन सकती हैं।
1. जैसा है वैसा ही बना रहे
पहला केस यह है कि जो अभी परिस्थिति है वही कायम रहे यानि भाजपा और JDU साथ रहे और नितीश कुमार मुख्यमंत्री के तौर पर NDA के गठबंधन का चेहरा बने रहे। अमित शाह ने पहले ही नितीश कुमार को NDA की ओर से मुख्यमंत्री के रूप में पेश करने का निर्णय लिया है।
अगर ऐसी स्थिति बनी रहती है तो नितीश कुमार का CM बनना तय है क्योंकि तब भाजपा और JDU को टक्कर देने वाला कोई भी नहीं रहेगा। विपक्षी पार्टियां वैसे भी अस्तित्व की लड़ाई लड़ रहीं है।
परंतु राजनीति और क्रिकेट में कुछ भी निश्चित नहीं होता है। कब कौन सा पासा किधर जाए यह किसी को भी नहीं पता होता।
2. BJP नितीश को डंप कर दे! और चुनाव त्रिकोणीय हो।
ऐसी परिस्थिति बन सकती है और इसके दो कारण नजर आ रहे हैं। पहला यह कि जिस तरह से नितीश कुमार ने NRC को लेकर पहले बयान दिये हैं उससे उनके सुर विपक्षी पार्टियों से ही मिलते है। NRC ही नहीं NPR पर भी उनके सुर भाजपा से उलट ही रहा है और उन्होंने इन दोनों ही मुद्दों पर BJP से अलग रुख अपनाया है।
दूसरा कारण नितीश कुमार के खिलाफ बिहार में सत्ता विरोधी लहर दिखाई देने लगी है साथ ही नितीश कुमार का “ठीके तो है नितीश कुमार” जैसे नारे को अपनाया है जो स्पष्ट तौर पार हारे हुए मानसिकता को दिखाता है। अगर अंतिम समय में BJP को यह समझ आजाए कि वह अकेले ही लोक सभा की तरह ही बिहार में अच्छा प्रदर्शन करेगी तब उस स्थिति में नितीश कुमार को डंप भी किया जा सकता है।
उस स्थिति में BJP नित्यानन्द राय जैसे नेता को मुख्यमंत्री का चेहरा बना कर चुनाव को आसानी से जीत सकती है। वैसी स्थिति में नितीश के पास कोई चारा नहीं रहेगा। बिहार की जनता वैसे भी उनकी समाजवादी नीतियों से त्रस्त है। भाजपा के किए यही परिस्थिति सबसे अच्छी साबित हो सकती है। त्रिकोणीय मुक़ाबला होने पर BJP को ही फायदा होना तय है क्योंकि न ही कांग्रेस और न ही RJD में वह ताकत बची है कि वह BJP को चुनौती दे। लोजपा जैसी पार्टी वैसे भी BJP को छोड़ कर कही नहीं जाने वाली है उस स्थिति में जातिगत राजनीति भी साधने के असर रहेंगे।
3. अगर नितीश कुमार RJD और कांग्रेस के साथ महागठबंधन करते हैं।
अगर नितीश BJP से फायदा न मिलता देख कर RJD और कांग्रेस के साथ जाने का फैसला करते हैं और एक बार फिर से महागठबंधन बनता है तो उस स्थिति में मुक़ाबला महाराष्ट्र की तरह ही पेचीदा हो सकता है।
अभी तक JDU का जिस तरह से BJP के साथ संबंध रहा है उससे तो यही लगता है किसी भी बात पर रार हो और इंका गठबंधन टूट जाएगा।
बता दें कि जम्मू कश्मीर से अनुच्छेद 370 हटाए जाने का जहां पूरा देश समर्थन कर रहा था जेडीयू ने इसका विरोध किया था। राज्यसभा में जम्मू-कश्मीर पर लाए गए बिल पर चर्चा के दौरान जेडीयू के सदस्यों ने वॉकआउट किया था। बाद में आलोचनाओं के बाद जेडीयू ने यू-टर्न लिया था। वहीं नागरिकता संशोधन बिल पर जेडीयू पहले सरकार को समर्थन करने के मूड में नहीं थी, लेकिन पार्टी ने अपने फैसले पर यू-टर्न लिया और इस बिल पर सरकार का समर्थन करने का फैसला लिया। सच तो यह है कि किसी को नहीं पता कि वे वास्तविक रूप से किस पार्टी या विचारधारा की ओर अपनी निष्ठा रखते हैं।
अगर गठबंधन होता है तो इस बार वर्ष 2015 की स्थिति नहीं बनेगी और न ही उन्हें CM की कुर्सी मिलेगी। इस बार के महागठबंधन को बहुमत मिलने पर तेजस्वी यादव CM बनाए जा सकते हैं।
इन तीन परिस्थिति में से ही कोई एक बिहार विधानसभा चुनाव के नतीजों में देखने को मिल सकता है। इससे यह भी स्पष्ट होता है कि बिहार में चुनाव से पहले तक कुछ भी दावा नहीं किया जा सकता है।