ऐसे बहुत कम मौके आते हैं जब सुप्रीम कोर्ट को ही कोई आईना दिखा जाए। इस बार केंद्र सरकार ने जजों की नियुक्ति को लेकर ऐसा किया है। सरकार ने कहा कि न्यायपालिका को पहले अपने घर को दुरुस्त करना चाहिए। अटॉर्नी जनरल के के वेणुगोपाल ने सुप्रीम कोर्ट से कहा, ‘पहले हाईकोर्ट में सुधार की जरूरत है। सुप्रीम कोर्ट सरकार पर सवाल उठाती है कि उन्होंने एक नाम को लागू करने में 100 दिन का समय लगा दिया। लेकिन, जब हाईकोर्ट नियुक्तियों के नाम भेजने में 5 साल का समय लगाता है तो इसका क्या?
केंद्र सरकार ने सोमवार को सुप्रीम कोर्ट को बताया कि उच्च न्यायपालिका में जजों की नियुक्ति की प्रक्रिया के दौरान सरकार को भेजी गई सिफारिश को मंजूरी देने में उसे औसतन 127 दिन लगते हैं, जबकि शीर्ष अदालत कोलेजियम को इसके लिए 119 दिन लगते हैं।
अटॉर्नी जनरल ने स्पष्ट शब्दों में पीठ को बताया कि न्यायिक नियुक्तियों में देरी का एक हिस्सा न्यायपालिका के स्तर पर हुआ है।
अटॉर्नी जनरल के के वेणुगोपाल ने जस्टिस एसके कौल और जस्टिस केएम जोसेफ की पीठ को बताया कि देशभर के हाई कोर्ट ने 396 रिक्तियों में से 199 के लिए न्यायाधीशों की नियुक्ति के लिए नामों की सिफारिश तक नहीं की है। वेणुगोपाल की दलीलों को ध्यान में रखते हुए, शीर्ष अदालत ने सभी हाई कोर्ट के रजिस्ट्रार जनरल से रिक्तियों की मौजूदा स्थिति और भविष्य में उत्पन्न होने वाली रिक्तियों के बारे में जानकारी मांगी है।
वेणुगोपाल से पहले न्यायमूर्ति संजय के कौल की अध्यक्षता वाली पीठ ने हाईकोर्ट और सुप्रीम कोर्ट में न्यायिक नियुक्तियों की समयसीमा को एक चार्ट के माध्यम से दिखाने के लिए कहा था। अटॉर्नी जनरल ने एक चार्ट भी पेश किया जिसके अनुसार, एक जज की नियुक्ति के लिए इंटेलिजेंस ब्यूरो (IB) की एक रिपोर्ट मिलने में 127 दिन का समय लगता है।
Live Law की रिपोर्ट के अनुसार जब पीठ ने IB की रिपोर्ट में ज्यादा समय लगने पर चिंता व्यक्त की तो के के वेणुगोपाल ने जवाब दिया कि इन रिपोर्ट को तैयार करने वाले अधिकारियों को क्यों दोषी ठहराया जा रहा है। जबकि सुप्रीम कोर्ट कॉलेजियम को अपनी खुद की प्रक्रिया में 119 दिन का समय लगता है। जबकि सारी रिपोर्ट उपलब्ध रहती है।
जब के के वेणुगोपाल ने हाईकोर्ट में रिक्तियों की स्थिति और वर्तमान में सरकार के सामने लंबित नामों संबंधित आंकड़ा न्यायाधीशों के सामने रखा तो जस्टिस जोसेफ ने कहा कि इस बार कॉलेजियम द्वारा नाम दोहराए जाने के बाद सरकार उन नियुक्तियों को प्रक्रिया में लाने के लिए बाध्य है। के के वेणुगोपाल ने जजों की नियुक्ति को लेकर कॉलेजियम सिस्टम पर सवाल उठाया। साथ ही कहा कि जजों की नियुक्ति सरकार की भी जिम्मेदारी है। पीठ ने वेणुगोपाल से पूछा, ‘अगर सरकार इसपर नया कानून लेकर आती है, तो इसमें बाधा क्या है?’ उन्होंने जवाब दिया,’अगर कोर्ट सुझाव देती है तो सरकार इसपर एक और संशोधन लाना चाहेगी।’
बता दें कि सर्वोच्च न्यायालय की कॉलेजियम व्यवस्था एक न्यायालयी नवाचार है, इसका संविधान में वर्णन नहीं किया गया है। सर्वोच्च न्यायालय और उच्च न्यायालयों के न्यायाधीशों की नियुक्ति तथा स्थानांतरण, सर्वोच्च न्यायालय के मुख्य न्यायाधीश के परामर्श से राष्ट्रपति द्वारा किया जाता है। इस व्यवस्था को न तो संविधान सभा और न ही संसद द्वारा बनाया गया है अतः इस प्रणाली की वैधता पर प्रश्नचिन्ह लगते रहे हैं। इस व्यवस्था में अस्पष्टता, पारदर्शिता की कमी के साथ ही भाई-भतीजावाद की संभावना भी व्यक्त की जाती रही है।
कॉलेजियम व्यवस्था को बदलने के उद्देश्य से वर्ष 2015 में राष्ट्रीय न्यायिक नियुक्ति आयोग (National Judicial Appointments Commission) अधिनियम पारित किया गया था लेकिन सर्वोच्च न्यायालय द्वारा इसे न्यायपालिका की स्वतंत्रता के लिये खतरा बताते हुए रद्द कर दिया गया था।