राजधानी दिल्ली में अरविंद केजरीवाल की सरकार बन गई है। फ्री बिजली, पानी, बस सेवा के दम पर लोगों को लुभाकर केजरीवाल ने सरकार तो बना ली है लेकिन राज्य में राजकोषीय घाटा लगातार बढ़ता जा रहा है। मीडिया रिपोर्ट के अनुसार पिछले 2 सालों में दिल्ली राजकोषीय घाटा करीब 55 गुना ज्यादा बढ़ गया है। इसके अलावा राज्य की डीटीसी बस सेवा को केजरीवाल ने मुफ्तखोरी के चक्कर में बर्बाद कर दिया है।
दरअसल, चुनाव से पहले ही केजरीवाल ने डीटीसी बसों में आधी आबादी को मुफ्त सेवा देने का ऐलान किया था। भले ही महिलाएं आज बसों में मुफ्त सेवाएं ले रही हैं लेकिन इस वजह से डीटीसी बसों की हालत और उसका राजकोषीय घाटा बढ़ गया है। दिल्ली विधानसभा के आर्थिक सर्वेक्षण 2018-19 के अनुसार डीटीसी का कामकाज घाटा 1750.37 करोड़ रुपए पहुंच गया था।
रिपोर्ट के अनुसार डीटीसी कामकाजी नुकसान का वहन करेगी। साल 2013-14 में डीटीसी महज 942.89 करोड़ रूपए के घाटे में था। इसी साल यह घाटा बढ़कर 1019 करोड़ रूपए पहुंच गया और वर्ष 2015-16 में आते ही यह घाटा 1381 करोड़ रूपए के घाटे के आस-पास पहुंच गया। इसी तरह वर्ष 2016-17 में यह घाटा 1730.02 करोड़ रुपए दर्ज किया गया। एक साल बाद वर्ष 2018-19 में बजटीय अनुमानों में डीटीसी का घाटा 1750.37 करोड़ रुपए दर्ज किया गया।
अब बात करते हैं डीटीसी के बसों के बेड़े में गिरावट की। साल 2013-14 में 5223 बसों से गिरकर 2017-18 में 3951 हो गई। वहीं, डीटीसी बसों की राइडरशिप 2016-17 में 31.55 लाख से गिरकर 2017-18 में 29.86 लाख हो गई थी। सबसे हैरानी की बात तो यह है कि केजरीवाल ने अपने लाभ के लिए डीटीसी के घाटे को भी नहीं देखा और महिलाओं को फ्री में यात्रा करने का ऐलान कर दिया। ये सच है कि महिलाएं इस फैसले से खुश हैं लेकिन केजरीवाल ने मुफ्त सेवा देकर डीटीसी का दिवाला निकाल दिया है।
न तो केजरीवाल विपक्ष का जवाब दे पा रहे हैं न ही राज्य को घाटे से उबार पा रहे हैं। प्रमुख विपक्षी दल भाजपा ने दिल्ली विधानसभा चुनाव 2020 से पहले सरकार के कामकाज की जांच के लिए एक आरटीआई दायर किया था लेकिन केजरीवाल ने उसका अभी तक कोई जवाब नहीं दिया है। भाजपा का आरोप है कि 900 सवालों के जवाब अभी लंबित हैं।
ऐसे में यही कहा जा सकता है कि केजरीवाल ने मुफ्तखोरी के चक्कर में राज्य सरकार के राजकोष को ही बर्बाद कर डाला है। आज भले ही दिल्ली की जनता मुफ्तखोरी का आनंद ले रही है लेकिन कभी न कभी इसकी भरपाई उन्ही के जेब से होगी। अब देखना दिलचस्प होगा कि केजरीवाल राज्य सरकार के राजकोषीय घाटे से कैसे निपटते हैं।