3 दिन पहले तक वो सिर्फ एक आम भाजपा नेता था, CAA विरोधी गैंग ने अब कपिल मिश्रा को महान बना दिया है

शायद वामपंथियों के मन मस्तिष्क में एक बात कभी नहीं बैठने वाली, “कभी भी अपनी पूरी ताकत एक व्यक्ति को बर्बाद करने में खर्च न करें!” इसीलिए वामपंथियों ने कपिल मिश्रा को सॉफ्ट टार्गेट मानकर दिल्ली हिंसा के लिए उसे बलि का बकरा बनाने चले थे, पर उल्टे कपिल मिश्रा को उन्होंने हीरो बना दिया, जो आगे चलकर वामपंथियों को एक बार फिर बहुत भारी पड़ने वाला है।

सीएए विरोधी हिंसा के कारण दिल्ली के पूर्वोत्तर क्षेत्र में जनता का जीना मुहाल हो गया है, पर हमारे वामपंथी बिरादरी का सारा ध्येय भाजपा नेता कपिल मिश्रा पर हिंसा का आरोप मढ़ना है। बरखा दत्त से लेकर जावेद अख्तर तक, सभी ने कपिल मिश्रा को बिना साक्ष्य दोषी ठहराने के लिए कोई कसर नहीं छोड़ी है।

अब कपिल मिश्रा हैं कौन? केजरीवाल की कैबिनेट में पहले ये व्यक्ति एक अहम मंत्री हुआ करते थे, परंतु वैचारिक मतभेद के कारण उन्हें आम आदमी पार्टी छोड़नी पड़ी। उन्होंने आखिरकार भाजपा का दामन थामा और हाल ही में वे मॉडल टाउन क्षेत्र से विधानसभा का चुनाव लड़ा, जहां उन्हें पराजय प्राप्त हुई।

परंतु जिस तरह से वामपंथियों का पूरा समूह इनके पीछे हाथ धोकर पड़ा हुआ है, उससे उन्होंने एक बार फिर वही गलती दोहराई है, जिसके कारण कई आम नेता आज देश की राजनीति में एक अहम स्थान रखते हैं। वामपंथियों की कवरेज देख तो ऐसा लगता है मानो कपिल मिश्रा 1989 में हुए कश्मीरी पंडितों के नरसंहार से लेकर गोधरा दंगों तक सभी त्रासदियों के लिए मुख्य रूप से जिम्मेदार हैं।

जहां बरखा दत्त ने कपिल मिश्रा पर दोष मढ़ते हुए ट्वीट किया कि उन्हें तुरंत हिरासत में लेना चाहिए।  तो वहीं लिबरलों के शायर जावेद महोदय ट्वीट करते हैं, “दिल्ली में हिंसा का स्तर बढ़ाया जा रहा है। सभी कपिल मिश्राओं को खुला छोड़ा जा रहा है। एक माहौल बनाया जा रहा है, जिससे एक दिल्लीवाले को ये विश्वास दिलाया जा सके कि ये सब सीएए विरोधियों की कारस्तानी है और दिल्ली पुलिस उन्हें बिलकुल नहीं छोड़ने वाली” –

 

 

पार्ट टाइम फ़िल्ममेकर और फुल टाइम प्रोपगैंडावादी विनोद कापड़ी तो दो कदम आगे बढ़ते हुए बोले, “देखिये दिल्ली में मौजपुर की हालत। अभी के अभी आतंकी कपिल मिश्रा को गिरफ्तार करो” –

https://www.twitter.com/vinodkapri/status/1231921663110868992

परंतु कपिल मिश्रा पर कार्रवाई की मांग केवल वामपंथियों और उनके राजनीतिक आकाओं तक ही सीमित नहीं रही। कुछ भाजपा नेताओं ने अपनी ही पार्टी की किरकिरी कराते हुए कपिल मिश्रा को पार्टी से हटाने की मांग की। जहां पूर्व क्रिकेटर और सांसद गौतम गंभीर ने वामपंथियों का समर्थन करते हुए कपिल मिश्रा के विरुद्ध कारवाई की मांग की, तो भाजपा के लिए मुसीबत का पर्याय बने दिल्ली भाजपा प्रमुख मनोज तिवारी दिल्ली विधानसभा चुनाव में मिली पराजय का दोष भी कपिल मिश्रा के ऊपर डालने लगे, जिसका कई वरिष्ठ भाजपा नेताओं ने विरोध भी किय।

कपिल मिश्रा पर भले ही वामपंथियों का पूरा समूह दोषारोपण करने में लगा हुआ है, परंतु वास्तविकता से सभी अनभिज्ञ नहीं है। जब से सीएए संसद से पारित हुआ है, तब से अफवाहों के बल पर इन लोगों ने देश के कई हिस्सों में हिंसा का तांडव रचा है। यदि ऐसा नहीं है, तो हाल ही में जाफराबाद को उपद्रवियों से मुक्त करने पर यह ट्वीट क्यों डाला गया, “यह जो दहशतगर्दी है, उसके पीछे वर्दी है?” –

इन्हीं अफवाहों के कारण कई निर्दोषों और पुलिस कर्मचारियों को अपनी जान से हाथ धोना पड़ा। अभी सोमवार को ही गोलियां लगने के कारण एक हेड कांस्टेबल की मृत्यु हो गयी, और जैसे ही पता चला कि गोलियां चलाने वाले व्यक्ति कौन थे, स्थिति बद से बदतर हो गयी।

कपिल मिश्रा से ज़्यादा तो अफवाह फैलाने वाले वामपंथियों के गिरोह के कारण पूर्वोत्तर दिल्ली में हिंसा भड़की है। केवल कपिल मिश्रा पर सीएए की हिंसा का सारा दोष डालना न सिर्फ हास्यास्पद है, अपितु वामपंथियों की निकृष्ट सोच का भी परिचय देती है, जो अमानतुल्लाह खान और वारिस पठान के भड़काऊ बयानों पर आंख और कान दोनों बंद कर मौन व्रत साध लेती है।

वारिस पठान एक रैली में कहने लगा, “अब वक्त आ चुका है, हमें बताया गया है कि हमारी मांओं और बहनों को मोर्चे पर भेजा गया है। आपको हमारी शेरनियों के मोर्चा संभालने से ही पसीने छूटने लगे। सोचो तब क्या होगा जब हम एक होंगे। हम 15 करोड़ हो सकते हैं, पर 100 करोड़ पर भी भारी है, याद रखना”। क्या यह बयान भड़काऊ नहीं थे? पर नहीं, इस पर वामपंथियों का एक ही रिएक्शन रहेगा न, कुछ मत बोलो ये सेक्युलरिज्म है।

इसी कारण से कपिल मिश्रा अब कई देशवासियों के लिए किसी हीरो से कम नहीं है। जब दिल्ली पुलिस ने कई प्रदर्शन स्थलों से उपद्रवियों को बाहर खदेड़ा, तो बरबस ही लोगों को कपिल मिश्रा का उद्देश्य याद आया। वे केवल उपद्रवियों द्वारा कबजाए सार्वजनिक स्थलों को मुक्त कराने आए थे।

सीएए विरोधी उपद्रवियों द्वारा मार्ग अवरोधों को हटाने के लिए उन्होंने दिल्ली पुलिस से विशेष अपील की थी। क्या ऐसा करना कोई अपराध है? जिस तरह से कपिल मिश्रा पर आरोप मढ़े जा रहे थे, और जिस तरह से हिंसा हुई है, उससे कपिल मिश्रा का दोष तो किसी भी तरह सिद्ध नहीं जाता।

इस बात को राजनीतिक कार्यकर्ता शहजाद पूनावाला ने तुरंत प्रकाश में लाते हुए बताया, “असली पाप तो 72 दिन पहले ही प्रारम्भ हो चुका था, जब बुर्का पहने अराजकतावादियों के कृत्यों को उचित ठहराया गया। उन लोगों के विरुद्ध एक्शन क्यों नहीं लिया गया जो सीएए को जानबूझकर दो महीनों से हिन्दू मुस्लिम का मुद्दा बना रहे हैं”।

यह गलती पहली बार नहीं हुई है, और न ही ये गलती वामपंथी दोबारा नहीं करेंगे। गोधरा में 2002 में हुई हिंसा के पीछे 12 वर्षों तक जिस व्यक्ति को उन्होने दोषी बनाकर प्रताड़ित किया, वो आज देश का प्रधानमंत्री है। जिस योगी को इन वामपंथियों ने झूठे आरोपों में फंसाकर जेल भिजवाया था, आज वही योगी आदित्यनाथ उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री भी हैं, और सीएए के विरोध के नाम उपद्रवियों के विरुद्ध कार्रवाई कर पूरे देश के लिए एक बेजोड़ उदाहरण है। अब जिस तरह से कपिल मिश्रा को वामपंथियों के गिरोह ने निशाने पर लिया है, उन्होंने उसे अब ऐसे एक हीरो का रूप दिया है, जो आगे चलकर इनके लिए किसी दुस्वप्न से कम नहीं होगा।

Exit mobile version