हाल ही में सीएए और एनआरसी के विरोध के नाम पर जो भी प्रदर्शन , उससे हिंसा और आगजनी के अलावा देश को कुछ भी प्राप्त नहीं हुआ है। इसके अलावा जिस तरह से नन्हें बच्चों के मन मस्तिष्क में केंद्र सरकार और हिन्दू समुदाय के प्रति विष भरा जा रहा है, उससे स्पष्ट पता चलता है कि कैसे विरोध प्रदर्शन के नाम पर भारत को क्षत विक्षत करने का ताना बाना बुना जा रहा है।
अभी कन्हैया कुमार की एक रैली से संबंधित वीडियो वायरल हुई है, जिसमें एक 14-15 वर्ष का बच्चा भारतीय संस्कृति का अपमान करते हुए कह रहा था, “यदि ताजमहल और लाल किला न होता, तो क्या लोगों को गाय और गोबर दिखाते?”
इसी तरह चार माह के एक बच्चे की शाहीन बाग के धरने में मृत्यु ने सिद्ध कर दिया कि बात तो लोकतन्त्र बचाने या संविधान के अनुरूप प्रदर्शन करने की थी ही नहीं। छोटे छोटे बच्चों के कंधे पर बंदूक रखकर चलाने की कुत्सित विचारधारा जो वामपंथियों ने इन प्रदर्शनों में दिखाई है, उससे स्पष्ट होता है कि किस तरह से शाहीन बाग के प्रदर्शनों को ढाल बनाकर वे भारत में उपद्रव मचाना चाहते हैं।
इसी भांति 24 जनवरी को सीएए और एनआरसी के विरोध में कई लोगों ने गोवा के दक्षिण भाग में एक रैली में हिस्सा लिया, जिसमें आरोप लगाया कि उन्होंने बच्चों को भी ज़बरदस्ती रैली में शामिल कराया। स्टॉप चाइल्ड अब्यूज नाउ नामक एनजीओ द्वारा दायर याचिका में इस रैली के आयोजनकर्ताओं पर बच्चों को कुत्सित विचारधारा से परिचित कराने का आरोप लगाया था। इस रैली का आयोजन गोवा के कैथॉलिक चर्च के सामाजिक संगठन, काउंसिल फॉर सोशल जस्टिस एंड पीस ने किया था, जिनपर गोवा चिल्ड्रेन्स एक्ट एवं जुवेनाइल जस्टिस एक्ट के अंतर्गत मुकदमा भी दर्ज हुआ है।
परंतु ये कोई नई बात नहीं है। शाहीन बाग में जिस तरह के विरोध प्रदर्शन हुए, उससे स्पष्ट पता चलता है कि किस प्रकार से दिमाग में हिन्दू विरोध भरा जा रहा है। हालांकि, बच्चों का इस्तेमाल कर अपना राजनीतिक निशाना साधने वालों के इस एजेंडे का खुलासा हो चुका है और महीने भर पहले National Committee for Protection of Child Rights यानि NCPCR ने सरकारी अधिकारियों से शाहीन बाग में विरोध प्रदर्शनों में शामिल किए गए बच्चों की पहचान कर उनकी काउंसलिंग की व्यवस्था करने का निर्देश दिया था।
अपनी ग्राउंड रिपोर्ट्स से लिबरल ब्रिगेड के एजेंडे का पर्दाफाश करने वाली स्वाति गोएल ने भी बच्चों के brainwashing पर एक रिपोर्ट लिखा था। उन्होंने बताया था कि कैसे बच्चों का brainwash किया जा रहा है। एक बच्चे ने कहा, “हम अपने देश को बचाने के लिए यहाँ हैं। हम यहां तब तक रहने वाले हैं जब तक कि पीएम मोदी CAA और NRC को वापस नहीं ले लेते। मोदी हमारे साथ कुछ भी कर लें, सर से धड़ अलग करे या पुलिस को बुलाये, हम नहीं जा रहे हैं। हम अपनी आजादी को वापस ले लेंगे। NRC से हम सभी को हटा दिया जाएगा जा और हमें detention centres में डाल दिया जाएगा।”
रिपोर्ट में आगे लिखा है, “Detention centers में सरकार हमें पहनने के लिए कपड़े या खाने के लिए भोजन भी नहीं देगी। इसलिए जब तक NRC को वापस नहीं लाया जाता है, हम यहीं रुकने वाले हैं। पीएम मोदी ने पहले पुलिसकर्मियों को भेजा था और वे हमें जगह छोड़ने के लिए कह रहे थे लेकिन हम सभी ने ऐसा करने से मना कर दिया। यह अमित शाह और मोदी सोच रहे हैं कि वे देश के सभी मुसलमानों को मार देंगे और यहाँ अकेले रहेंगे। लेकिन हम उन्हें अकेले नहीं रहने देंगे, हम दोनों को मार देंगे। जिस तरह से वे यहां मुसलमानों को परेशान कर रहे हैं उसी तरह हम भी उन्हें परेशान करेंगे। हम दोनों को मार देंगे।”
इसी से आप अंदाजा लगा सकते हैं कि किस तरह बच्चों के दिमाग में नफरत का जहर भरा गया है। शाहीन बाग के इस प्रोपोगेंडे को Know the Nation नाम के एक ट्विटर हैंडल ने भी पर्दाफाश किया था। एक ट्वीट किए हुए वीडियो में एक बच्ची को यह कहते सुना जा सकता है कि उन्हें detention camps में परिवारों से दूर कर दिया जाएगा तथा उनके कपड़े और खाना भी छिन लिया जाएगा
"Families will be split up at detention camps. Our clothing & food will be snatched too!" says this girl at #ShaheenBaghProtests
Vicious lies spread on CAA & NRC goes on to tell us how great these '#महानऔरते_शहीनबागकी' actually are!#ShaheenBaghTruth #बिकाऊ_प्रदर्शनकारी pic.twitter.com/QWUZEEMj8b
— Know The Nation (@knowthenation) January 16, 2020
Kid: "Modi sab ke galey katwa raha hai, bachho ko maar raha hai!"
Reporter: "Kaunse channel pe dekha ye?"
Kid: "NDTV!"
A child so small who could not even pronounce 'NDTV' properly. Who is brainwashing them?#ShaheenBaghProtests #बिकाऊ_प्रदर्शनकारी #ShaheenBaghTruth pic.twitter.com/hfyKpwMIqc
— Know The Nation (@knowthenation) January 16, 2020
प्रदर्शनों में बच्चों के इस्तेमाल पर संज्ञान लेते हुए सुप्रीम कोर्ट ने भी सख्त तेवर दिखाये। जब शाहीन बाग में मरने वाले बच्चों के माँ बाप का प्रतिनिधित्व करने वाले अधिवक्ताओं और विवादित एक्टिविस्ट जॉन दयाल ने बच्चों को शामिल करने की दलील पर जब ज़ोर दिया, तो इस पर क्रोधित सुप्रीम कोर्ट की न्यायिक पीठ ने उन्हें आड़े हाथों लेते हुए पूछा, “क्या चार महीने का बच्चा खुद प्रोटेस्ट में गया था?”
इस पर मुख्य न्यायाधीश एसए बोबडे ने कड़ा रुख अपनाते हुए अधिवक्ताओं को ‘कोरी दलीलें’ न देने को कहा। एसए बोबडे ने कहा कि “यहाँ कोई अगर बकवास करेगा, तो हम आगे की कार्यवाही रोक देंगे। ये कोर्ट है, हम मातृत्व व शांति का बेहद सम्मान करते हैं। ऐसी बहस न की जाए जिससे गर्माहट हो। अप्रासांगिक दलीलें देकर विघ्न न डाला जाए।’’ इसके अलावा कोर्ट ने केंद्र सरकार और दिल्ली सरकार को नोटिस थमाते हुए उनका जवाब भी मांगा है। कोर्ट ने दोनों पक्षों को शाहीन बाग के विरोध प्रदर्शनों द्वारा आवाजाही को बाधित करने के संबंध में भी नोटिस भेजा है। कोर्ट के अनुसार प्रदर्शन तय स्थानों पर होने चाहिए जिससे स्थानीय जनता को कोई कठिनाई न झेलनी पड़े। इससे यह भी स्पष्ट होता कि सुप्रीम कोर्ट की वर्तमान पीठ विरोध के नाम पर अराजकता कतई नहीं सहने वाली।
सच कहें तो बच्चों को अपने प्रदर्शन में लाने का सबसे बड़ा संदेश यही है कि आपके विरोध प्रदर्शन का कोई ठोस आधार नहीं है और आप अपने आप को श्रेष्ठ सिद्ध करने के लिए बर्बरता की सभी हद पार कर सकते हैं। वामपंथी चाहे जितना दंभ भर लें, मासूम बच्चों को अपने प्रदर्शन में शामिल कर उन्होंने सिद्ध किया है कि अब उनके पास अपनी बात साबित करने के लिए कोई भी ठोस आधार नहीं हैं, और वे तर्कसंगत बने रहने के लिए किसी भी हद तक गिरने को तैयार हैं।