कोई भी सरकार नेता के बल पर ही मजबूत बनती है। अगर लोग केंद्र की मोदी सरकार को मजबूत मानते हैं तो इसका एक कारण है कि केंद्र सरकार के पास पीएम मोदी जैसा मजबूत नेता है। लेकिन यदि वही नेता अपनी मजबूरीयों से उपजी कमजोरी के चलते स्वतंत्र होकर फैसले ना ले पा रहा हो, तो उससे बड़ा विचलित नेता कोई हो नहीं सकता। ऐसा ही हाल हमें नीतीश कुमार और उद्धव ठाकरे जैसे नेताओं का देखने को मिलता है, जो कहने को तो अपने-अपने राज्यों के मुख्यमंत्री हैं, लेकिन अपनी मजबूरीयों के चलते वे हर दिन कई मुद्दों पर अपने फैसले बदलने पर मजबूर होते हैं।
उदाहरण के तौर पर लगभग 4 महीने पुरानी महाराष्ट्र की उद्धव ठाकरे की सरकार को ही देख लीजिये। देश के इतिहास ने इनसे बड़ा कन्फ़्यूज्ड CM शायद ही कोई देखा हो। CAA/NRC का मुद्दा हो या फिर भीमा कोरेगांव का मामला हो, हर दिन हमें उद्धव सरकार का बदला-बदला रुख देखने को मिलता है।
10 जनवरी को जब केंद्र सरकार ने अधिसूचना जारी कर देश में संशोधित नागरिक कानून को लागू किया था, तो इसके जवाब में उद्धव सरकार ने कहा था कि CAA कानून महराष्ट्र में लागू नहीं होगा। 12 जनवरी को उद्धव सरकार में गृह मंत्री अनिल देशमुख ने कहा था “महाराष्ट्र में हमारी सरकार है और केंद्र सरकार कानून जरूर बना सकती है लेकिन इसे लागू करना या नहीं करना राज्य सरकार के हाथ में होता है। हालांकि, वो (केंद्र) भले प्रयास कर लें महाराष्ट्र सरकार इस कानून (सीएए) को राज्य में लागू नहीं होने देगी”।
हालांकि, हाल ही में शिवसेना के सीएम उद्धव ठाकरे ने पीएम मोदी के साथ मुलाक़ात के बाद यह साफ किया है कि CAA और NRC देश के लिए जरूरी है और इससे देश के मुसलमानों पर कोई प्रभाव नहीं पड़ने वाला है। एक इंटरव्यू में उद्धव ठाकरे ने कहा कि “नागरिकता संशोधन कानून की वजह से किसी की नागरिकता नहीं जाएगी। ये कानून पड़ोसी देशों के प्रताड़ित लोगों को नागरिकता देने के लिए है”। उद्धव ठाकरे का सामना में दिया गया ये ताजा बयान उस उलझन की ओर इशारा करता है जो नागरिकता संशोधन कानून को लेकर शिवसेना में पैदा हुई है। अब महाराष्ट्र सरकार का हाल यह है कि शिवसेना के मंत्री सीएए का समर्थन कर रहे हैं, जबकि कांग्रेस और एनसीपी इस कानून के विरोध में है।
शिवसेना का यही हाल भीमा कोरेगांव मामले पर भी देखने को मिला। केंद्र सरकार ने जब इस मामले की जांच NIA की हाथ में दी, तो शिवसेना ने पहले इसका विरोध किया, लेकिन बाद में उसने इस कदम का समर्थन कर दिया। दूसरी तरफ शरद पवार ने शिवसेना के इस फैसले का कड़ा विरोध कर दिया। कुल मिलाकर शिवसेना को शरद पवार और कांग्रेस को भी खुश करना है, और साथ में जनता को भी नहीं उकसाना है इसीलिए आज वे देश के सबसे कन्फ़्यूज्ड सीएम हैं।
यही हाल हमें बिहार के सीएम नीतीश कुमार का देखने को मिल रहा है। लोकसभा और राज्यसभा में तो उन्होंने इस कानून का समर्थन किया, लेकिन बाद में जदयू के उपाध्यक्ष प्रशांत किशोर ने खुलकर CAA का विरोध किया और कहा कि वे किसी भी कीमत पर CAA को बिहार में लागू नहीं होने देंगे। बाद में प्रशांत किशोर को तो पार्टी से निकाल दिया गया लेकिन NRC के मुद्दे पर अब भी नीतीश कुमार और जदयू भाजपा के खिलाफ ही हैं। अब नीतीश सरकार ने राज्य में राष्ट्रीय नागरिकता रजिस्टर \NRC) लागू नहीं कराने का प्रस्ताव पारित कराया हैं।नीतीश कुमार एक सेक्युलर नेता के तौर पर अपनी छवि बनाना चाहते हैं, लेकिन इसके साथ ही भाजपा के साथ भी दिखना चाहते हैं। उनकी इसी मजबूरी ने उनको भी एक विचलित नेता की भांति बर्ताव करने पर मजबूर कर दिया है।
इससे स्पष्ट होता है कि अगर सरकार का नेता गठबंधन की मजबूरीयों के चलते अपने फैसले पर कायम नहीं रहता है, तो वह एक कन्फ्यूज्ड नेता की तरह हर रोज़ अपने फैसले बदलता है। जब गठबंधन वाली सरकार का आधार ही मजबूत नहीं होता है तो नेता भी कमजोर हो जाते हैं और यही हमें उद्धव और नीतीश के साथ देखने को मिल रहा है।