देश के किसी कोने में जब कोई प्राकृतिक आपदा आती है या कोई बीमारी फैलती है तो कुछ कथित परोपकारी गैंग एक्टिव हो जाते हैं। जो लोगों से मदद के नाम पर पैसा वसूलकर अपनी जेब में रख लेते हैं। इसी तरह की एक खबर का टाइम्स ऑफ इंडिया ने खुलासा किया है। दरअसल, केरल में कोच्चि म्यूजिक फाउंडेशन की ओर से बाढ़ पीड़ितों के लिए गाला म्यूजिक शो का आयोजन किया गया था। इस कन्सर्ट का मुख्य उद्देश्य था कि पैसा इकट्ठा कर बाढ़ पीड़ितों के लिए मुख्यमंत्री राहत कोष में जमा करना। हालांकि पैसा मुख्यमंत्री राहतकोष में नहीं आया। इस बात का खुलासा एक आरटीआई के जरिए हुआ।
खबरों के मुताबिक इस कॉन्सर्ट को करवाने में मलयालम फिल्म इंडस्ट्री के चर्चित गायक बिजिबल हैं। जिन्होंने पैसा मदद के नाम पर पैसा लूटकर दबाया हुआ है। जब आरटीआई में खुलासा हुआ तब बिजिबल कहते हैं कि जीएसटी हटाकर कुल 6 लाख 30 हजार रूपए की राशि प्राप्त हुई है। वे मार्च तक इन पैसों को सीएम रिलीफ फंड में जमा करा देंगे। मालूम हो कि ये वही गायक हैं जिन्होंने सीपीआई की आड़ में खड़े होकर सीएए पर केंद्र सरकार का विरोध किया था।
ऐसा पहली बार नहीं है जब किसी आपदा, महामारी के नाम पर लोगों से पैसा वसूलकर धंधा चलाया गया है। इसी तरह बिहार में भी बाढ़ पीड़ितों की मदद के नाम पर खूब लूट मचा था।
बिहार में बाढ़ के नाम पर करोड़ो लूटा गया-
बात 2004 जुलाई-अगस्त महीने की है जब बिहार में बाढ़ ने प्रलय मचा दिया था। उन दिनों राज्य में बाढ़ पीड़ितों की मदद के नाम पर कई अफसर और कंपनी के मालिकों ने करोड़ों लूटा।
दरअसल, बाढ़ में राहत कार्य चलाने के लिए पटना के डीएम गौतम गोस्वामी को बाढ़ राहत का नोडल पदाधिकारी बनाया गया था। बाढ़ राहत का अभियान खत्म होने के बाद तत्कालीन आपदा प्रबंधन सचिव मनोज कुमार श्रीवास्तव ने बाढ़ राहत कार्य में हेराफेरी की आशंका जताई। इसके बाद गोस्वामी को पटना डीएम के पद से हटाकर सुधीर कुमार को नया डीएम नियुक्त किया गया। गोस्वामी पर आरोप था कि उन्होंने राहत के नाम पर 18 करोड़ की राशि एक एनजीओ बाबा सत साईं इंटरप्राइजेज के मालिक संतोष कुमार को दिया था, इस लेन-देन में 11 करोड़ का कोई हिसाब नहीं मिला।
कहा जाता है कि तत्कालीन पटना डीएम सुधीर कुमार की तत्परता के कारण ही मई 2005 में गौतम गोस्वामी समेत 27 लोगों के खिलाफ केस दर्ज हुआ, बाद में गोस्वामी समेत कई लोग जेल गए। सुधीर कुमार जनवरी 2005 में जून 2007 तक पटना के डीएम थे। इस दौरान इस घोटाले को दबाने के लिए उन पर काफी दबाव बनाया गया फिर भी वे नहीं झुके। सबसे हैरत की बात तो यह थी कि भ्रष्टाचारी अफसर गौतम गोस्वामी को टाइम्स मैग्जिन ने यंग हीरो के रूप में अपनी पत्रिका में दिखाया था।
कठुआ रेप पीड़िता के परिजनों का पैसा लूटा गया-
इसी तरह बहुचर्चित कठुआ रेप केस में भी मदद के नाम पर खूब पैसा लूटा गया। दरअसल, कठुआ रेप पीड़िता के पिता ने मीडिया को बताया था-
“किसी ने हमारे संयुक्त खाते से 10 लाख रुपये से अधिक की निकासी की हैं। मुझे इसकी कोई जानकारी नहीं है। इस खाते में 20 लाख से अधिक थे अब हमारे खाते में केवल 35,000 रुपये बचे हैं। जब खाता खुलवाया गया था तो कुछ दिन बाद हमें बताया गया कि एक करोड़ रुपये से ज्यादा की राशि जमा हुई है। लेकिन मुझे ये नहीं पता कि ये राशि कहां गयी।”
पीड़िता के पिता ने पासबुक दिखाते हुए बताया कि ‘किसी असलम खान नाम के व्यक्ति ने इसी साल 11, 14, 15 व 18 जनवरी को चेक के जरिए 2-2 लाख रुपये निकलवाए हैं। इसके अलावा 21, 22 जनवरी को भी चार लाख रुपये बैंक से निकलवाए गए हैं। यह पैसा किसी नसीम नामक व्यक्ति ने चेक के जरिए निकला है।‘ पीड़िता के पिता ने कहा कि ‘मैं तो अनपढ़ हूं और चेक पर भी अंगूठा ही लगाता हूं। मुझे नहीं पता ये पैसे कहां और कैसे गये।’
इससे पहले ‘द ट्रिब्यून’ ने कठुआ रेप पीड़िता की माँ को उद्धृत करते हुए कहा,
”वो तथाकथित सामाजिक कार्यकर्ता और राजनेता जो मेरी बेटी के साथ हुई क्रूरता और हत्या के बाद त्वरित न्याय की मांग करने में सबसे आगे थे वो अब अपना हित साधने के बाद से गायब हैं। पीड़िता की माँ ने आगे कहा, “उन लोगों मकसद सिर्फ इस मामले से अपना हित साधना था न कि मेरी बच्ची को न्याय दिलाना नहीं था। जिन्होंने ये जघन्य अपराध किया है हम चाहते हैं कि उन्हें सख्त से सख्त सजा दी जाए।” रेप पीड़िता के बायोलॉजिकल पिता ने कहा, कई लोगों उस घटना का फायदा उठाया और अब सभी नदारद हैं।”
यहां गौर करने वाली बात ये है कि सामाजिक कार्यकर्ता और वकील तालिब हुसैन जिसने जम्मू कश्मीर में कठुआ रेप केस और हत्या मामले में न्याय की मांग के लिए आंदोलन का नेतृत्व किया था वो भी रेप मामले में गिरफ्तार हुआ था। तालिब हुसैन पर जेएनयू की छात्रा ने सोशल मीडिया के जरिए रेप के आरोप लगाए थे जिसके बाद मशहूर वकील इंदिरा जयसिंह उनके एक केस की पैरवी छोड़ दी थी।
तालिब हुसैन पर आरोप है कि उसने दहेज के लिए अपनी पत्नी को जान से मारने की कोशिश की थी। वादित जेएनयू छात्र कार्यकर्ता शेहला राशिद भी उन कार्यकर्ताओं में से एक थीं और शेहला पर भी पीड़ित परिवार के लिए जुटाए गए पैसों के गबन का आरोप लगा था लेकिन शेहला ने द ट्रिब्यून की रिपोर्ट को ख़ारिज दिया था। शेहला ने उस समय कहा था कि उसने खुद बायोलॉजिकल परिजनों से मुलकात की थी तब उन्होंने कहा था कि उन्हें कोई परेशानी नहीं है उन्हें जुटाए हुए फंड मिले हैं।
मदद के नाम पर नया धंधा-
ऐसे में केरल बाढ़ पीड़ितों की मदद के नाम पर पैसे लेकर दबा लेना कोई हैरानी वाली खबर नहीं है। बिहार बाढ़, केरल बाढ़ और कठुआ रेप पीड़िता के परिवारवालों की मदद के नाम पर पैसा लूटना तो बस एक उदाहरण है, ऐसे ही न जाने कितने लूटेरे देश में फैले होंगे जो तमाम पीड़ित लोगों के नाम पर पैसा इकट्ठा कर अपनी जेबें भर रहे होंगे। सच कहें तो यह एक बिजनेस की तरह हो गया है, जिसमें मदद के नाम पर ठगी का शिकार बनाया जाता है।
ऐसे में जब कोई संस्था, व्यक्ति या वेबसाइट किसी आपदा, दुर्घटना, बीमारी या विपत्ति के समय में मदद के नाम पर जब पैसा इकट्ठा करते हैं तो उन पर कड़ी निगरानी रखनी चाहिए। उनके खातों और लेन-देन की भी मॉनिटरिंग करनी चाहिए। जिससे मदद करने वाले लोगों का विश्वास बना रहे, वरना ऐसे ही मदद के नाम पर हेराफेरी होती रही तो एक समय ऐसा आएगा जब लोग मदद करने से कतराएंगे।