दिल्ली विधानसभा चुनाव के रिज़ल्ट आ चुके हैं और BJP यह चुनाव हार चुकी है। हालांकि BJP ने पिछली बार की तुलना इस बार अच्छा प्रदर्शन किया है। जब BJP के शीर्ष नेता इस हार की समीक्षा करने बैठेंगे तब उनके सामने एक सवाल जरूर रहेगा कि क्या मनोज तिवारी को BJP दिल्ली की कमान सौपना भारी पड़ा?
इसके कई कारण हैं जिसे हम थोड़ी देर में बताएँगे लेकिन उससे पहले आपके मन में यह सवाल जरूर आया होगा कि लोकसभा के दौरान भी मनोज तिवारी ही BJP दिल्ली के अध्यक्ष थे फिर कैसे BJP को सातों सीटों पर जीत मिली। इसका उत्तर यह है कि लोकसभा चुनाव को मनोज तिवारी ने नहीं बल्कि नरेंद्र मोदी ने जीता था।
अब बात करते हैं कैसे मनोज तिवारी को BJP दिल्ली का कमान सौपना भारी पड़ा? और क्यों मनोज तिवारी को BJP दिल्ली के पद से तुरंत हटाना चाहिए?
इसके 4 प्रमुख कारण हैं…
पहला मनोज तिवारी का पूर्वांचली होना। यह उन्हें दोनों तरफ से भारी पड़ा। पहले दिल्ली के 35 प्रतिशत से अधिक वोट शेयर रखने वाले पंजाबी समुदाय ने उन्हें स्पष्ट तौर से नकार दिया तो वहीं दिल्ली का पूर्वांचली वोटों को भी मनोज अपनी तरफ आकर्षित नहीं कर सके। दिल्ली की पंजाबी समुदाय ने मनोज तिवारी के पूर्वांचली होने के कारण नकार देना दिखाता है कि उन्हें कोई एक दिल्लीवाला लोकल नेता चाहिए जो उनके समुदाय से हो या प्रॉपर दिल्ली का हो।
दूसरा कारण भी उनका ‘’स्टार पूर्वांचली’’ होना है। अपने स्टारडम की मद में मनोज तिवारी को दिल्ली का कोई भी पूर्वांचली पसंद नहीं करता। मनोज तिवारी क्या पूर्वांचल के लोग किसी भी ऐसे स्टार को पसंद नहीं करते जो अपनी स्टारडम के नशे में चूर हो। कोई भी ऐसा स्टार जमीनी स्तर पर लोगों को अपनी ओर आकर्षित करने असफल रहता है। यही नहीं पार्टी के कार्यकर्ता भी इस तरह के व्यवहार को नहीं पसंद करते हैं। इस वजह से दिल्ली में लगभग 40 प्रतिशत वोट शेयर वाले पूर्वांचली जनता ने भी मनोज तिवारी को नकार दिया। इंडिया टुडे-एक्सिस माई इंडिया के एग्जिट पोल में यह पाया गया था कि पूर्वांचली समुदाय जिस पर भाजपा को भरोसा था, उनमें से 55 फीसदी ने AAP को वोट दिया है।
जब आम आदमी पार्टी ने वर्ष 2015 में 67 सीटें जीतीं थी तब उनमें से 13 विधायक पूर्वांचल के थे। इससे BJP को लगा था कि मनोज तिवारी कुछ कर सकते हैं लेकिन ऐसा नहीं हुआ और पूर्वांचलियों ने मनोज तिवारी को सिरे से नकार दिया। अगर BJP को दिल्ली में सरकार बनानी है तो उन्हें परवेस सिंह वर्मा जैसे किसी नेता को कमान सौंपनी होगी।
तीसरा कारण है मनोज तिवारी का बाहरी नेता होना, यानि कैडर से उनका दूर-दूर तक कोई नाता नहीं है। BJP एक कैडर आधारित पार्टी है और अगर कोई नेता जो समाजवादी पार्टी के उम्मीदवार के रूप में योगी आदित्यनाथ के खिलाफ उतर चुका हो उसे जमीनी स्तर के कैडर कैसे पसंद कर सकते हैं? अक्सर यह देखा गया है कि संघ और भाजपा के कैडर से ही कोई नेता ऊपर तक पहुंचता है और वह नेतृत्व संभालता है। इससे वह कैडर के बीच भी लोकप्रिय रहता है और कैडर भी खुश होकर मेहनत करता है। परंतु मनोज तिवारी न तो भाजपा से थे और न ही संघ से फिर भी वह भाजपा दिल्ली का नेतृत्व कर रहे थे। उन्हें जमीनी स्तर के कैडर बिल्कुल पसंद नहीं करते, इसका असर यह हुआ कि BJP को हार का सामना करना पड़ा।
चौथा कारण है मनोज तिवारी का BJP के कोर वोटरों के बीच अलोकप्रियता। भारत के कोई भी वोटर किसी फिल्म सेलिब्रिटी को राजनीति में पसंद नहीं करते। दिल्ली के वोटर तो ऐसे किसी भी भोजपुरी स्टार को पसंद नहीं कर सकते। कोर वोटर किसी भी पार्टी की विचारधारा से प्रभावित रहते हैं और मनोज तिवारी की कोई भी विचार धारा नहीं है। इसी का खामियाजा BJP को दिल्ली के विधानसभा चुनावों में भुगतना पड़ा है।
इस चुनाव के हार की समीक्षा में BJP का नेतृत्व अवश्य ही इन सभी कारणों पर ध्यान देगा और मनोज तिवारी को हटाकर किसी नए चेहरे को BJP दिल्ली का नेतृत्व सौंपेगा।