तमिलनाडु में तमिल राष्ट्रवाद की आड़ में संस्कृत का विरोध कोई नई बात नहीं है, यहां तक कि धर्म के मामलों में भी इन दो भाषाओं के पक्ष के लोगों में विवाद देखने को मिलता रहता है। अब ऐसा ही तमिलनाडु के तंजावुर के बृहदेश्वरा मंदिर में होता दिखाई दे रहा है। दरअसल, यहां इस मंदिर में 23 सालों के बाद 5 फरवरी को कुंभाभिषेक हुआ, जिसने फिर इस विवाद को जन्म दे दिया कि कुभाभिषेक के दौरान श्लोक संस्कृत में पढ़े जाने चाहिए या तमिल भाषा में या फिर दोनों ही भाषाओं में।
आर्यन बनाम द्रविड़ियन बहस के जरिये अपनी राजनीति चमकाने वाले स्टालिन जैसे नेता और DMK जैसी पार्टियां कुंभाभिषेक में सिर्फ तमिल भाषा में शलोक पढ़े जाने के पक्ष में हैं, क्योंकि उन्हें लगता है कि तमिल भाषा संस्कृत भाषा से बेहतर है। ऐसे ही तत्व समय-समय पर संस्कृत के थोपे जाने का भय समाज में फैलाते हैं और इसका राजनीतिक फायदा उठाते हैं। DMK तो इस मामले पर अपनी राजनीतिक रोटियाँ सेकनें में इस हद तक चली गयी कि उसने संस्कृत बनाम तमिल के मुद्दे को तमिल लोगों की संस्कृति को बचाने के संघर्ष से जोड़कर दिखाया।
हालांकि, यहां इस बहस के बीच तथ्यों पर प्रकाश डालना सबसे महत्वपूर्ण है। अब जानते हैं कि इतिहास इस मामले पर क्या कहता है। डॉ. नागास्वामी जैसे पुरातत्व विशेषज्ञ बताते हैं कि यहां भाषीय प्रभुत्व का तो कोई सवाल ही नहीं है। उनके अनुसार तमिलनाडु के मंदिरों ने सदैव ही आगम प्राचीन लेखों का अनुसरण किया है। इन्हीं आगमों के आधार पर इन मंदिरों में क्रियाएँ की जाती है, फिर चाहे वह मंदिरों का निर्माण हो, कलाकृति हो, निष्ठान हो या फिर पूजा हो। सबसे रोचक बात तो यह है कि जिन आगम लेखों का अनुसरण किया जाता रहा है, वे सिर्फ संस्कृत भाषा में ही उपलब्ध हैं, तमिल में नहीं।
यह मामला कोर्ट में भी गया। कोर्ट ने यह मानने से मना कर दिया कि कुंभाभिषेक सिर्फ तमिल भाषा में ही किया जाए। इसके उलट कोर्ट ने संस्कृत पक्ष के लोगों की दलीलों को तरजीह दी क्योंकि ये लोग संस्कृत के साथ-साथ तमिल भाषा में भी कुंभाभिषेक करने की मांग कर रहे थे। कोर्ट के इस फैसले से स्टालिन जैसे नेताओं का प्रोपेगैंडा धरा का धरा रह गया।
साफ है कि इस दलील के पीछे राजनीति के अलावा कोई और अन्य वाजिब कारण है ही नहीं कि कुंभाभिषेक सिर्फ तमिल भाषा में ही किया जाये। देशभर में सभी बड़े मंदिरों में संस्कृत भाषा में कुंभाभिषेक किया जाता है जो हिंदुओं को एकजुट करने में बड़ी भूमिका निभाता है। DMK जैसी पार्टियां हिंदुओं को एकजुट करने वाली भाषा को ही हिंदुओं में टकराव पैदा करने का कारण बनाना चाहती है, जो कितना बड़ा दुर्भाग्य है। द्रविड़ बनाम आर्यन या कहे तमिल बनाम संस्कृत जैसी बहसों को जन्म देकर इससे राजनीतिक फायदा उठाना ही इन राजनेताओं का सबसे बड़ा मकसद है। इसीलिए 1000 साल पुराने मंदिर में कुंभाभिषेक को लेकर भी अब DMK अपनी नीच राजनीति करने से बाज नहीं आ रही है।