सीएए एनआरसी के विरोध की आड़ में हो रहे उपद्रव की आंच अब पर्वतीय राज्यों, जैसे हिमाचल प्रदेश और उत्तराखंड तक भी पहुंच चुकी है। हाल ही में हिमाचल प्रदेश और उत्तराखंड में हिन्दू मंदिरों और हिन्दू समुदाय के विरुद्ध हमले किए गए हैं, जिससे स्पष्ट होता है कि कैसे सीएए एनआरसी के विरोध के नाम पर हो रहे उपद्रव ने अब हिमाचल प्रदेश और उत्तराखंड को भी नहीं छोड़ा है।
हाल ही में प्रकाशित एक रिपोर्ट के अनुसार, धर्मशाला में अंधेरे में एक शिव मंदिर पर हमला किया गया। शिवलिंग को न केवल उखाड़कर फेंका गया, अपितु शिवजी की मूर्ति और नंदी जी की मूर्ति को भी छिन्न-भिन्न कर मंदिर के प्रांगण से बाहर फेंक दिया गया। उस इलाके में रह रहे एक बालक के अनुसार, एक अज्ञात महिला ये पाप कर रही थी। जब बच्चे ने शोर मचाया, तो महिला वहां से भाग निकली।
परंतु ये एकमात्र घटना नहीं थी। हिमाचल प्रदेश के ही चंबा जिले में पिछले एक हफ्ते में एक मंदिर में शिवजी की मूर्ति दो बार तोड़ी गई। जब स्थानीय प्रशासन और पंचायत ने उसका पुनर्निर्माण कराया, तो उसे फिर शरारती तत्वों ने तोड़ दिया। हालांकि हिमाचल प्रदेश के राज्य में मुसलमानों की संख्या मात्र 2.18 प्रतिशत है, परंतु दो दशक पहले इसे भी कट्टरपंथियों के प्रकोप का सामना करना पड़ा था। 1998 में चंबा जिले में एक आतंकवादी हमला हुआ था, जिसमें 35 निर्दोष लोगों की बर्बरता से हत्या की गई थी।
ऐसे में हिमाचल प्रदेश में जो अभी हुआ है, उससे स्पष्ट हो जाता है कि सीएए का विरोध तो सिर्फ बहाना है, असल में उग्रवादियों को बढ़ावा जो देना है। अब चंबा से जम्मू एवं कश्मीर के केंद्र शासित प्रदेश का डोडा जिला सटा हुआ है, जहां हिजबुल मुजाहिदीन की सक्रियता काफी देखी गई है। ऐसे में चंबा की स्थिति काफी दयनीय है।
सीएए और एनआरसी विरोधी प्रदर्शनों की आंच उत्तराखंड तक भी पहुंच गई है। देहरादून में भी उपद्रवियों ने शाहीन बाग जैसा माहौल बनाने की कोशिश की है। कुमाऊँ क्षेत्र में आने वाली हल्द्वानी में भी इसी प्रकार के प्रदर्शन देखे गए हैं। इतना ही नहीं, पूर्व मुख्यमंत्री और वरिष्ठ कांग्रेस नेता हरीश रावत इन इलाकों में जाकर लोगों को भड़काते हुए भी देखे गए थे।
उत्तराखंड और हिमाचल प्रदेश की छवि शांत और सुदूर राज्यों की रही है। ऋषिकेश, हरिद्वार, गंगोत्री, केदारनाथ और बद्रीनाथ इत्यादि उत्तराखंड में ही तो स्थित हैं। परंतु उत्तराखंड के आबादी का बदलता स्वरूप चिंता का विषय बनता जा रहा है। 2001 की जनगणना के अनुसार मुसलमानों की संख्या उत्तराखंड में 11.9 प्रतिशत थी, और 2011 तक यह संख्या 13.95 प्रतिशत के पार हो गई।
उत्तराखंड में जितने भी तलहटी जिले हैं, जैसे ऊधम सिंह नगर, रुड़की, देहारादून, हरिद्वार इत्यादि, वे उत्तर प्रदेश में स्थित मुजफ्फरनगर, मुरादाबाद, बिजनौर और बरेली से सटे हुए हैं, जहां पर मुसलमानों की आबादी काफी ज़्यादा है।
हल्द्वानी और रुड़की जैसे जिलों में मुसलमानों की आबादी क्रमश: 31.89 प्रतिशत और 23.62 प्रतिशत है। जहां मुसलमानों की संख्या पहाड़ी इलाकों में काफी कम है, वहीं तलहटी क्षेत्रों में उनकी आबादी में काफी इजाफा हुआ है।
सीएए विरोधी प्रदर्शन देश के कई हिस्सों में काफी हिंसक रूप धारण कर चुके हैं। इन प्रदर्शनों का आधार मुख्य रूप से धार्मिक कट्टरता रहा है, जिसे भड़काने में मीडिया और बुद्धिजीवियों का एक विशेष वर्ग कोई कसर नहीं छोड़ रहा है। ऐसे में उत्तराखंड और हिमाचल प्रदेश जैसे राज्यों में ऐसे विरोध प्रदर्शन और गुंडई राज्य के लिए शुभ संकेत नहीं है।