स्थान अयोध्या दिनांक 10 नवंबर, 1989, राम जन्म भूमि का शिलान्यास का दिन। शिलान्यास से पहले वास्तु पूजन, 35 कोटि देवताओं का आह्वान और सात शिलाओं का पूजन हुआ था, फिर धर्माचार्यों ने नींव में रखा। दोपहर एक बजकर 34 मिनट पर शंखनाद और मुख्य ज्योति के बीच बिहार के एक हरिजन कामेश्वर चौपाल के हाथों नींव की पहली शिला रखी गई। यह पहली शिला बांग्लादेश के 56 यज्ञ की भस्मी से बनाई गयी थी। भानु प्रताप शुक्ला ने अपनी पुस्तक Rāma-janmabhūmi kā śabda-satya में इस माहौल के बारे में बताते हुए लिखा है, “श्रीराम-मन्दिर की नींव में अपने सिर पर शिला लिये खड़े कामेश्वर चौपाल ऐसे लग रहे थे मानो केवट श्रीराम का चरण पखारने गंगाजल से भरा कठौता लिये खड़ा हो।”
अयोध्या मामला शिलान्यास से पहले से ही विवादित रहा है लेकिन यह मामला बाबरी मस्जिद के गिराए जाने से और पेचीदा हो गया और कानून के दांव-पेंच में फंस कर रह गया था और मंदिर का निर्माण नहीं हो सका। लेकिन वर्ष 2018 से इस मामले में तेजी आई और 9 नवंबर को आखिरकर सुप्रीम कोर्ट ने राम जन्मभूमि को हिंदुओं को सौंपने का निर्णय लिया और साथ ही सरकार को मंदिर बनाने के लिए 3 महीने के अंदर एक ट्रस्ट बनाने का निर्देश दिया।
Today we take a historic step ahead towards building a grand Ram Temple in Ayodhya!
It was my honour to address the Lok Sabha on this subject, which is special to many.
I also applauded the remarkable spirit of the people of India.
This is what I said… pic.twitter.com/MJHDHnR3Xo
— Narendra Modi (@narendramodi) February 5, 2020
बुधवार को प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने सुप्रीम कोर्ट के आदेश का पालन करते हुए 3 महीने पूरे होने से पहले ही ‘श्रीराम जन्मभूमि तीर्थ क्षेत्र’ के लिए ट्रस्ट की घोषणा कर दी। इस ट्रस्ट में राम लल्ला के लिए अंतिम निर्णय आने कानूनी लड़ाई लड़ने वाले के परासरन जी और 10 नवंबर 1989 को शिलान्यास की पहली शिला रखने वाले कामेश्वर चौपाल का भी नाम है। यूपी के सीएम योगी आदित्यनाथ ने लिखा है, ‘आज का दिन ऐतिहासिक है। श्रीराम जन्मभूमि मंदिर निर्माण की पहली शिला दलित समाज के श्री कामेश्वर चौपाल जी ने रखी थी। ‘श्रीराम जन्मभूमि तीर्थ क्षेत्र’ ट्रस्ट के 15 सदस्यों में भी एक सदैव दलित समाज से होगा।’
यह कितना सुखद है कि भगवान राम के लिए बनने वाले मंदिर के ट्रस्ट में भगवान राम के उस भक्त को भी स्थान मिला जिसने मंदिर के लिए पहले पत्थर से नींव रखी थी। भले ही वह दलित हैं लेकिन भक्त तो भक्त होता है चाहे वह कोई भी हो। भगवान राम के जीवन में भी कई ऐसे प्रसंग मिलते हैं जिससे यह पता चलता है कि उन्होंने अपने जीवन में हमेशा से दलितों के उत्थान के लिए सोचा और काम किया। चाहे वह कौशल राज्य की सीमा पर रहने वाले उनके मित्र निषादराज हो या जंगल में जूठे बेर खिलाने वाली शबरी।
‘मर्यादा पुरुषोत्तम’ भगवान राम ने ही अपने 14 वर्ष के वनवास के दौरान सर्वप्रथज्ञ भारत की सभी जातियों और संप्रदायों को एक सूत्र में बांधने का कार्य किया था। 14 वर्षों के वनवास के लिए भगवान राम जब अयोध्या से निकले तब उन्होंने अपनी पहली रात कौशल राज्य की सीमा पर ऋंगवेरपुर राज्य में बिताई थी। यह राज्य उनके परम मित्र निषादराज गुह्य का राज्य था। जब उन्हें यह पता चला कि भगवान राम आए हैं तो बेहद प्रसन्न हुए और भगवान को वहीं रुकने को कहा। भगवान ने भी निषादराज गुह्य के आतिथ्य को स्वीकार किया और अपने पिता द्वारा 14 वर्षों के वनवास की बात बताई। इस पर निषादराज ने कहा यह राज्य भी आपकी है। हम “आपके सेवक हैं। आप हमारे भगवान हैं। हमारे राज्य पर आप शासक के तरीके से शासन करें।” परंतु भगवान राम ने निषादराज को अपने मित्र की भांति ही बर्ताव किया और अपने प्रण के बारे में बताया।
निषाद को आज दलित समाज से माना जाता है लेकिन भगवान राम ने उन्हें अपने मित्र माना और उनके राज्य में ही अपने वनवास का पहला पड़ाव डाला था।
इससे यह भी पता चलता है कि भगवान राम के लिए सभी मनुष्य बराबर थे। यही नहीं तुलसीदास के रामचरितमानस में केवट का भी प्रसंग आता है जिसमें भगवान राम से उसकी वार्ता होती है और वह भगवान राम के चरण धुलता है। भगवान राम ने केवट की भी इच्छा पूरी की तभी उस केवट ने भगवान राम को अपने नाव पर बैठा कर गंगा पार कराया था। हालांकि, वाल्मीकि रामायण में यह प्रसंग नहीं मिलता है।
इसके अलावा वनवास के दौरान भगवान राम की भेंट शबरी से भी होती है। शबरी एक आदिवासी भील की पुत्री थी। जब वह जंगल मे शिक्षा के लिए भटक रही थीं तब सभी उसे नीची जाति होने के कारण दुत्कार रहे थे लेकिन अंत में मतंग ऋषि के आश्रम में शबरी को शिक्षा मिली। मतंग ऋषि शबरी की गुरु भक्ति से बहुत प्रसन्न थे। देह छोड़ने से पहले मतंग ऋषि ने शबरी को आशीर्वाद दिया कि एक भगवान राम स्वयं शबरी से मिलने आएंगे। उस दिन उसका उद्धार होगा और उसे मोक्ष की प्राप्ति होगी। कई वर्षों बाद जब भगवान राम सीता की खोज में वहां आये तब शबरी के खुशी का ठिकाना नहीं रहा और भगवान राम को अपने आश्रम ले आई।
साथ ही बाग से बेर लाकर चख-चखकर सबसे मीठे बेर अपने प्रभु राम के लिये चुने। भगवान राम ने भी बहुत प्रेम से उन बेरों को खाने लिए उठाया, लेकिन इसी बीच लक्ष्मण ने उन्हें रोकने की बहुत कोशिश की और कहा, ‘भ्राता ये बेर जूठे हैं। तब राम ने कहा, ‘लक्ष्मण यह बेर जूठे नहीं सबसे मीठे हैं, क्यूंकि इनमे प्रेम हैं और वे बहुत प्रेम से उन बेरों को खाते हैं’।
यह प्रसंग भी भगवान के दलित समाज के उत्थान के लिए किए गए कार्यों को दिखाता है कि किस तरह उन्होंने जूठे बेरों में भी प्रेम और भक्ति को देखा और शबरी जैसी अनन्य भक्त को निराश नहीं किया।
भगवान राम के ऐसे ही प्रसंगों में से एक प्रसंग और मिलता है देवी अहिल्या का। भारतीय पौराणिक कथा के अनुसार अहिल्या महर्षि गौतम की पत्नी थीं। ज्ञान में अनुपम अहिल्या स्वर्गिक रूप-गुणों से संपन्न थीं। अपने अतुलनीय सौंदर्य और सरलता के कारण वे अपने पति की प्रिय थीं। लेकिन अपने पति द्वारा ही उन्हें श्राप दे दिया गया और उस कारण वो पत्थर बन गई और कई वर्षों तक पत्थर ही बनी रही थीं। अहिल्या के क्षमा मांगने पर गौतम ऋषि ने कहा था कि भगवान के चरण स्पर्श से ही तुम्हरा उद्धार होगा। जब श्रीराम आए तब उन्होंने देवी अहिल्या का भी उद्धार किया। इस प्रसंग से भी पता चलता है कि भगवान राम ने वनवास में होते हुये भी समाज के सभी वर्गों का उत्थान किया। यही नहीं भगवान राम ने सीता माता को खोजने के लिए वानरों की मदद ली थी। आपने अक्सर यह सुना होगा कि जब भी श्रीराम ने सुग्रीव या हनुमान को बुलाते है तो वानर राज कहते हैं यानि वन में रहने वाले नर।
अब जब केंद्र सरकार ने राम लल्ला के मंदिर ट्रस्ट में भी एक दलित को स्थायी सदस्य बनाया है तो इससे भगवान राम द्वारा समाज के सभी वर्गों के उत्थान के लिए किए गए कार्यों को एक नयी पहचान मिलेगी। भगवान को तो सिर्फ भक्ति से मतलब होता है चाहे वह समाज के किसी वर्ग से हो। कामेश्वर चौपाल भी उन्हीं भक्तों की श्रेणी से आते हैं और अब कामेश्वर चौपाल को फिर से ट्रस्टी के रूप में भगवान की सेवा का मौका मिला है। उम्मीद रहेगी की वह भगवान राम के मंदिर निर्माण में एक अहम भूमिका निभाएंगे।