एक बड़ा प्रचलित दोहा हम सभी बचपन में कहीं न कहीं पढ़े ही होंगे,
“करत–करत अभ्यास कर, जड़मति होत सुजान।
रसरी आवत जात तें, सिल पर परत निसान”।
इसका अर्थ स्पष्ट है – कुए से पानी खींचने के लिए बर्तन से बाँधी हुई रस्सी कुए के किनारे पर रखे हुए पत्थर से बार -बार रगड़ खाने से पत्थर पर भी निशान बन जाते हैं। ठीक इसी प्रकार बार -बार अभ्यास करने से मंद बुद्धि व्यक्ति भी कई नई बातें सीख कर समझदार हो जाता है।
परंतु इस दोहे से काँग्रेस पार्टी का दूर-दूर तक कोई भी वास्ता नहीं है। इसीलिए वे कई बार भाजपा के सामने बुरी तरह पिटी है। काँग्रेस भाजपा से एक बात जो कभी नहीं सीख पाये, वो ये कि हर आयु के नेतृत्व को एक अवसर अवश्य दें, और अगर कुछ नेता को छोड़ दें, तो भाजपा ने अपने इस नियम को यथावत रखा है। इसलिए ये पार्टी आज विश्व की सबसे बड़ी पार्टी बन चुकी है, जिसके चीन के कम्यूनिस्ट पार्टी से भी ज़्यादा सदस्य है।
काँग्रेस वो पार्टी है, जिसके लिए कुछ नया सीखना मानो अब एक अपराध के समान है। हाल ही में जब ज्योतिरादित्य सिंधिया ने भारतीय जनता पार्टी की सदस्यता ग्रहण की, तो प्रेस से वार्ता के दौरान उन्होने कहा, “आज की स्थिति देखकर मेरा मन व्यथित और दुखी है। जन सेवा के लक्ष्य की पूर्ति उस संगठन के माध्यम से नहीं हो पा रही थी। कांग्रेस आज वह पार्टी नहीं रही जो पहले थी। कांग्रेस में जड़ता का वातावरण है। मध्य प्रदेश में किसानों का ऋण माफ नहीं हुआ। आज भी पिछली फसल का बोनस और मुआवजा नहीं मिल पाया। किसान त्रस्त और नौजवान बेबस हैं। प्रदेश में रोजगार के अवसर नहीं। मध्य प्रदेश में रोजगार के अवसर नहीं बल्कि भ्रष्टाचार के अवसर उपलब्ध हो गए हैं”।
आज भारत के पास विश्व की सबसे युवा जनसंख्या है, जिसकी औसत आयु 30 वर्ष से भी नीचे है। इसका अर्थ है कि भारत की अधिकांश जनसंख्या की आयु 30 वर्ष से भी नीचे है, परंतु भारत की सबसे पुरानी पार्टी माने जाने वाली काँग्रेस के मुख्य वर्किंग कमेटी के अधिकांश सदस्यों की औसत आयु 70 वर्ष से भी ज़्यादा है। चाहे वो तरुण गोगोई हो, हरीश रावत, ऊमन चांडी हो, गुलाम नबी आज़ाद हो, पूर्व प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह हो, एके एंटनी हो, अंबिका सोनी, मल्लिकार्जुन खड़गे हो, अशोक गहलोत हो, आनंद शर्मा, सिद्दारामैया हो या फिर दिग्विजय सिंह ही क्यों न हो, ये सभी काँग्रेस में तब से सक्रिय है जब सोनिया गांधी 1998 में काँग्रेस अध्यक्ष भी नहीं बनी थी। काँग्रेस वर्किंग कमेटी 55 में 20 सदस्य तो 70 वर्ष से भी ऊपर के हैं, जिसमें मोतीलाल वोरा 90 वर्ष से भी ऊपर हैं। CWC में केवल राहुल गांधी और प्रियंका गांधी युवा कहला सकते हैं, और वे भी 30 वर्ष से ऊपर के हैं।
ऐसे में जब भी युवा वर्ग और वृद्ध वर्ग में लड़ाई होती है, तो काँग्रेस पार्टी में वृद्धों की ज़्यादा चलती है, जिसका सबसे ताज़ा उदाहरण है 2018 के विधानसभा चुनाव। एक ओर जहां ग्वालियर चंबल क्षेत्र से ज्योतिरादित्य सिंधिया के नेतृत्व में काँग्रेस ने अप्रत्याशित प्रदर्शन करते हुए मध्य प्रदेश में सत्ता पर अपना कब्जा जमाया, तो वहीं राजस्थान में सचिन पायलट के कुशल नेतृत्व में काँग्रेस ने भाजपा को सत्ता से बाहर किया। परंतु दोनों के प्रदर्शनों को दरकिनार करते हुए पार्टी ने 72 वर्षीय कमलनाथ को मध्य प्रदेश के लिए और 67 वर्षीय अशोक गहलोत को राजस्थान के लिए बतौर मुख्यमंत्री चुना।
कमलनाथ के मुख्यमंत्री पद के चुनाव पर विवाद खड़ा होना स्वाभाविक था। एक तो वे मध्य प्रदेश से कोई संबंध नहीं रखते थे, और न ही वे सिंधिया की तरह ही मध्य प्रदेश में शक्तिशाली मराठी समुदाय के हिस्सा थे। कमलनाथ उत्तर प्रदेश के कानपुर शहर में एक पंजाबी खत्री परिवार के घर पैदा हुए थे, जिसका मध्य प्रदेश में कोई प्रभाव नहीं है। इसके अलावा कमलनाथ पर आपातकाल के दौरान काँग्रेस विरोधियों के विरुद्ध अत्याचार ढाने और 1984 के सिख विरोधी दंगे भड़काने में लिप्त होने के भी आरोप लगाए हैं।
उधर ज्योतिरादित्य सिंधिया न केवल कमलनाथ की तुलना में एक लोकप्रिय नेता हैं, अपितु मराठा समुदाय से भी संबंध रखते थे। मध्य प्रदेश में एक अहम प्रभाव डालने वाले राजपूत समुदाय में भी उनकी छवि काफी लोकप्रिय मानी जाती है। मध्य प्रदेश का एक बच्चा भी बता देगा कि कमलनाथ और ज्योतिरादित्य सिंधिया के बीच किसका पलड़ा भारी पड़ेगा। एक ओर जहां नए भारत में राजनेताओं की एक रिटायरमेंट उम्र सेट की जा रही है, तो वहीं काँग्रेस आज भी अपने बूढ़े नेताओं का भार ढोती दिखाई दे रही है। अब देखना यह होगा कि इस बोझ के साथ काँग्रेस आगे बढ़ती रहती है, या भविष्य में भाजपा से कुछ सीख लेकर अपने नेतृत्व में व्यापक बदलाव लाती है।