जामिया मिलिया इस्लामिया एक बार फिर सुर्खियों में है, और इस बार भी गलत कारणों से। हाल ही में एक प्रोफेसर ने अपने सोशल मीडिया अकाउंट पर यह डींग हांकी कि उसने संस्था के कुछ गैर मुस्लिम विद्यार्थियों को इसलिए फेल कर दिया, क्योंकि वे CAA विरोधी अभियान का हिस्सा नहीं बनना चाहते थे।
जामिया संस्था में सहायक प्रोफेसर अबरार अहमद ने उन सभी गैर मुस्लिम विद्यार्थियों को फेल कर दिया, जो CAA विरोधी अभियान का हिस्सा नहीं थे। परन्तु जनाब वहीं नहीं रुके। ट्विटर पर शेखियां बघारते हुए जनाब कहते हैं, “मेरे सभी स्टूडेंट्स इस बार पास हुए हैं, सिवाय 15 गैर-मुस्लिमों के, जिन्हें दोबारा परीक्षा हेतु बैठना पड़ेगा। यदि तुम CAA विरोधी अभियान का विरोध करते हो, तो मेरे पास 55 विद्यार्थी समर्थन में मौजूद है। बहुमत तुम्हें सबक सिखाएगा। पता नहीं क्यों ये लोग मुझसे नफरत करते हैं।”
बता दें कि जामिया को 2011 में तत्कालीन यूपीए सरकार ने अल्पसंख्यक संस्था का स्टेटस प्रदान किया था। इस कारण यहां पर 50 प्रतिशत सीट अल्पसंख्यकों के लिए आरक्षित होती हैं। परन्तु इसका दुरुपयोग करते हुए इस संस्था को कट्टर इस्लाम के एक गढ़ में परिवर्तित कर दिया गया है। यहां गैर-मुस्लिमों की संख्या बहुत कम है, और जो है, उन्हें भी इस संस्था के अनेक तुगलकी फरमान का पालन करना पड़ता है, जो प्रोफेसर अबरार अहमद के ट्वीट में स्पष्ट देखा जा सकता है।
यूं तो अबरार ने कुछ समय बाद ये ट्वीट डिलीट कर दिया, परन्तु वह ट्वीट वायरल हो चुका था, और सकते में आई प्रशासन को संस्था की लाज बचाने के लिए प्रोफेसर अबरार अहमद को निलंबित करना पड़ा –
Dr. Abrar Ahmad, Asstt Professor of @jmiu_official tweeted in public domain as to failing 15 non-muslim students in an exam. This is a serious misconduct inciting communal disharmony under CCS CONDUCT RULES.The university suspends him pending inquiry.@DrRPNishank @HRDMinistry
— Jamia Millia Islamia (NAAC A++ Grade Central Univ) (@jmiu_official) March 25, 2020
स्वराज्य मैग्जीन की एक रिपोर्ट की माने तो केंद्र सरकार को हर वर्ष इस संस्था के 18500 विद्यार्थियों पर 600 करोड़ रुपए लुटाने पड़ते हैं। इसके बाद भी यहां पास प्रतिशत पुरुषों के लिए 76 तो महिलाओं के लिए मात्र 62 प्रतिशत है।
पर ठहरिए, यदि आपको लगता है कि ये ज़्यादा नहीं हो गया, तो आप गलत हैं। जो जामिया में हुआ, वह तो मात्र झांकी है, इससे भयानक स्तर पर भेदभाव तो जेएनयू, जादवपुर विश्वविद्यालय जैसे संस्थाओं में होता है। जो भी वामपंथ या कट्टर इस्लाम को सलाम नहीं ठोकता है, चाहे वह विद्यार्थी हो या प्रोफेसर, उनके साथ पशुओं से भी बदतर व्यवहार किया जाता है। संस्था में अराजक तत्वों को रोकने के लिए जेएनयू प्रशासन ने ज़रा सी फीस क्या बढ़ा दी, वामपंथी हर उस व्यक्ति के साथ बदसलूकी करने लगे, जो उनकी दृष्टि में उनका समर्थक नहीं था। जनवरी में संस्था में हुई हिंसा के बारे में हम जितना कम बोले, उतना अच्छा।
ऐसे में अबरार अहमद का ट्वीट इस बात का परिचायक है कि कैसे कुछ लोग अपनी विचारधारा को बढ़ावा देने के लिए किसी भी हद तक जा सकते हैं। जो इनका साथ ना दे, उसके लिए यह लोग उसका जीवन नर्क से भी बदतर बना देना चाहते हैं। पर आखिर ये कब तक चलेगा?