भारत की राजनीति में एक दूसरे को शह मात देने का सिलसिला वर्षों पुराना है। राजनीतिक बिसात पर जीत कभी सफ़ेद हाथी की होती है तो कभी काले हाथी की। एक बार का हारा हुआ खिलाड़ी अपने समय और बदले का इंतज़ार करता है। कभी-कभी यह इंतज़ार सदियों पुरानी और पीढ़ियों पर आश्रित हो जाती हैं। ऐसा ही कुछ मध्य प्रदेश के दो राजवाड़ों में देखने को मिल रहा है। गुना से पूर्व कांग्रेस सांसद ज्योतिरादित्य सिंधिया अब BJP में जा चुके हैं और कारण है गांधी परिवार से न बन पाना लेकिन इन दोनों परिवार यानि सिंधिया गांधी परिवार के बीच की बढ़ी खटास के कारण अन्य राजनेता ही हैं। यह और कोई नहीं बल्कि भोपाल से पूर्व सांसद दिग्विजय सिंह हैं।
वर्ष 2018 में जब चुनाव हुए और कांग्रेस मुश्किल से जीत हासिल करने में सफल रही थी और यह कयास लगाया जा रहे थे कि ज्योतिरादित्य को उनकी मेहनत का फल मिलेगा और वह CM बनेंगे। परंतु ऐसा नहीं हुआ और सीएम बने कमालनाथ। ऐसा कहा जाता है कि कमलनाथ को CM बनवाने और सिंधिया को इस पद से दूर रखने में दिग्विजय सिंह का ही हाथ था। सीएम पद से दूर रखने के बाद दिग्विजय ने कांग्रेस पार्टी में सिंधिया का महत्व ही खत्म कर दिया। इस दौरान कई खबर आई कि दिग्विजय अपनी अलग कैबिनेट चला रहे हैं। इससे नाराज होकर कई बार सिंधिया ने पार्टी के विरोध में कदम उठाया और गांधी परिवार की नजर में विलेन बनते चले गए। इसी दूरी की वजह से कभी राहुल गांधी की सेना के स्तंभ माने जाने वाले ज्योतिरादित्य सिंधिया गांधी परिवार से दूर होते चले गए। यह भी बात सामने आई है कि कांग्रेस ज्योतिरादित्य को राज्यसभा भेजने के लिए तैयार थी मगर साथ ही दिग्विजय को भी पुनः राज्यसभा भेजा जा रहा था। इस बात पर ज्योतिरादित्य सिंधिया अड़ गए थे। वो चाहते थे कि दिग्विजय को राज्यसभा ना भेजा जाए।
ज्योतिरादित्य सिंधिया ने सोनिया गांधी से मिलने के लिए Appointment लिया लेकिन सोनिया गांधी मिलने ही नहीं आई। इसी से खिन्न हो कर सिंधिया ने सोनिया गांधी को अपना ईस्तीफ़ा पत्र लिख दिया और कांग्रेस छोड़ने का ऐलान कर दिया। ऐसा पहली बार नहीं था जब दिग्विजय सिंह ने सिंधिया परिवार को सत्ता से बाहर रखने के लिए अपना ज़ोर लगाया हो। ये लड़ाई 200 साल पुरानी है और इसमें दोनों ओर से दांव पेंच जारी हैं। फिलहाल दिग्विजय खुश हो सकते हैं कि आखिर ज्योतिरादित्य कांग्रेस से बाहर हो गए।
मध्यप्रदेश की राजनीति में राघोगढ़ और सिंधिया घराने के बीच आपसी होड़ की कहानी भी कम दिलचस्प नहीं है। इस होड़ की कहानी 200 साल से ज्यादा पुरानी है। जब 1816 में, सिंधिया घराने के दौलतराव सिंधिया ने राघोगढ़ के राजा जयसिंह को युद्ध में हरा दिया था, राघोगढ़ को तब ग्वालियर राज के अधीन होना पड़ा था।
इसका हिसाब दिग्विजय सिंह ने 1993 में माधव राव सिंधिया को मुख्यमंत्री पद की होड़ में परास्त करके और अब ज्योतिरादित्य को न सिर्फ मुख्यमंत्री पद बल्कि कांग्रेस से भी बाहर कर लिया है।
ज्योतिरादित्य के पिता माधवराव सिंधिया 1993 के राज्य विधानसभा चुनावों में कांग्रेस को मिली जीत के बाद इस बात को लेकर आश्वस्त थे कि उन्हें ही सीएम बनाया जाएगा। मगर मुख्यमंत्री की कुर्सी एक ऐसे शख्स को मिली जिसकी किसी को उम्मीद नहीं थी। उस समय मध्य प्रदेश के मुख्यमंत्री बनने की कहानी दिलचस्प है। कहा जाता है कि दिग्विजय सिंह मुख्यमंत्री बन गए और माधवराव सिंधिया दिल्ली में हेलीकॉप्टर तैयार कर फोन आने का इंतजार करते रहे।
दरअसल, उस समय बाबरी मस्जिद का मामला अपने जोरों पर था। बाबरी गिरने के बाद मध्य प्रदेश में राष्ट्रपति शासन लगा दिया गया था। उस दौरान कांग्रेस के प्रदेश अध्यक्ष दिग्विजय सिंह थे। वर्ष 1993 के नवंबर महीने में फिर से विधानसभा चुनाव हुए। लोगों ने कांग्रेस को मध्य प्रदेश में अप्रत्याशित बहुमत दे दिया। इस जीत के बाद कांग्रेस में मुख्यमंत्री पद के कई दावेदार खड़े हो गए जैसे श्यामा चरण शुक्ला, माधवराव सिंधिया और सुभाष यादव। आश्चर्य की बात यह है कि दिग्विजय सिंह उस समय सांसद थे और विधानसभा चुनाव नहीं लड़ा था। काफी दांव-पेंच के बाद और फिर वोटिंग के बाद प्रधानमंत्री पीवी नरसिम्हा के निर्देश पर दिग्विजय सिंह को मुख्यमंत्री बना दिया गया। कहा तो यह भी जाता है कि माधवराव को रोकने के लिए अर्जुन सिंह और दिग्विजय सिंह ने स्वांग रचा था। हालांकि, इसका कोई प्रमाण नहीं है। राजनीतिक विश्लेषक गौरी शंकर राजहंस बताते हैं कि दिग्विजय को श्यामा चरण शुक्ला राजनीति में लेकर आए और अर्जुन सिंह ने उन्हें पहली बार मंत्री बनाया और दोनों के साथ डिब्बा खुला तो दिग्विजय सिंह मुख्यमंत्री बन गए। इस दौरान माधव राव सिंधिया दिल्ली में हेलीकॉप्टर के साथ फोन आने का इंतजार कर रहे थे। उनसे कहा गया था कि जैसे ही खबर दी जाए तत्काल भोपाल आ जाइएगा
दिग्विजय सिंह ने दोनों बार ही अपने चातुर्य से सिंधिया परिवार को मध्य प्रदेश की सत्ता से बेदखल कर दिया। इस बार तो वे ज्योतिरादित्य को कांग्रेस छोड़ने पर ही मजबूर कर दिया। इन दोनों ही रजवाड़ों के बीच यह घमासान भारत की राजनीति में एक नया आयाम लिख रहा है। अब यह देखना दिलचस्प होगा कि पार्टी बदल कर ज्योतिरादित्य मध्यप्रदेश की सत्ता पर अपना वर्चस्व जमा पते हैं या नहीं।