दुनियाभर में फैल रहे कोरोनावायरस की वजह से अब धार्मिक कार्यक्रम और गतिविधियां भी प्रभावित होने लगी हैं। ऐसा देखने में आया है कि दक्षिण कोरिया और मलेशिया जैसे देशों में धार्मिक स्थलों और कार्यक्रमों ने ही कोरोनावायरस को फैलाने में सबसे बड़ी भूमिका निभाई। इसके बाद अब जहां कुछ जगहों पर मंदिरों, मस्जिदों और अन्य धार्मिक स्थलों को बंद किया जा रहा है, तो वहीं कई जगहों पर लोगों ने धार्मिक कार्यक्रमों पर किसी भी प्रकार की रोक लगाने से इंकार कर दिया है। इससे कोरोना वायरस के फैलने का खतरा और ज़्यादा बढ़ता जा रहा है।
आज इस महामारी के समय में धार्मिक स्थलों पर लोगों के इकट्ठे होने से कितनी बड़ी परेशानी खड़ी हो सकती है, इसका उदाहरण आप मलेशिया और दक्षिण कोरिया में देख सकते हैं। दक्षिण कोरिया में शिन्चेऑन्जी चर्च को देश में कोरोना वायरस फैलाने का सबसे बड़ा कारण माना जा रहा है। इस चर्च के करीब 2 लाख 30 हज़ार सदस्य हैं जिनमें से 9 हज़ार लोगों में कोरोनावायरस टेस्ट पॉज़िटिव पाया गया है।
इस चर्च के संस्थापक पर यह आरोप भी लगा है कि उसने अपने सदस्यों में कोरोना के लक्षण सामने आने के बावजूद उन्हें प्रशासन से छुपाया। बीबीसी की एक रिपोर्ट के मुताबिक, “दक्षिण कोरिया में फैले कोरोना वायरस के लिए विशेष धार्मिक संप्रदाय को जिम्मेदार मानते हुए लोगों का गुस्सा फूट रहा है। लोगों ने अब इस चर्च पर प्रतिबंध लगाने के लिए पिटिशन शुरू की है। इस पर अब तक करीब 12 लाख हस्ताक्षर कर चुके हैं।”
ऐसे ही मलेशिया में पेंतालिंग मस्जिद दुनिया के कई देशों में कोरोना फैलाने के लिए जिम्मेदार बनी। 27 फरवरी से लेकर 1 मार्च के बीच यहाँ एक बड़ा धार्मिक कार्यक्रम हुआ था जिसमें लगभग 16 हज़ार लोगों ने हिस्सा लिया था। इनमें 1500 विदेशी नागरिक थे और उन सबका दक्षिण-पूर्वी एशियाई देशों से संबंध था। अब इस मस्जिद से जाने वाले लोगों को संक्रमित पाया जा रहा है और अब इसे वायरस फैलाने का सबसे बड़ा दोषी माना जा रहा है।
इससे पहले ईरान से भी हमें ऐसी ही तस्वीर देखने को मिल रही थी जहां लोग अपनी धार्मिक भावनाओं को जाहिर करने के लिए मस्जिदों के दरवाजों को चूमते और चाटते नज़र आ रहे थे। लोग कह रहे थे कि उन्हें अल्लाह पर भरोसा है और उसे मस्जिदों की दीवार चूमने से कोई नहीं रोक सकता।
This is how Shia Pilgrims lick the Shrines in Iran, Iraq & Syria….. 😨😩😰😩😩😩😩 pic.twitter.com/74j2KU0cp9
— Naveed Shahzad (@naaveedshahzad6) March 17, 2020
ऊपर जो तीन उदाहरण दिये गए हैं, इनसे स्पष्ट हो गया है कि धार्मिक गतिविधियां कोरोनावायरस फैलाने में बड़ी भूमिका अदा कर सकती हैं। ईरान में तो अब चीन से भी ज़्यादा प्रतिदिन के हिसाब से मौतें और मामले देखने को मिल रहे हैं। यही कारण है कि दुनियाभर में मशहूर मंदिरों और मस्जिदों को अस्थायी तौर पर बंद किया जा रहा है। वेस्ट एशिया के अधिकतर देशों ने अपने यहां मस्जिदों को बंद करने का फैसला ले लिया है। इसके अलावा भारत में भी मंदिरों में पूजा कार्यक्रमों को अस्थायी तौर पर बंद करने के फैसला ले लिया गया है।
ओंकारेश्वर ज्योतिर्लिंग में ग्रहण के समय ही मंदिर के कपाट बंद रखे जाते हैं, लेकिन ऐसा पहली बार हुआ है जब वायरस से बचाव के लिए मंदिरों के कपाट बंद कर दिये गए हैं। ममलेश्वर मंदिर को 31 मार्च तक बंद कर दिया गया है। यहां श्रद्धालुओं की भीड़ भी कम हो गई है। ममलेश्वर मंदिर के मुख्य पुजारी पं. महेश शर्मा ने कहा आम दर्शनार्थियों के लिए भले ही पट बंद किए हैं, लेकिन रोज की तरह तड़के 5 बजे, दोपहर 12.15 तथा रात 8.30 बजे की आरती की जाएगी। इसी प्रकार वैष्णो देवी श्राइन बोर्ड ने भी अगले आदेश तक सभी तरह की यात्राओं पर प्रतिबंध लगा दिया है।
LIVE: कोरोना वायरस के बढ़ते खतरे को देखते हुए वैष्णो देवी मंदिर की यात्रा अगले आदेश तक बंद की गई।https://t.co/11b4wtrpBx#CoronavirusOutbreak #coronavirusinindia #CautionYesPanicNo pic.twitter.com/J2WTphVccQ
— NBT Hindi News (@NavbharatTimes) March 18, 2020
इसी प्रकार बिहार के बोधगया के ज्यादातर बौद्ध मंदिरों में चैंटिंग, प्रेयर मेडिटेशन बंद कर दिया गया है। महाबोधि सोसायटी के एक कर्मी ने बताया कि कोरोनावायरस से सुरक्षा को देखते हुए मंदिर का गेट फिलहाल दो से तीन दिनों के लिए बंद किया गया है। यहां के अलावा सारनाथ, लुंबनी, कुशीनगर में मौजूद सोसायटी के मंदिर भी बंद रखने का निर्णय लिया गया है।
हालांकि, कुछ लोग ऐसे भी हैं जो इस संकट के समय में भी इन धार्मिक गतिविधियों पर रोक लगाने से इंकार कर रहे हैं और इस महामारी के फैलाव को और ज़्यादा आसान करने के लिए अपना योगदान दे रहे हैं। 8 मार्च को दक्षिण कोरिया के एक चर्च में 135 लोगों ने Sunday gathering में हिस्सा लिया और यहां कोरोनावायरस को भगाने के लिए कुछ ऐसा किया गया जिससे कोरोना का संक्रमण कई लोगों में फैल गया। दरअसल, यहां लोगों ने कोरोना के फैलाव को रोकने के लिए सभी सदस्यों के मुंह में एक बोतल से saltwater का स्प्रे किया लेकिन सभी सदस्यों के मुंह में बिना nostril बदले ही स्प्रे कर दिया गया, जिससे वुहान वायरस का संक्रमण कुछ लोगों में फैल गया।
वहीं अमेरिका की फ्लॉरिडा में एक चर्च के पादरी ने तो चर्च बंद करने से ही मना कर दिया और उसने मज़ाकिया अंदाज़ में कहा कि वह सिर्फ rapture के दिन ही चर्च बंद करेगा। ईसाई धर्म में rapture का अर्थ उस दिन से होता है जब ईसाई धर्म के सभी लोग भगवान से मिलने के लिए आसमान में उड़ना शुरू कर देते हैं। आगे उसने कहा कि चर्च से ज़्यादा सुरक्षित जगह कोई और हो नहीं सकती है और वह चर्च को कभी बंद नहीं करेंगे।
हमें दुनिया में कई उदाहरणों से देख लिया है कि धार्मिक गतिविधियों से कोरोना वायरस से फैलने के खतरा सबसे ज़्यादा होता है। ऐसे में चाहे मंदिर हो या मस्जिद या फिर चर्च, इन सभी को इस समय बंद कर देना चाहिए और हालातों को स्थिर होने तक इन्हें बंद ही रहने देना चाहिए।