कांग्रेस के कद्दावर नेताओं में से एक ज्योतिरादित्य सिंधिया का कांग्रेस छोड़कर BJP में आना दिखाता है कि कैसे कांग्रेस के बड़े से बड़े नेता भी पार्टी से नाता तोड़कर अपनी नई राजनीतिक पारी शुरू करने की जद्दोजहद में लगे हैं क्योंकि अब उन्हें इस बात का अहसास हो गया है कि कम से कम कांग्रेस के साथ रहकर तो उनका कुछ नहीं होने वाला। आज कांग्रेस में ऐसे नेताओं की कमी नहीं है जो पार्टी की ओर से पूरी तरह नकारे जा चुके हैं। सिंधिया भी ऐसे ही नेताओं मे से एक थे। वर्ष 2018 में जब राज्य में चुनाव हुए थे, तो सिंधिया के समर्थन वाले कैम्प में सिंधिया को CM पद का उम्मीदवार बनाने को लेकर काफी उत्साह था। तब एक फोटो भी काफी प्रचलन में आई थी जिसपर लिखा था “क्यों पड़े हो चक्कर में, कोई नहीं है टक्कर में, chief minister Scindia”।
बाद में चुनाव हुआ, कांग्रेस को जीत मिली और CM बनाया गया कमलनाथ को! तब सिंधिया के समर्थकों में निराशा का माहौल भी था और गुस्सा भी। सिंधिया के समर्थकों का वह गुस्सा आज जाकर शांत हुआ है, लेकिन सिंधिया एकमात्र ऐसे नेता नहीं जो काफी समय से कांग्रेस से पीछा छुड़ाने की कोशिश में लगे थे, बल्कि आज भी कांग्रेस में ऐसे कई नेता हैं जो पार्टी में घुट-घुटकर रहने को मजबूर हैं और सिंधिया के इस्तीफे के बाद हमें उनकी ओर से भी यही प्रतिक्रिया देखने को मिल सकती है।
उदाहरण के तौर पर राजस्थान में उप-मुख्यमंत्री सचिन पायलट और मुख्यमंत्री अशोक गहलोत के बीच भी तनाव देखने को मिलता रहता है। वर्ष 2018 में जब राजस्थान में चुनाव हुए थे, तो सचिन पायलट के समर्थकों ने उन्हें CM पद का दावेदार बनाने पर जोर दिया था। बाद में चुनावों में जीत होने के बाद जब गहलोत को CM बनाया गया तो दोनों गुटों में मारपीट तक की नौबत आ गयी थी। राज्य की राजनीति पर पैनी पकड़ रखने वाले एक विश्लेषक कहते हैं, “राजस्थान में कांग्रेस संगठन और सरकार के बीच लंबे समय से बन नहीं रही है। मुख्यमंत्री बनने की मंशा तो सचिन पायलट की है ही”। बता दें कि अभी प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष का पद सचिन पायलट के पास ही है। ऐसे में हो सकता है कि वे भी अपनी इच्छाओं की पूर्ति के लिए भाजपा का दामन थाम लें।
सिंधिया के BJP का हाथ थामने पर हरियाणा से कांग्रेस नेता कुलदीप बिशनोई की प्रतिक्रिया भी देखने लायक है। बिश्नोई ने ट्विटर पर लिखा, ‘सिंधिया पार्टी में एक केन्द्रीय स्तंभ थे, नेतृत्व को उन्हें मनाने के अधिक प्रयास करने चाहिए थे।‘ उन्होंने आगे कहा कि सिंधिया की तरह देशभर में कई अन्य समर्पित कांग्रेस नेता हैं, जो अलग-थलग और असंतुष्ट महसूस कर रहे हैं। इससे कहीं ना कहीं इस बात की ओर भी इशारा जाता है कि खुद कुलदीप बिश्नोई भी अपने पार्टी के नेतृत्व से खुश नहीं हैं और वे भी बेहतर अवसरों की तलाश में हैं। पिछले वर्ष अगस्त में जब केंद्र सरकार ने कश्मीर से अनुच्छेद 370 हटाया था, तो हरियाणा के अन्य कांग्रेस के नेताओं की तरह ही बिश्नोई ने भी इस फैसले का समर्थन किया था। यह दिखाता है कि कांग्रेस के शीर्ष नेतृत्व और कांग्रेस की राज्य इकाई के बीच कोई तालमेल ही नहीं है और इससे कई नेता पार्टी छोड़ने पर मजबूर भी हो सकते हैं।
.@JM_Scindia’s departure is a big blow to @INCIndia. He was a central pillar in the party & the leadership should’ve done more to convince him to stay. Like him, there are many other devoted INC leaders across the country who feel alienated, wasted & discontented. 1/2 https://t.co/oTLXuqTAui
— Kuldeep Bishnoi (Modi Ka Parivar) (@bishnoikuldeep) March 10, 2020
ऐसे ही कांग्रेस के एक अन्य नेता हैं मिलिंद देवड़ा। मिलिंद देवड़ा कई मौकों पर अपनी ही कांग्रेस पार्टी के खिलाफ बोलते आए हैं। एक देश एक चुनाव के मुद्दे पर वे बीजेपी सरकार का समर्थन कर चुके हैं, वो भी अपनी पार्टी लाइन से हटकर। पिछले वर्ष जून में उन्होंने ट्विटर पर एक विस्तृत पोस्ट में कहा था, “सरकार के प्रस्ताव पर खुले मन से विचार किया जाना चाहिए। अभी तक इसके प्रमाण नहीं मिले हैं कि एक साथ चुनाव कराने से केंद्र में सत्तारूढ़ दल को फायदा मिलेगा। हाल ही में लोकसभा चुनावों के साथ अरुणाचल प्रदेश, ओडिशा, और आंध्र प्रदेश विधानसभा के चुनाव कराए गए थे। ओडिशा और आंध्र में वे दल जीते जिनका भाजपा के साथ गठबंधन नहीं था”।
My personal views on the ongoing #OneNationOneElection debate pic.twitter.com/dUxP5BeJ80
— Milind Deora | मिलिंद देवरा ☮️ (@milinddeora) June 19, 2019
महज 43 साल की उम्र में, देवड़ा का लंबा राजनीतिक जीवन है। उनकी सबसे बड़ी खासियत यह है कि वह खुद को पहले “एक भारतीय, तब एक सांसद और फिर एक कांग्रेसी” के रूप में देखते है। ऐसे में भाजपा पार्टी उनके लिए भी उपयुक्त सिद्ध हो सकती है।
सिंधिया की तरह ही एक और नेता हैं जिनका कांग्रेस से मोह भंग हो चुका है, और उनका नाम है जितिन प्रसाद। जितिन के पिता जितेंद्र प्रसाद को कांग्रेस पार्टी में काफी प्रताड़ना का शिकार होना पड़ा था। कांग्रेस पार्टी में सोनिया के खिलाफ सोच रखने वाले नेताओं ने जितेंद्र प्रसाद का खूब उपयोग किया और फिर उन्हें किनारे कर दिया। बाद में उनकी Brain Hemorrhage से मृत्यु हो गई। यही कारण है कि जितिन प्रसाद भी कभी दिल से कांग्रेस को नहीं चाहते हैं, और वे भी अपनी सुविधा अनुसार पार्टी छोड़ सकते हैं।
ये वो नेता हैं जो कांग्रेस पार्टी में तो हैं, लेकिन उनकी विचारधारा और योग्यता कांग्रेस पार्टी के स्तर से कहीं बेहतर है। सिंधिया को तो समझ में आ गया कि उनका कांग्रेस पार्टी में कुछ नहीं हो सकता, इसलिए वे BJP में शामिल हो गए। अब जैसे ही इन नेताओं को अवसर मिलेगा, ये नेता भी कांग्रेस पार्टी से छुटकारा पाने में देर नहीं लगाएंगे।