जम्मू कश्मीर को केंद्र शासित प्रदेश बने अभी कुछ ही महीने हुए हैं, और सरकार अभी से राज्य को मुख्यधारा से जोड़ने के लिए प्रयासरत है। हाल ही में जम्मू कश्मीर के राजकीय शिक्षा बोर्ड ने पाठ्यक्रम में जम्मू कश्मीर के पुनर्गठन और अनुच्छेद 370 से संबन्धित अध्याय को शामिल किया है।
जम्मू-कश्मीर विद्यालय शिक्षा बोर्ड (जेकेबीओएसई) ने दसवीं कक्षा के राजनीति विज्ञान विषय के पाठ्यक्रम में जम्मू कश्मीर पुनर्गठन कानून, 2019 से जुड़ा एक अध्याय शुरू किया है। सामाजिक विज्ञान के किताब (सामाजिक विज्ञान लोकतांत्रिक राजनीति-2) के आठवें अध्याय के चौथे खंड में राज्य के पुनर्गठन से संबंधित अध्याय को शामिल किया गया है।
मीडिया के सूत्रों के अनुसार नए अध्याय में पिछले साल अगस्त में संसद के दोनों सदनों द्वारा पारित किए गए प्रस्ताव और राष्ट्रपति के हस्ताक्षर के बाद उपनियम (1) को छोड़कर अनुच्छेद 370 के सभी खंड निष्प्रभावी होने के बारे में बताया गया है। यह कानून 31 अक्टूबर से प्रभावी हुआ और राज्य दो केंद्र शासित हिस्सों में बंटने के बाद सीधे केंद्र के नियंत्रण में आ गया।
जेके शिक्षा बोर्ड की अध्यक्ष वीणा पण्डिता के अनुसार, “हमने कक्षा छह से लेकर कक्षा 10 तक की पुस्तकों में कुछ बदलाव किए हैं। इसमें हमने बताया है कि कैसे राज्य की स्थापना हुई, कैसी यहाँ की परिस्थितियाँ थी, और कैसे इस राज्य का पुनर्गठन हुआ। पुनर्गठन एक्ट पर कुछ आवश्यक जानकारी भी उपलब्ध है”।
अध्याय में अनुच्छेद 370 के निष्प्रभावी होने के बाद राज्य पर पड़ने वाले इसके प्रभाव के बारे में भी विस्तार से बताया गया है। इतना ही नहीं, उक्त अध्याय में जम्मू-कश्मीर के महाराजा हरि सिंह के भारत के साथ आने से लेकर अनुच्छेद 35-ए के तहत जम्मू कश्मीर राज्य विधानसभा को मिली शक्तियों और केंद्र शासित प्रदेश लद्दाख के बारे में भी जानकारी दी गई है। इस निर्णय से अब जम्मू कश्मीर के बच्चों का अपने राज्य से वास्तविक इतिहास से न केवल परिचय होगा, अपितु उन्हें भी इस बात का आभास होगा कि उनके अधिकारों के नाम पर कैसे कुछ नेताओं ने दशकों तक पूरे कश्मीर को अंधकार में रखा।
परंतु यह निर्णय इतना अहम क्यों है? इसके लिए हमें जाना होगा स्वतंत्रता के समय भारत की स्थिति की ओर, जब देश के अन्य प्रान्तों की भांति जम्मू कश्मीर का राज्य भी स्वतंत्र रहना चाहता था। परंतु महाराजा हरि सिंह ने जल्द ही भाँप लिया कि भारत के साथ रहने में ही उनकी भलाई है। उन्होंने इस विषय पर अपने विचार अपने तत्कालीन प्रधानमंत्री मेहर चंद महाजन के साथ साझा भी किए, और सितंबर में ही उन्होंने भारत सरकार से भारत में विलय की अपनी इच्छा को जाहिर किया था।
परंतु जवाहरलाल नेहरू की अक्षमता के कारण इस विचार को कभी लागू नहीं किया गया। इसके बाद कश्मीर का भारत में विलय तो हुआ, परंतु उसके साथ अनुच्छेद 370 का भी कलंक लग गया, जिसके अंतर्गत कश्मीर को भारत की मुख्यधारा से अलग करने के भरसक प्रयास किए गए।
हालांकि, इस ऐतिहासिक भूल को सुधारते हुए भारतीय सरकार ने पिछले वर्ष 5 अगस्त 2019 की सुनहरी सुबह को एक ऐतिहासिक निर्णय लिया। राज्य सभा में गृह मंत्री अमित शाहे ने घोषणा की कि अनुच्छेद 370 के विशेषाधिकार प्रावधानों को न केवल निरस्त किया गया है, अपितु जम्मू कश्मीर को एक केंद्र शासित प्रदेश बनाने का भी निर्णय लिया गया है। इन दोनों निर्णयों को सर्वसम्मति से पारित कराते हुए केंद्र सरकार ने इस निर्णय को 31 अक्टूबर 2019 से लागू करवाया। हम आशा करते हैं कि जम्मू कश्मीर के पुनर्गठन एक्ट को पाठ्यक्रम में शामिल करने का यह निर्णय सार्थक हो और जम्मू एवं कश्मीर को भारत की मुख्यधारा से जोड़ने का यह अभियान यूं ही चलता रहे।