सीएए और एनपीआर के विषय पर एक बार फिर महा विकास अघाड़ी में तनातनी शुरू हो गयी है। पर ठहरिए, इस बार निशाने पर उद्धव ठाकरे नहीं है बल्कि शरद पवार हैं। पहले उनके भतीजे अजित पवार पवार ने उन्हें चुनौती दी, और फिर काँग्रेस पार्टी को चुनौती देते हुए सीएए और एनपीआर का खुलेआम समर्थन किया है।
पिछले हफ्ते एक रैली में अजित पवार पवार ने स्पष्ट कर दिया था कि राज्य के किसी भी व्यक्ति को नागरिकता संशोधन अधिनियम या नेशनल पॉपुलेशन रजिस्टर से कोई नुकसान होगा। पवार के कहा था, “मैंने पहले भी बहुत बार कहा है और अब सरकार ने भी ये स्पष्ट कर दिया है कि इन अधिनियमों से किसी भी महाराष्ट्र निवासी को कोई नुकसान नहीं होगा। उद्धवजी ने भी यही कहा है। कृपया दूसरे राज्यों में पारित प्रस्तावों की दुहाई देकर राज्य का माहौल खराब न करें”।
अजित पवार पवार का यह इशारा अपने चाचा शरद पवार से ज़्यादा काँग्रेस पार्टी की ओर था, जिसने अपने शासित राज्यों में सीएए के विरुद्ध प्रस्ताव पारित करवाए। इससे पहले उद्धव ठाकरे ने सीएए और एनपीआर को प्रत्यक्ष रूप से अपना समर्थन दिया थ। उद्धव के कहा था, “महाराष्ट्र से संबंधित कई मुद्दों पर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के साथ बातचीत हुई। मैंने उनके साथ सीएए, एनपीआर और एनआरसी पर भी बात की। किसी को भी सीएए से डरने की जरुरत नहीं है। एनपीआर किसी को भी देश से बाहर नहीं निकालेगा”।
चूंकि काँग्रेस और एनसीपी, खासकर शरद पवार सीएए, एनआरसी और एनपीआर के धुर विरोधी थे, इसलिए वे चाहते थे कि उद्धव ठाकरे की सरकार महाराष्ट्र में भी सीएए और एनआरसी को लागू न करने का प्रस्ताव पारित करे। लेकिन अब उद्धव ठाकरे के साथ-साथ अजित पवार भी इस योजना के विरुद्ध मोर्चा ताने खड़े हो गये हैं। जहाँ सीएए, एनआरसी और एनपीआर के मुद्दे पर एक तरफ शरद पवार और कांग्रेस तो दूसरी तरफ उद्धव ठाकरे और अजित पवार हैं। परन्तु यहाँ दो पवार के बीच ये टकराव कई संकेत दे रहा है.
स्पष्ट है अजित पवार के वर्तमान बयान शरद पवार के स्टेंड के खिलाफ है। हालांकि, ऐसा पहली बार नहीं हुआ है जब अजित पवार ने अपने विचारधारा से पलटी खाई हो। जनाब ने नवंबर में सभी को चौंकाते हुए बीजेपी से गठबंधन करते हुए सरकार बनाने का दावा पेश किया, परंतु संख्याबल में कमी आने पर अजीत ने देवेंद्र को ठेंगा दिखाते हुए महा विकास अघाड़ी का दामन थाम लिया। परंतु अभी जो कुछ भी हुआ है, उससे स्पष्ट है कि महा विकास अघाड़ी में सब कुछ ठीक नहीं है, खासकर इसका सबसे ज्यादा प्रभाव एनसीपी पर पड़ रहा है। ऐसा लगता है कि अजित पवार पार्टी में अपनी अलग पहचान बनाना चाहते हैं वो भी अपने चाचा की छत्रछाया के बिना.
पर अब सवाल ये उठता है कि अजित के बगावती तेवर अभी क्यों सामने आये हैं? इसके लिए हमें 2019 के लोक सभा चुनावों पर एक नजर डालनी होगी। महाराष्ट्र में 19 लोकसभा सीटों पर लड़ने वाली एनसीपी को मात्र 4 सीटें ही प्राप्त हुईं थी। इस शर्मनाक हार के पीछे पवार वंश में तनातनी का शुरू होना था। पहली बार चाचा भतीजा में तकरार की वजह शरद पवार का अजीत के बेटे पार्थ को लोकसभा टिकट देने में आनाकानी करना। पार्थ को टिकट तो मिला, परंतु लोकसभा में पराजय के कारण अजीत पवार और शरद पवार के संबंधो में खटास आ गयी।
इसके अलावा शरद पवार का रोहित पवार को प्राथमिकता देना भी अजित को फूटी आँख नहीं सुहाया। ऐसे में अजित पवार शरद और उनकी पुत्री सुप्रिया सुले के विरुद्ध अकेले अपनी लड़ाई लड़ रहे हैं। इतना ही नहीं, जब पिछले वर्ष मराठा समुदाय पर अपनी पकड़ मजबूत करने के उद्देश्य से अजित पवार ने एनसीपी के झंडे के साथ केसरिया ध्वज लगाने का सुझाव दिया, तो शरद पवार ने पल्ला झाड़ते हुए कहा कि यह अजीत का निजी सुझाव है, और पार्टी का इससे कोई लेना देना नहीं।
अब अजित पवार ने एक बार फिर से अपने बगावती तेवर दिखाए हैं, ऐसे में ये कहना गलत नहीं होगा कि आगे चलकर वो एनसीपी में बढ़ते आंतरिक मतभेद का सबसे बड़ा कारण उभरकर सामने आयें। ऐसा हो भी क्यों न सभी नेता की राजनीतिक महत्वाकांक्षाएं होती हैं अजित पवार की भी होंगी ही। अब वो इसे किस दिशा में लेकर जाते हैं और पवार बनाम पवार की लड़ाई क्या नया मोड़ लेती है ये देखना दिलचस्प होगा।