देश की राजनीति में “गरीबी” शब्द शुरू से ही एक बड़ा key word रहा है। देश के कई राजनेताओं ने अपनी गरीबी का प्रचार करके अपनी राजनीतिक दुकानों को बखूबी चलाया है। वर्ष 1971 के चुनावों में प्रधानमंत्री इन्दिरा गांधी ने गरीबी हटाओ का नारा दिया था और तब उन्होंने देश से गरीबी हटाने का संकल्प लिया था। देश से गरीबी तो कभी नहीं हट पायी लेकिन इस नारे के बल पर कांग्रेस ने कई सालों तक देश पर राज जरूर किया। आज भी कई राजनेता सार्वजनिक मंचों पर अपनी गरीबी का प्रदर्शन करने से पीछे नहीं हटते हैं, लेकिन असल में उनके परिवार की संपत्ति करोड़ों में होती है। मायावती से लेकर ममता बनर्जी तक और लालू से लेकर चन्द्रबाबू नायडू तक, सब राजनेताओं का रहने का सलीका बेहद साधारण होगा और उनकी निजी संपत्ति भी कम ही देखने को मिलती है, लेकिन इनके करीबी रिश्तेदारों की संपत्ति हमेशा करोड़ों में ही देखने को मिलती है और वो भी किसी आय के बड़े स्रोत के बिना।
उदाहरण के तौर पर आंध्र प्रदेश के मुख्यमंत्री चन्द्रबाबू नायडू को ही देख लीजिये। नवंबर 2018 में जब चुनावों से पहले नायडू ने अपनी संपत्ति को सार्वजनिक किया था, तो कई बड़े अहम खुलासे हुए थे। उस दौरान यह सामने आया था कि एक ही वर्ष में नायडू के परिवार की संपत्ति साढ़े 12 करोड़ रुपये बढ़ गयी थी। इस दौरान चंद्रबाबू नायडू की अपनी संपत्ति 2.53 करोड़ रुपये से बढ़कर तीन करोड़ रुपये के करीब, उनकी पत्नी की संपत्ति 25 करोड़ से बढ़कर 31 करोड़ हो गई थी। इसी तरह चंद्रबाबू नायडू के बेटे और पोते की संपत्ति में भी इजाफा हुआ था। चन्द्र बाबू नायडू के बेटे नारा लोकेश की संपत्ति 15.21 करोड़ से बढ़कर पिछले साल 21.40 करोड़ हो गई थी जबकि चंद्रबाबू नायडू के तीन साल के पोते देवांश की संपत्ति 18.71 करोड़ रुपये हो गई थी, जो उससे पिछले साल 11.54 करोड़ रुपये थी।
इससे ये सामने आया था कि अपना पूरा जीवन राजनीति में गुजारने के बाद भी आंध्र प्रदेश के मुख्यमंत्री चंद्रबाबू नायडू उतनी संपत्ति नहीं जुटा पाए जितनी संपत्ति उनके पोते नारा देवांश ने मात्र साढ़े 3 साल की उम्र में जुटा ली। आपको बता दें कि नारा देवांश की संपत्ति अपने दादा यानी चंद्रबाबू नायडू से 6 गुना ज्यादा है।
इसी तरह गरीब, दलित पिछड़ों की राजनीति करने वाली मायावती भी गरीबी के नाम पर लोगों का वोट बटोरती आईं हैं लेकिन उनके परिवार की संपत्ति अन्य राजनेताओं की तरह ही करोड़ों में है। उनके विरोधी उन्हें अक्सर दौलत की देवी कहते हैं। इसका एक कारण भी है। पिछले साल जुलाई में जब मायावती के भाई पर इनकम टैक्स का छापा पड़ा था तो यह सामने आया था कि मायावती के भाई की सम्पत्ति में अचानक लगातार इजाफ़ा हुआ है और उनकी 2007 से लेकर 2014 तक ये संपत्ति 18000 फ़ीसदी बढ़ी है। इसी के साथ पिछले वर्ष IT की छापेमारी में मायावती के भाई आनंद कुमार की 400 करोड़ की संपत्ति को जब्त किया गया था।
इतना ही नहीं, पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी का भतीजा अभिषेक बनर्जी भी कई करोड़ की संपत्ति का मालिक है। वर्ष 2014 में अपने पहले चुनाव के दौरान अभिषेक ने अपनी संपत्ति 23.57 लाख बताई थी। पिछले साल लोकसभा चुनावों में दायर हलफनामे में अभिषेक ने अपनी संपत्ति 71.4 लाख बताई थी। यानि 5 सालों में ही ममता के भतीजे की संपत्ति तीन गुना से भी ज़्यादा बढ़ गयी है।
बिहार की राजनीति भी इस सब से अछूती नहीं रही है। चारा घोटाले मामले में सजा काट रहे लालू प्रसाद यादव बेशक साधारण वस्त्रों में रहकर सादा जीवन जीने का नाटक करते हों, लेकिन उनके परिवार और उनके बेटों के पास भी करोड़ों में संपत्ति है। उनके बेटे तेज प्रताप यादव की संपत्ति 2015 में दो करोड़ 1 लाख रूपए बतायी गयी थी, वर्ष 2017 में फिर संपत्ति की घोषणा हुई तो ये 3 करोड़ बतायी गयी , यानि दो साल में तेजप्रताप की संपत्ति करीब 1 करोड़ रूपए बढ़ गयी थी। इसके अलावा तेजप्रताप के पास एक बीएमडब्लू कार और 15 लाख की एक मोटरसाइकिल भी है दूसरे बेटे तेजस्वी यादव की बात करें, तो 2015 में दिए हलफनामे के मुताबिक इनकी सपंत्ति करीब दो करोड़ बत्तीस लाख थी जो 2017 में घटकर करीब डेढ़ करोड़ रह गयी, यानि दो साल में तेजस्वी यादव की संपत्ति करीब 82 लाख रूपए घट गयी।
इससे ये बात तो तय है कि देश के तथाकथित गरीब राजनेता बेशक अपने साधारण और सादा जीवन का प्रदर्शन कर गरीब लोगों को लुभाने का काम करते हों, लेकिन असल में इनके परिवार वालों के पास, यहां तक कि बच्चों के पास भी इतनी संपत्ति होती है कि कोई आम आदमी पूरे जन्म में इतना रुपया नहीं कमा पाता है।