कांग्रेस में जब से ज्योतिरादित्य सिंधिया के कांग्रेस छोड़ने की बात हुई है तब से खलबली मची हुई है। हालांकि, सिंधिया राजघराने से ज्योतिरादित्य पहले उनकी दादी और फिर उनके पिता भी कांग्रेस आलाकमान से मतभेद के कारण कांग्रेस छोड़ चुके हैं। इसे संयोग कहिये या ज्योतिरादित्य सिंधिया की बदला लेने की रणनीति कि उन्होंने कांग्रेस पार्टी छोड़ने की जो तारीख चुनी ठीक उसी दिन उनके पिता की जयंती थी।
बात 1 जनवरी 1996 की है, तब केंद्र में कांग्रेस की सरकार थी। प्रधानमंत्री थे नरसिम्हा राव। उस दौरान एक डायरी राष्ट्रीय मुद्दा बनी हुई थी और यह डायरी थी कारोबारी और हवाला ऑपरेटर एस के जैन की। कई परियोजनाओं की रफ्तार बढ़ाने और अपना काम निकलवाने के लिए एस के जैन ने कई नेताओं को घूस खिलाई थी जिनका नाम इस डायरी में लिखा था। इस डायरी के सामने आने के बाद लालकृष्ण आडवाणी, बलराम जाख़ड़, वी सी शुक्ला, माधवराव सिंधिया और मदन लाल खुराना जैसे दिग्गज नेताओं पर कई सवाल खड़े हुए थे। 1 जनवरी को कांग्रेस के दिग्गज नेता और तत्कालीन केंद्रीय मानव संसाधन विकास मंत्री माधवराव राव सिंधिया का नाम आते ही हड़कंप मच गया। इसके बाद उन्होंने तुरंत अपने पद से इस्तीफा दे दिया। माधवराव राव सिंधिया पर 75 लाख रूपए घूस लेने के आरोप लगे थे। इसका असर यह हुआ कि कांग्रेस के आलाकमान ने वर्ष 1996 अप्रैल मई में हुए लोकसभा चुनावों में सिंधिया को टिकट देने से इंकार कर दिया था।
वर्ष 1971 में राजनीति में आने के बाद से एक भी लोकसभा चुनाव नहीं हारने वाले और 84 के चुनाव में अजातशत्रु अटल बिहारी वाजपेयी को हराने वाले माधव राव सिंधिया के लिए यह फैसला किसी अपमान से कम नहीं था। इसी अपमान का बदला लेने के लिए सिंधिया ने कांग्रेस से नाता तोड़ लिया और अपनी एक अलग पार्टी बनाई जिसका नाम था मध्य प्रदेश विकास कांग्रेस(MPVC)। न सिर्फ उन्होंने कांग्रेस से अलग अपनी पार्टी बनाई बल्कि लोकसभा चुनावों में कांग्रेस के प्रत्याशी को ग्वालियर की सीट से हराया भी। परन्तु, माधव राव लंबे समय तक कांग्रेस से अलग नहीं रहे और वो फिर से पार्टी में वापस आ गए थे।
उस समय उनके अलग होने का कारण कांग्रेस हाईकमान द्वारा अपमान था। अब ऐसा लग रहा है कि इतिहास फिर से खुद को दोहरा रहा है क्योंकि कांग्रेस के आलाकमान यानि गांधी परिवार से मतभेद के कारण पार्टी से किसी सिंधिया परिवार के सदस्य के अलग होने की कहानी ज्योतिरादित्य सिंधिया के रूप में फिर से देखने को मिल रही है। माधव राव सिंधिया के बेटे ज्योतिरादित्य सिंधिया ने कांग्रेस से खिन्न होकर पार्टी से इस्तीफा दे दिया है। अब वह कांग्रेस छोड़ BJP में अपनी राह तलाशेंगे। ज्योतिरादित्य का मानना है कि वह कांग्रेस में जिस चीज के हकदार थे उन्हें वह नहीं मिला। उन्होंने कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गांधी को लिखे अपने इस्तीफा पत्र में कहा, ‘‘इसलिए, अब मेरे लिए आगे बढ़ने का वक्त आ गया है।’’ सिंधिया ने कांग्रेस अध्यक्ष को मंगलवार को लिखे पत्र में कहा है कि आज के घटनाक्रम की पृष्ठभूमि पिछले एक साल से तैयार हो रही थी।
बता दें कि जब कांग्रेस ने मध्य प्रदेश में मामूली अंतर से चुनाव जीता और सरकार बनाई तब मुख्यमंत्री का पद ज्योतिरादित्य को न देकर सोनिया के ओल्ड गार्ड कमलनाथ को दे दी गयी थी। जबकि जमीनी स्तर पर पार्टी को जीताने के लिए किसी ने मेहनत की थी तो वो सिंधिया ही थे जो इस पद के लिए एक योग्य उम्मीदवार थे। हद तो तब हो गयी जब सिंधिया को मध्य प्रदेश कांग्रेस प्रमुख भी बनने के लिए भी अनुरोध करने पड़े लेकिन सिंधिया के रुतबे से डरे हुए कमलनाथ ने यह पद अपने पास ही रखा। गांधी परिवार और सिंधिया के बीच तल्खी इतनी बढ़ गयी की उन्हें इस्तीफा देना पड़ा।
ग्वालियर राजघराने से ताल्लुक रखने वाले ज्योतिरादित्य सिंधिया का कांग्रेस छोड़ना और उनके भाजपा में शामिल होने की खबर उनकी अपनी दादी विजयराजे सिंधिया के नक्शे कदम पर चलते हुए ‘‘घर वापसी’’ करने जैसा है। राजा जीवाजी राव सिंधिया और राजमाता विजया राजे सिंधिया के पुत्र माधव राव ने भी पढ़ाई के बाद पहली बार चुनाव जनसंघ के टिकट पर लड़ा था। मतलब यह कि उनके पिता ने भी जनसंघ से अपने राजनीतिक करियर की शुरुआत की थी। आरएसएस से माधव राव के परिवार के ऐतिहासिक रिश्ते रहे हैं।
सिंधिया राजघराने का सियासी सफर कांग्रेस से 1957 में शुरू हुआ था। राजमाता विजयाराजे सिंधिया ने 1957 और 1962 का लोकसभा चुनाव कांग्रेस के टिकट पर ही जीता था। लेकिन 1969 में जब इंदिरा सरकार ने प्रिंसली स्टेट्स की सारी सुविधाएं छीन लीं तो गुस्से में आकर विजया राजे सिंधिया जनसंघ में आ गईं। उनके साथ ही विदेश से पढ़ाई कर वापस लौटे उनके बेटे माधव राव सिंधिया ने 1971 में जनसंघ की टिकट पर गुना से चुनाव लड़ा और जीते भी लेकिन, 1980 में वे कांग्रेस में शामिल हो गए। कांग्रेस (I) की टिकट से चुनाव लड़ा। परंतु 1996 के जैन डायरी और कांग्रेस द्वारा टिकट न दिए जाने से कांग्रेस को छोड़ अपनी एक अलग पार्टी ही बना ली थी। हालांकि, दो वर्षों तक बाहर रहने के बाद उन्होंने 1998 में फिर से कांग्रेस का दामन थाम लिया था। परन्तु राजमाता विजयाराजे सिंधिया ने कांग्रेस का दामन छोड़ने के बाद कभी मुड़कर कांग्रेस की ओर नहीं देखा। कुल मिलाकर सिंधिया राज घराने का कांग्रेस की हरकतों के कारण पार्टी को छोड़ने का सिलसिला पुराना रहा है और जिसे ज्योतिरादित्य ने बस आगे बढ़ाया है।