विषम परिस्थिति में कड़े कदम उठाने से नहीं हिचकिचाना चाहिए चाहे वो किसी भी क्षेत्र से क्यों न जुड़ा हो। कोरोनावायरस के समय में भी प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने एक सप्ताह में दूसरी बार देश को संबोधित करते हुए पूरी तरह से 21 दिनों के लिए लॉकडाउन की घोषणा की। यह फैसला कोई आम फैसला नहीं है क्योंकि भारत की जनसंख्या 135 करोड़ से अधिक है और इस जनसंख्या के साथ किसी देश को लॉकडाउन करना किसी अजूबे से कम नहीं है।
प्रधानमंत्री ने दृढ़ निश्चय का नमूना पेश करते हुए लॉकडाउन के समय आने वाले हिंदुओं के सबसे बड़े त्योहारों में से एक रामनवमी को भी घरों तक सीमित कर दिया है। भारत जैसे विशाल देश में नवरात्रि को एक प्रकार से रोकना पीएम मोदी के लिए कोई सरल काम नहीं था, लेकिन फिर भी मानवता और जनता के लिए अगर किसी प्रकार का त्याग किया जाता है तो वह भी सनातन धर्म ही है। रामनवमी जैसे त्योहार के लिए पूरा देश उत्साहित रहता है और जुलूस की तैयारियां होती हैं लेकिन इस बार कोरोनावायरस से इस लाड़ाई को जीतने के लिए देश ने इस त्योहार को अपने अपने घरों में ही मनाने की बात को स्वीकार कर लिया है।
दूसरे देशों और संप्रदायों को भारत और सनातन संस्कृति से सीखने की आवश्यकता है कि मानवता ही सबसे बड़ा धर्म और कर्तव्य है। सनातन संस्कृति की यही सीख है कि किसी भी चीज़ से पहले मानव सेवा है और आज के समय में कोरोनावायरस को रोकने के लिए अपने घर में रह कर सोशल डिस्टेन्सिंग करना ही सबसे बड़ा मानव धर्म होगा जिससे यह वायरस और न फैले। भारत सरकार के दिशा निर्देशों में स्पष्ट लिखा है कि पुजा करने के सभी स्थान बंद रहेंगे। किसी भी प्रकार के धार्मिक एकत्रीकरण की परमिशन नहीं है, बिना किसी अपवाद के।
अगर दूसरे देशों में देखें तो धार्मिक गतिविधियों पर रोक न लगाने के कारण ही कोरोनावायरस आग की तरह फैला और इसने पूरे देश को अपने चपेटे में ले लिया। ईरान हो या मलेशिया या फिर दक्षिण कोरिया और चीन ही क्यों न हो। ऐसा लगता है इसी लिस्ट में अब अमेरिका भी शामिल हो जाएगा। कोरोनावायरस की महामारी ने दुनिया में चीन, इटली के बाद अमेरिका में सबसे ज्यादा तबाही मचाई है। यहां पर पॉजिटिव मामलों की संख्या 50 हजार के पार चली गई है, लेकिन इस बीच मंगलवार को अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने बड़ा बयान दिया।
ट्रंप ने कहा कि वो ईस्टर त्योहार से पहले देश को खोलना चाहते हैं, ताकि लोग यहां आ सकें और त्योहार मना सकें। फॉक्स न्यूज़ के साथ एक टाउनहॉल में चर्चा करते हुए डोनाल्ड ट्रंप ने कहा कि एक्सपर्ट्स सलाह दे रहे हैं कि देश को बंद रखना चाहिए। लेकिन वो चाहते हैं कि ईस्टर के लिए देश को खोल दिया जाए, ताकि अमेरिकी लोग सड़कों पर निकलकर त्योहार का आनंद ले सकें।
अब अमेरिका कोरोनावायरस का एपिसेंटर बनता जा रहा है, ऐसे समय में ईस्टर के लिए परमिशन देना अमेरिका के लिए घातक साबित होगा।
मलेशिया का उदाहरण देखें तो कोरोनावायरस फैलाने में मुस्लिम प्रचारकों के सहभागिता की। इस महामारी को फैलाने में विशेषकर तब्लीगी जमात ने मिडल ईस्ट में कई सभाएं की। इनमें से एक कुआलालंपुर में पेटलिंग मस्जिद में चार दिवसीय मुस्लिम जनसभा का आयोजन किया गया था, जिसमें 1500 विदेशियों सहित 16 हजार स्थानीय लोग शामिल हुए थे। इस खबर के लिखे जाने तक मलेशिया में 1500 से ज़्यादा वुहान वायरस के केस कंफर्म हो चुके हैं। इससे स्पष्ट होता है किसी भी प्रकार के सामाजिक कार्यक्रम जिसमें लोगों का समूह एक दूसरे के संपर्क में आता है उससे इस कोरोनावायरस के संक्रामण के बढ़ने की आशंका 200 प्रतिशत हो जाती है। मलेशिया में कुल केस में से लगभग दो तिहाई मामलों को इस जनसभा के लिए जिम्मेदार ठहराया गया था, जो 27 फरवरी से 1 मार्च के बीच आयोजित की गई थी। यही वजह थी कि दक्षिण पूर्व एशिया में कोरोनावायरस का प्रकोप एकाएक बढ़ा।
Takyahlah dok tunggang agama dan jual Hand Sanitizer ‘halal’ waktu wabak Covid-19 ni.
Mufti Wilayah yang kini Menteri Hal Ehwal Agama dah kata penggunaan Hand Sanitizer alkohol ialah HARUS, tidak najis dan boleh guna untuk solat pic.twitter.com/Lwj7sDrPP5
— Asrul Muzaffar🇲🇾 (@asrulmm) March 14, 2020
कुछ और भी उदाहरण है जैसे जब विश्व की कई मेडिकल संस्थाओं ने एल्कोहल युक्त सेनीटाइजर का इस्तेमाल करने का निर्देश दिया तो मुस्लिमों द्वारा हलाल सैनिटाइजर की मांग की गयी। वहीं, ईरान में तो कोरोनावायरस के फैलने के कई दिनों बाद तक वहां के धार्मिक स्थान खुले थे और उन्हें जीभ से चाटने की प्रथा जारी थी। यही नहीं वहां के सुप्रीम लीडर के प्रतिनिधि ने सभी को इस धार्मिक स्थान पर जाने का निर्देश दिया था। हालांकि, कुछ दिनों बाद ही उनकी कोरोनावायरस से मौत हो गई थी। इसके बाद ईरान में इस करोनावायरस से संक्रमित लोगो में भारी इजाफा हुआ था और मरने वालों की भी संख्या बढ़ी थी।
Videos on social media show Iranians licking shrines amid controversy over calls to close access to the shrines. #Iran has recorded the highest number of #coronavirus cases in the Middle East.
More here: https://t.co/K8O0DBk1zC pic.twitter.com/ywyXJjDTvm
— Al Arabiya English (@AlArabiya_Eng) March 1, 2020
Shia Pilgrims lick, touch and kiss Shrines. Due to which corinavirus spread so quickly in Iran and Pakistan… Time https://t.co/1RvahJLEyF
— Naveed Shahzad (@naaveedshahzad6) March 17, 2020
इस महामारी के समय में धार्मिक स्थलों पर लोगों के इकट्ठे होने से कितनी बड़ी परेशानी खड़ी हो सकती है, इसका उदाहरण आप दक्षिण कोरिया में भी देख सकते हैं। दक्षिण कोरिया में शिन्चेऑन्जी चर्च को देश में कोरोनावायरस फैलाने का सबसे बड़ा कारण माना जा रहा है। इस चर्च के करीब 2 लाख 30 हज़ार सदस्य हैं जिनमें से 9 हज़ार लोगों में कोरोनावायरस टेस्ट पॉज़िटिव पाया गया है।
इस चर्च के संस्थापक पर यह आरोप भी लगा है कि उसने अपने सदस्यों में कोरोना के लक्षण सामने आने के बावजूद उन्हें प्रशासन से छुपाया। बीबीसी की एक रिपोर्ट के मुताबिक,
“दक्षिण कोरिया में फैले कोरोनावायरस के लिए विशेष धार्मिक संप्रदाय को जिम्मेदार मानते हुए लोगों का गुस्सा फूट रहा है। लोगों ने अब इस चर्च पर प्रतिबंध लगाने के लिए पिटिशन शुरू की है। इस पर अब तक करीब 12 लाख हस्ताक्षर कर चुके हैं।”
8 मार्च को दक्षिण कोरिया के एक चर्च में 135 लोगों ने Sunday gathering में हिस्सा लिया और यहां कोरोनावायरस को भगाने के लिए कुछ ऐसा किया गया जिससे कोरोनावायरस का संक्रमण कई लोगों में फैल गया। दरअसल, यहां लोगों ने कोरोना के फैलाव को रोकने के लिए सभी सदस्यों के मुंह में एक बोतल से saltwater का स्प्रे किया लेकिन सभी सदस्यों के मुंह में बिना nostril बदले ही स्प्रे कर दिया गया, जिससे वुहान वायरस का संक्रमण कुछ लोगों में फैल गया।
इन उदाहरणों को देखकर समझा जा सकता है कि भारत ने दूरगामी सोच का परिचय देते हुए अपने मुख्य त्योहार को भी लॉकडाउन करने का फैसला लिया। पीएम मोदी के नेतृत्व में भारत इस तबाही को रोकने में कोई कसर नहीं छोड़ रहा है। इस विषम परिस्थिति में भी यदि देश के बहुसंख्यक हिंदू आबादी सरकार के निर्णय को स्वीकार कर सकती है, तो अन्य धर्मों को भी इसे समझने और इस पर अमल करने की आवश्यकता है।