अगर आप यह सोचते हैं कि चीन सिर्फ अपने One-belt one Road (OBOR) इनिशिएटिव के जरिये ही दुनिया को आर्थिक रूप से हाईजैक करने की कोशिश कर रहा है, तो आप बहुत बड़ी गलतफहमी में हैं। वर्ष 2013 में जब चीन ने अपने BRI प्रोजेक्ट की शुरुआत की थी, तो उसके एक साल पहले ही चीन ने पूर्वी यूरोप के 16 देशों के साथ मिलकर 16+1 इनिशिएटिव की शुरुआत थी। 16+1 को वर्ष 2019 में ग्रीस ने भी जॉइन कर लिया था, जिसके बाद यह ग्रुप 17+1 बन गया था।
चीन ने इन सब देशों के साथ मिलकर तकनीक, इन्फ्रास्ट्रक्चर, ट्रांसपोर्टेशन, निवेश और व्यापार जैसे क्षेत्रों में एकसाथ मिलकर काम करने की योजना को सामने रखा था जिसे इन देशों ने स्वीकार भी कर लिया था, लेकिन आज ये सभी 17 के 17 देश चीन की आर्थिक गुंडागर्दी से परेशान आ चुके हैं, और अब ये 17 देश इस ग्रुप से चीन को बाहर करने पर भी विचार कर रहे हैं।
पूर्वी यूरोप में अभी पोलैंड, सर्बिया, ग्रीस, चेक गणराज्य जैसे 17 देश आते हैं। चीन ने इन सब देशों के साथ व्यापार बढ़ाने की योजना बनाई थी, लेकिन व्यापार बढ़ाने के लिए चीन ने इन देशों में अपने एक्सपोर्ट को बढ़ाया जिससे इन 17 देशों का चीन के साथ ट्रेड डेफ़िसिट बढ़ता गया।
उदाहरण के तौर पर वर्ष 2017 में चीन ने इन देशों को लगभग 50 बिलियन डॉलर का एक्सपोर्ट किया जबकि इन देशों से चीन ने केवल 19 बिलियन डॉलर का ही इम्पोर्ट किया। यह ट्रेड डेफ़िसिट साल दर साल बढ़ता ही जा रहा है, जिसने इन देशों को चिंता में डाल दिया है। आज इन देशों का चीन के साथ ट्रेड डेफ़िसिट बढ़कर 75 बिलियन डॉलर्स तक पहुँच गया है।
चीन ने इन देशों में बड़े पैमाने पर निवेश करने की बात कही थी लेकिन चीन का यह वादा भी हवाई ही निकला। चीन का 75 प्रतिशत निवेश सिर्फ चार देशों यानि हंगरी, चेक, पोलैंड और स्लोवाकिया तक ही सीमित रहा, जिसने बाकी के सदस्य देशों में चीन के खिलाफ गुस्सा भर दिया है।
इतना ही नहीं, 17+1 की वजह से इन देशों पर चीन का प्रभाव भी बढ़ता ही जा रहा है। लिथुआनिया में हद तो तब ही गई जब वहाँ मौजूद चीनी दूतावास की ओर से उन लोगों को धमकी दे दी गयी जो हाँग काँग में हो रहे चीन विरोधी प्रदर्शनों का समर्थन कर रहे थे। यही कारण है कि अब ये देश चीन के खिलाफ इकट्ठा हो रहे हैं और अपने इस ग्रुप से चीन को बाहर करके 17+0 की दिशा में आगे बढ्ने की बात कर रहे हैं। इन देशों को लगता है कि ये देश खुद से ही आपस में सहयोग बढ़ा सकते हैं।
इससे पहले OBOR (One Belt One Road) के माध्यम से तो चीन शुरू से ही दक्षिण एशिया, मध्य एशिया, अफ्रीका और दक्षिण पूर्व एशिया के देशों को अपने कर्ज़ जाल में फँसाता आया है। चीऩ अक्सर छोटे देशों को बड़े-बड़े सपने दिखाकर उनकी आर्थिक क्षमता से अधिक कर्ज़ देता है और बाद में जब वे देश उन कर्ज़ो को चुकाने में असफल हो जाते हैं, तो चीन उन देशों की सम्पत्तियों को कई दशकों तक लीज़ पर लेकर उन्हें अपना उपनिवेश बनाने का काम करता है।
हाल ही में मालदीव और श्रीलंका जैसे देश इसको लेकर चीन की आलोचना भी कर चुके हैं। इंडोनेशिया में नई सरकार आने के बाद उसने भी चीन की इस परियोजना से बाहर निकलने में अपनी भलाई समझी। चीन को ऑल वेदर फ्रेंड कहने वाले पाकिस्तान के अंदर से भी अब चीन-पाकिस्तान आर्थिक गलियारे के खिलाफ आवाजें उठना शुरू हो गयी हैं।
चीन का यह प्रोजेक्ट तो अब कोरोना के कारण धूल खाता जा रहा है क्योंकि कोरोना के कारण कोई भी देश चीनी मजदूरों को अपने यहां काम करने की इजाजत नहीं दे रहा और साथ ही इन देशों पर अब कर्ज़ का बोझ बढ़ता ही जा रहा है। अब लगता है कि OBOR के बाद चीन का 17+1 का सपना भी मिट्टी में मिलने वाला है क्योंकि यूरोप के ये 17 देश चीन की छुट्टी करने का प्लान बना चुके हैं।