चीन तो शुरू से ही पूरी दुनिया में गुंडागर्दी करने के लिए बदनाम रहा है। कोरोना के कारण तो दुनिया में तबाही अभी देखने को मिल रही है, लेकिन चीन दक्षिण पूर्व एशिया के देशों पर जल युद्ध पिछले कई सालों से थोपता आया है। कहा जाता है कि अगला विश्व युद्ध पानी के ऊपर लड़ा जाएगा, इधर चीन ने लगता है इस युद्ध का ऐलान कर भी दिया है। दरअसल, चीन पिछले कई सालों से दक्षिण पूर्व एशिया की ओर बहने वाली अपनी मेकोंग नदी पर बड़े-बड़े बांध बनाए जा रहा है, जिसके कारण लाओस, वियतनाम, कंबोडिया और थाईलैंड जैसे देशों में पानी की भयंकर कमी हो गयी है।
Eyes on Earth नाम की एक रिसर्च कंपनी ने अपनी एक रिपोर्ट में दावा किया है कि इन सभी देशों में बहने वाली मेकोंग नदी में जल स्तर 50 सालों के निम्न स्तर पर आ चुका है, जिसके कारण इन देशों में किसानों को बड़ी तबाही का सामना करना पड़ रहा है। यहाँ तक कि कुछ जगहों पर तो यह नदी सूखने की कगार पर पहुँच चुकी है। और इसका एक ही कारण है: चीन द्वारा इस नदी पर बनाए जा रहे एक के बाद एक बांध!
Eyes on Earth संस्था के अध्यक्ष एलन बसिस्ट ने दावा किया है कि- “अगर चीन ऐसा कहता है कि मेकोंग बेसिन के देशों में सूखे का कारण वह नहीं है, तो आंकड़े इस बात का समर्थन नहीं करते हैं”।
चीन अपने बचाव में यह दावा करता है कि उसके यहां इस नदी से सटे 4350 किमी लंबे भू-भाग पर कम वर्षा होने के कारण सूखा आया, जबकि सच्चाई यह है कि चीन के यूनान प्रांत में पिछले वर्ष समान्य से अधिक वर्षा हुई थी। इसका सीधा मतलब यह है कि नीचे के देशों में सूखे का चीन द्वारा बनाए जा रहे बांध से सीधा संबंध है।
मेकोंग नदी, जिसे चीन में Lancang नदी के नाम से जाना जाता है। यह नदी दक्षिण पूर्व चीन से बहना शुरू करती है और तिब्बत के रास्ते से होते हुए यह दक्षिण पूर्व एशिया के देशों के लगभग 6 करोड़ लोगों की जीवनरेखा के रूप में काम करती है। मेकोंग नदी लाओस और थाइलैंड की उत्तरी और पूर्वी सीमाओं के रूप में भी काम करती है और यही वह बिन्दु है जहां इस नदी में जलस्तर कम होना शुरू हो जाता है।
Eyes on Earth के मुताबिक चीन ने मेकोंग नदी पर 11 बांध बनाए हैं, जिसमें चीन 47 बिलियन क्यूबिक मीटर पानी स्टोर करके रखता है। हालांकि, चीन अपने आंकड़ों को पारदर्शिता से पेश नहीं करता है, जिसकी वजह से असल में यह आंकड़ा असल में और भी ज़्यादा हो सकता है।
अब यहां बड़ा सवाल यह उठता है कि चीन आखिर अपनी नदी पर इतने बांध क्यों बना रहा है। दरअसल, चीन अपने लिए बिजली भी बनाना चाहता है और साथ ही चीन के सूखे उत्तरी इलाकों तक पानी divert करना चाहता है, और इसका सीधा असर मेकोंग नदी के आसरे रहने वाले दक्षिण पूर्व एशियाई देशों के 6 करोड़ लोगों पर पड़ता है।
समस्या की बात यह भी है कि इन देशों के बीच कोई जल संधि भी नहीं है। वर्ष 1995 में मेकोंग संधि के तहत इन सभी देशों की सरकारों के बीच एक मेकोंग रिवर कमीशन (MRC) का गठन होना था, लेकिन म्यांमार और चीन ने इसमें भाग नहीं लिया, जिसके कारण यह संधि अप्रभावी हो गयी। वर्ष 1996 से ही इन देशों को dialogue partners के नाम से पुकारा जाता रहा है, और तभी से ये देश बाकी देशों के साथ सहयोग करने से पीछे हटते आ रहे हैं।
चीन मेकोंग नदी पर जो कुछ भी कर रहा है, उससे सीधे तौर पर नीचे के देशों के 6 से 7 करोड़ लोग प्रभावित हो रहे हैं। किसानों को बड़ा नुकसान उठाना पड़ रहा है। यह किसी अपराध से कम नहीं है। चीन मानवता का दुश्मन बनकर इन लोगों की ज़िंदगियों के साथ खिलवाड़ कर रहा है। मेकोंग नदी पर आश्रित होने वाले सभी देशों के 80 प्रतिशत लोग कृषि उद्योग पर भी निर्भर हैं। चीन की इन करतूतों और स्वार्थ के कारण करोड़ों लोगों को एक एक दाने के लिए मोहताज होना पड़ सकता है।
और सिर्फ कृषि उद्योग ही नहीं, चीन के इस कदमों से नीचे के देशों में मछ्ली पालन पर भी गहरा असर पड़ रहा है। इन देशों में मछ्ली पालन उद्योग यहाँ की GDP में तीन प्रतिशत का योगदान करता है। मछ्ली पालन उद्योग के नाश से कंबोडिया और लाओस की अर्थव्यवस्थाओं पर सबसे ज़्यादा प्रभाव पड़ना तय है क्योंकि इन देशों की GDP में इस उद्योग का क्रमश: 18 प्रतिशत और 12.6 प्रतिशत योगदान होता है।
थाईलैंड और वियतनाम के लिए भी यह नदी जीवनरेखा के रूप में काम करती है। वियतनाम में प्रमुख तौर पर की जाने वाली चावल की खेती में इस नदी का बहुत बड़ा योगदान होता है।
ऐसे में विश्व को जल्द से जल्द चीन पर एक उपयुक्त जल संधि करने का दबाव बनाना चाहिए। भारत का भी दक्षिण पूर्व एशियाई देशों पर अच्छा खासा प्रभाव है, ऐसे में भारत को भी दख्ल देने से पीछे नहीं हटना चाहिए।
आज चीन मेकोंग नदी के साथ यह कर रहा है, कल वह ब्रह्मपुत्र नदी के साथ ऐसा कर सकता है। अगर ब्रह्मपुत्र के साथ भी चीन कल ऐसा ही करता है तो भारत के नॉर्थ ईस्ट के राज्यों में बड़ी तबाही आ सकती है। ड्रैगन पानी का भूखा है और उसे पानी चाहिए, ऐसे में बाकी देशों के अधिकारों का हनन नहीं किया जा सकता।