जब से प्रधानमंत्री मोदी ने Prime Minister’s Citizen Assistance and Relief यानि PM CARE फंड को वुहान वायरस से लड़ने के लिए लॉन्च किया है तब से ही लिबरल जमात में हाहाकार मचा हुआ है और सभी इसी बात पर रो रहे हैं कि आखिर पीएम मोदी को एक नया आपातकाल फंड बनाने की क्यों आवश्यकता पड़ी जब Prime Minister’s National Relief Fund (PMNRF) पहले से ही है।
बता दें कि सरकार ने यह स्पष्ट कर दिया था कि PMNRF सभी प्रकार के प्रकृतिक आपदा के लिए है लेकिन PM CARE फंड को सिर्फ और सिर्फ COVID-19 के लिए बनाया जा रहा है। लेकिन फिर भी लिबरल गैंग का रोना धोना अभी जारी है।
हालांकि, PM CARE फंड के बारे में तो सभी को पता चल ही गया लेकिन PMNRF के बारे में कुछ और भी खुलासे हुए जिससे इन सभी का रोना धोना स्पष्ट हो जाता है कि क्यों PM CARE के बनने से ये सभी चिढ़े हुए हैं। जब PMNRF बना था तब की एक प्रेस नोट सामने आई है जिससे यह पता चलता है कि कांग्रेस ने किस प्रकार से इमरजेंसी फंड में भी अपनी पकड़ बनाए रखा चाहे वो सत्ता में रहे या न रहे।
PMNRF की Management Committee में कई लोग होते हैं जैसे:
- The Prime Minister
- The President of the Indian National Congress (INC)
- The Deputy Prime Minister
- The Finance Minister
- A representative of the Tata trustees
- A representative of Industry & Commerce to be chosen by the Federation of Indian Chambers of Commerce and Industry (FICCI).
इस लिस्ट को देखकर समझा जा सकता है कि PMNRF की Management Committee में कांग्रेस के अध्यक्ष की नियुक्ति भी उसी समय कर दी गयी थी। किसी भी प्रकृतिक आपदा के लिए फंड की कमेटी में कांग्रेस के अध्यक्ष का क्या काम? किसी ने आज तक यह सवाल क्यों नहीं उठाया? अगर कांग्रेस पार्टी के अध्यक्ष रह सकते हैं तो बाकी पार्टियों के अध्यक्ष क्यों नहीं? कांग्रेस अखिर है तो एक राजनीतिक पार्टी ही तो फिर ऐसा अभिजात्य व्यवहार क्यों?
PMNRF को 1948 में लॉन्च किया गया था। भारत पाकिस्तान के बँटवारे के बाद उत्पन्न हुई स्थिति और पाकिस्तान तथा बांग्लादेश में हुए हिंदुओं तथा सिखों के नरसंहार को देखते हुए इसे लॉन्च किया गया था। वर्ष 1985 में, PMNRF की प्रबंधन समिति के संविधान में बदलाव किया गया था, और उसके बाद राजीव गांधी सरकार द्वारा इस फंड के उपयोग के निर्णयों को पूरी तरह से प्रधानमंत्री पद में निहित किया गया था। इसी से स्पष्ट होता है कि कैसे PM CARE फंड PMNRF के कितना भिन्न है।
कांग्रेस का बनाया PMNRF पूरी तरह से प्रधानमंत्री पर केन्द्रित है। प्रधानमंत्री के पास ही फंड के प्रबंधन के लिए सचिव नियुक्त करने की शक्ति है। इसके प्रबंधन के लिए अलग कार्यालय या कर्मचारियों के लिए कोई प्रावधान नहीं है। इसके अलावा, प्रधानमंत्री अकेले लाभार्थियों के चयन का निर्णय लेते हैं।
वहीं दूसरी ओर PM CARE फंड अत्यधिक लोकतान्त्रिक है। इसके कमेटी में देश के प्रधानमंत्री के साथ टॉप-3 मंत्री यानि गृह मंत्री, वित्त मंत्री और रक्षा मंत्री भी होते हैं। लेकिन लिबरल गैंग नेहरू से आगे ही नहीं बढ़ना चाहता है और उन्हीं के स्वप्न लोक में जीना चाहता है। यह गैंग जवाहर लाल नेहरू द्वारा बनाए गए उस इकोसिस्टम को नहीं छोड़ना चाहता है जहां केंद्र में देश नहीं बल्कि कांग्रेस पार्टी पहले आता है। यह एक ऐसा इकोसिस्टम है जहां देश के उच्च पदों पर भी कांग्रेस अपना हक़ समझती है और उसे बनाए रखने के लिए किसी भी कानून में बदलाव से नहीं हिचकती।
यह PMNRF भी ठीक उसी जलियाँवाला बाग ट्रस्ट से मेल खाता है जिसे नेहरू सरकार ने 1951 में पारित किया था और कांग्रेस के अध्यक्ष को ही उसके प्रबंधन अथॉरिटी में नामांकित करता था।
यह कांग्रेस द्वारा अपने आपको हमेशा प्रासंगिकता में बनाए रखने का एक शर्मनाक प्रयास था। जलियांवाला बाग नरसंहार के दौरान अपने प्राण त्यागने वालों के बलिदान के साथ विश्वासघात करने वाले इस कानून को पिछले साल मोदी सरकार द्वारा संशोधित किया गया था जब संसद ने जलियांवाला बाग राष्ट्रीय मेमोरियल (संशोधन) विधेयक, 2019 पारित किया।
PMNRF और कांग्रेस के इकोसिस्टम द्वारा किया जा रहा PM CARE फंड के विरोध से यह समझा जा सकता है कि कैसे कांग्रेस अभी भी वही elite पार्टी बनी रहना चाहती है और वही स्थान रखना चाहती है जो इसे पहले मिला हुआ था। लेकिन अब देश बदल चुका है।