“हम नहीं चाहते कि दुनिया में चीन जैसे देशों के साथ हमारी गिनती हो, हम जिम्मेदार देश हैं और हमारे दोस्तों के प्रति हमारी जिम्मेदारी को हम भलि-भांति जानते हैं”- ये शब्द भारत के एक अधिकारी ने कहे, जब उनसे भारत द्वारा अमेरिका की मदद करने के संबंध में एक प्रश्न पूछा गया था। इस अधिकारी के शब्द अपने आप में यह बयां करते हैं कि भारत और चीन, दुनिया के दो सबसे ज़्यादा आबादी वाले देशों ने कोरोना के समय दुनिया के साथ सहयोग करने में किस प्रकार दो बिल्कुल अलग तरह के रवैये दिखाये हैं।
चीन इस वक्त सहायता की मदद मांग रहे देशों की मदद तो कर रहा है, लेकिन इसके साथ ही उसका अहंकार भी सांतवे आसमान पर पहुंच गया है। वह कई देशों पर हुवावे को स्वीकार करने का दबाव बना रहा है तो वहीं अपने मतलब के काम निकलवाने के लिए मेडिकल सप्लाई दिखाकर दूसरे देशों को ब्लैकमेल कर रहा है।
इतना ही नहीं, चीन भारत जैसे देशों द्वारा कोरोना को रोकने के लिए उठाए जा रहे कदमों की भी लगातार आलोचना कर रहा है। चीनी मीडिया लगातार दुनिया में यह प्रोपेगैंडा फैला रही है कि भारत कोरोना के रोकथाम के लिए सही कदम नहीं उठा रहा है। दूसरी ओर कोविड से लड़ने में कारगर माने जानी वाली भारत निर्मित मलेरिया की दवा हाइड्रोक्लोरोक्वीन के मुद्दे पर भारत ने पूरी दुनिया के सामने यह मिसाल पेश की है कि इस संकट के समय कैसे एक दूसरे का सहयोग किया जाना चाहिए। इसके साथ ही भारत के एक अधिकारी ने चीन को लेकर कड़ा जवाब देते हुए उसे उसकी जगह दिखाने का काम भी किया है।
चीन द्वारा दुनिया के अन्य देशों को मेडिकल सप्लाई के एक्सपोर्ट और भारत द्वारा हाइड्रो क्लोरोक्वीन के एक्सपोर्ट की तुलना कर यह समझा जा सकता है कि दोनों देशों ने किस प्रकार कोरोना के खिलाफ अंतर्राष्ट्रीय सहयोग को बढ़ावा दिया है। अभी केवल चीन ही ऐसा देश है, जो मेडिकल सप्लाई का उत्पादन कर रहा है, क्योंकि पूरी दुनिया में तो इस वक्त लॉकडाउन है। लेकिन चीन इस वक्त भर–भर के गुंडागर्दी करने पर उतर आया है।
चीन अभी कोरोना से ग्रसित देशों को मेडिकल सप्लाई कर रहा है और फिर अपने आप को इनके दोस्त की तरह प्रस्तुत करने की कोशिश कर रहा है। कोरोना की तबाही के बाद जब इन देशों के पास पैसों की कमी होगी, तो चीन अपने इसी प्रभाव और नकली दोस्ती को दिखाकर इन्हें बड़े-बड़े लोन देगा और इस प्रकार जैसे उसने OBOR के जरिये दुनिया के कई देशों को कर्ज़ जाल में फंसाया, वैसे ही अब भी वह कई देशों को अपने कोरोना-जाल में फंसा लेगा।
स्पष्ट है कि चीन का यह सहयोग स्वार्थ से भरा है और चीन इस संकट के समय में भी अपने आर्थिक और रणनीतिक एजेंडे को ही प्राथमिकता दे रहा है। वहीं भारत ने इस मामले पर चीन से अलग हटकर रुख अपनाया। दुनिया के तीस से भी ज़्यादा देशों ने जब भारत से हाइड्रो क्लोरोक्वीन की मांग की तो भारत ने तुरंत इस दवाई पर से एक्सपोर्ट बैन हटाया और भारत के विदेश मंत्रालय को यह निश्चित करने की शक्ति प्रदान कर दी कि पहले किसे ये दवाई एक्सपोर्ट की जानी चाहिए। अमेरिका के राष्ट्रपति ट्रम्प समेत ब्राज़ील के राष्ट्रपति, मलेशिया जैसे 30 देश से ज़्यादा देश अब तक भारत से इस दवाई की मांग कर चुके हैं और भारत ने अमेरिका को तो ये दवाई एक्सपोर्ट करने की छूट दे भी दी है।
यहां एजेंडावादी लोग यह भी कह रहे हैं कि भारत ने अमरीका की धमकी के बाद यह कदम उठाया जबकि यह सरासर झूठ है। ट्रम्प ने कल एक विवादित बयान में भारत को धमकी देते हुए कहा था कि अगर भारत इस दवाई का एक्सपोर्ट नहीं करता है तो भारत को नतीजे भुगतने पड़ सकते हैं। लेकिन हैरानी की बात तो यह है कि भारत उससे पहले ही HCQ के एक्सपोर्ट पर से प्रतिबंध हटा चुका था।
और सिर्फ HCQ के मुद्दे पर ही नहीं, बल्कि वह भारत ही था जिसने जी20 देशों को साथ लाकर इस महामारी से लड़ने के लिए कदम उठाने की अपील की थी। भारत ने ही सार्क देशों को साथ लाकर कोरोना से लड़ने के लिए प्रेरित किया। इसके अलावा दक्षिण एशिया देशों जैसे श्रीलंका, भूटान और मालदीव की मदद करने में भी भारत आगे रहा है, भारत ने इन देशों को दी गयी भारी मदद के बदले किसी तरह की मांग इनके सामने नहीं रखी।
Crisis profiteering यानि किसी दूसरे देश पर जब संकट आया हो, तो उससे कैसे अपने मतलब के काम निकाले जाने चाहिए, चीन यह करना भली-भांति जानता है। चीन को अपने सारे एजेंडे भुलाकर भारत से यह सीखना चाहिए कि कैसे एक जिम्मेदार देश की तरह दुनिया से पेश आना चाहिए।