राजस्थान में रविवार को 96 पॉजिटिव कोरोनावायरस बीमारी के मामले सामने आए थे। इनमें से 35 मामले तो एक ही इलाका यानि रामगंज से था। इस इलाके से कोरोना के मामले पहले से ही आ रहे हैं, लेकिन 8 अप्रैल के बाद रामगंज में चर्चित भीलवाड़ा मॉडल अपनाया गया। परंतु जयपुर के इस इलाके में यह मॉडल पूरी तरह से फेल हो चुका है। इसका एक ही कारण है और वह है इस इलाके की डेमोग्राफी।
जयपुर का रामगंज एक घनी आबादी वाला इलाका है जहां मुस्लिम बस्तियाँ अधिक हैं। अब यह इलाका देश का कोरोना hotspot बन चुका है। बता दें कि राजस्थान के कुल 897 मामलों में से अकेले जयपुर से लगभग 42 प्रतिशत कोरोना के मामले सामने आए हैं जिसमें से रामगंज इलाका सबसे आगे रहा है।
जिला प्रशासन ने रामगंज इलाके में भीलवाड़ा मॉडल लागू करने से पहले ही इस क्षेत्र की डेमोग्राफी और घनी आबादी को लेकर चिंता जाहीर की थी। अब वही चिंता सच हो चुकी है। रामगंज एक मुस्लिम बहुल इलाका है जहां एक एक बिल्डिंग यानि घर में 10 से 15 परिवार रहता है और ऐसे में अगर एक भी व्यक्ति को कोरोना होता है तो ऐसी घनी आबादी वाले इलाके में उस व्यक्ति से सकड़ों लोगों तक कोरोना संक्रमण फैलना तय है। राजस्थान के स्वस्थ्य मंत्री रघु शर्मा ने भी यही कहा, “रामगंज घनी आबादी वाला इलाका है और कुछ जगहों पर एक ही इमारत में 10-15 परिवार रहते हैं। इसके अलावा, भीलवाड़ा में, निर्मम जनभागीदारी की हमारी रणनीति सफल रही, क्योंकि सभी नागरिकों के साथ घर के अंदर रहने के आदेशों का पालन किया गया।”
राज्य के स्वास्थ्य मंत्री रघु शर्मा ने स्पष्ट रूप से कोरोना को रोकने के लिए प्रशासन के आदेशों का पालन करने में सार्वजनिक भागीदारी की कमी की ओर इशारा किया।
रामगंज इलाका मुस्लिम बाहुल्य है। ऐसे में जांच के दौरान कुछ लोगों ने दूरी भी बनाई। यहां मुसाफिर खाने में लगाए गए कैम्प में लोग जांच के लिए नहीं पहुंचे। इसके बाद मस्जिदों से ऐलान किया गया कि “हम जांच करवाने में सहयोग करेंगे तो बीमारी का पता चलेगा। हम अपने परिजनों के अन्य लोगों को भी संक्रमण से बचा सकते हैं।”
जिस इलाके में लोगों के स्वास्थ्य के लिए मस्जिद से ऐलान कराये जाने लगे, उससे तो यही स्पष्ट होता है कि उस क्षेत्र के लोग प्रशासन से ऊपर अपने धर्म हो मानते हैं।
स्वास्थ्य विभाग द्वारा सर्वेक्षण के बारे में गलतफहमी जैसी अन्य चुनौतियों का भी सामना करना पड़ा। कई टीम के सदस्यों के साथ शत्रुता और दुर्व्यवहार की खबरें भी सामने आई थीं क्योंकि लोगों को डर था कि वे राष्ट्रीय जनसंख्या रजिस्टर (एनपीआर) के लिए जानकारी ले रहे हैं।
भारत के मुस्लिम इलाकों में इस तरह की कई घटनायें सामने आई हैं। मध्य प्रदेश के इंदौर में तो स्वास्थ्य कर्मियों और डाक्टरों पर पत्थरबाजी भी की गयी थी।
नागरिकों के इस तरह के व्यवहार से रामगंज में अपनाया गया भीलवाड़ा मॉडल पूरी तरह से विफल दिखाई दे रहा है।
बता दें कि भीलवाड़ा में बढ़ते मामले को देखते हुए जांच की गति बढ़ा दी गई, सोशल डिस्टेंसिंग का सख्ती से पालन किया जाने लगा और घर-घर जाकर लोगों की स्क्रीनिंग की जाने लगी। जिले की सीमाओं को सील कर दिया गया, हर किसी की आवाजाही को रोक दिया गया और फिर सरकार द्वारा गठित रैपिड रिस्पॉन्स टीम का जिला प्रशासन ने सही से इस्तेमाल किया। लोगों में कोरोना के लक्षण मिलते ही, उन्हें क्वारंटाइन किया गया, उन पर कड़ी निगरानी रखी गई थी। परंतु वहाँ के लोगों में भी स्वयं जागरूकता थी और उन्हें यह पता था कि अगर प्रशासन द्वारा लिए जा रहे निर्णयों को नहीं मानेंगे तो उनके क्षेत्र की हालत भी इटली जैसा ही हो जाएगा।
जयपुर के मुख्य चिकित्सा एवं स्वास्थ्य अधिकारी नरोत्तम शर्मा के अनुसार, शहर में कुल मामलों में से कम से कम 285 रामगंज से है जहां 26 मार्च को पहला मामला सामने आया था, जब 12 मार्च को ओमान से लौटे 45 वर्षीय व्यक्ति को कोरोना पॉज़िटिव पाया गया था। वह व्यक्ति सुपर स्पेडर निकला। उसके परिवार के 32 लोगों में से 11 को कोरोना पॉज़िटिव पाये गए तथा ओमान से लौटने के बाद उसने 200 लोगों से मुलाक़ात की थी।
इसके बाद रामगंज में कोरोना अब इस तरह से फैला कि अब उसे काबू करने में भीलवाड़ा मॉडल भी फेल हो चुका है और मामले बढ़ते ही जा रहे हैं। अगर भीलवाड़ा मॉडल फेल हुआ है तो यह सिर्फ इलाके की डेमोग्राफी के कारण। अब देखना यह होगा प्रशासन इसके बाद क्या निर्णय लेता है।