चीन की कम्युनिस्ट पार्टी अपनी टेक कंपनियों के माध्यम से दुनिया पर राज करने की योजना पर कई सालों से काम कर रही है। हुवावे के जरिये दुनियाभर के 5जी नेटवर्क पर अपना कब्जा जमाना हो, या फिर टिकटॉक जैसी एप्स के जरिये करोड़ों लोगों को कम्युनिस्ट एजेंडा परोसना हो, चीन पिछले कई दशकों से अपनी टेक कंपनियों के जरिये दुनिया को अपने काबू में करने के ख्वाब देखता आया है।
हालांकि, कोरोना के बाद अमेरिका ने अब चीन के इन मंसूबों को पैरों तले कुचलने की रणनीति पर काम करना शुरू कर दिया है। अमेरिका ने ना सिर्फ हुवावे को बर्बाद करने के लिए कई कदम उठाए हैं, बल्कि तकनीक के क्षेत्र में चीन को कुचलने के लिए अमेरिका अलीबाबा और baidu जैसी चीनी कंपनियों को भी अमेरिकी शेयर बाज़ार से बाहर करने की योजना बना रहा है।
चीन ने कोरोना के समय में अपना कम्युनिस्ट एजेंडा दुनिया पर थोपने की भरपूर कोशिश की। चीन ने दूसरे देशों को धमकी देकर कहा कि अगर उन्हें चीन से मेडिकल सप्लाई चाहिए तो उन्हें अपने यहाँ हुवावे को काम करने की अनुमति देनी होगी। इसका उदाहरण हमें तभी देखने को मिल गया था जब चीन ने फ्रांस को यह कहा था कि “वह तभी फ्रांस को मेडिकल सप्लाई देगा अगर फ्रांस हुवावे को 5जी का परिचालन करने की अनुमति देगा”।
इसके अलावा पिछले महीने इटली के प्रधानमंत्री से बातचीत में चीन के राष्ट्रपति शी जिनपिंग ने कहा था कि इटली को OBOR के साथ-साथ चीन के साथ Health Silk Route पर भी काम करना चाहिए। इससे इटली में डर बढ़ गया है कि कहीं इटली का वायरलेस हेल्थ नेटवर्क चीनी कंपनियों के हाथ में ना चला जाये।
स्पष्ट है कि ना सिर्फ कोरोना से पहले, बल्कि कोरोना के दौरान भी चीन ने मेडिकल सप्लाई के बहाने अपनी कंपनी हुवावे को बढ़ावा देने की कोशिश की, ताकि दुनिया के तकनीक क्षेत्र पर उसकी पकड़ और मजबूत हो सके, लेकिन अब अमेरिका ने चीन के इन मंसूबों पर पानी फेरने का मन बना लिया है। कल यानि 21 मई को अमेरिकी सीनेट में एक बिल पास किया गया जिसके बाद अलीबाबा और बाईडु जैसी चीनी कंपनियों पर अमेरिकी स्टॉक एक्स्चेंज से delist होने का खतरा मंडराने लगा है।
हुवावे के पीछे तो अमेरिका पहले ही हाथ धोकर पड़ा हुआ है। हाल ही में अमेरिका ने हुवावे पर कुछ नए प्रतिबंध लगाए थे जिसके बाद हुवावे अमेरिका से प्रोसेसर चिप और सेमी-कंडक्टर का एक्सपोर्ट नहीं कर पाएगा। अमेरिका द्वारा लगाए गए इन प्रतिबंधों के बाद हुवावे सकते में है। हुवावे ने एक बयान जारी कर कहा है कि अमेरिका के इस फैसले से ना सिर्फ दुनियाभर के tech बाज़ार में खलबली मच जाएगी बल्कि इससे हुवावे पर अस्तित्व का खतरा मंडराना शुरू हो जाएगा।
बता दें कि दुनिया के सेमीकंडक्टर संयंत्रों में इस्तेमाल होने वाले चिप डिजाइन और विनिर्माण उपकरण ज्यादातर अमेरिका में बनते हैं। ऐसे में अमेरिका द्वारा हुवावे पर लगाए गए इन प्रतिबंधों के बाद हुवावे का बर्बाद होना तय माना जा रहा है।
बता दें कि चीन इस वर्ष “China Standards 2035” को भी रिलीज़ करने वाल है जिसके तहत वह आने वाले वर्षों में टेलिकॉम, डेटा शेयरिंग और Artificial intelligence के क्षेत्र में चीन दुनिया के तकनीक क्षेत्र से संबन्धित मानकों को तय करने की योजना पर काम कर रहा है।
कुल मिलाकर चीन पहले ही आने वाले 15 वर्षो के दौरान विकसित की जाने वाली तकनीक को अपनी मुट्ठी में करने का प्लान बना रहा है, लेकिन अब कोरोना के बाद जब अमेरिका और बाकी देश चीनी तकनीक कंपनियों को अपने निशाने पर ले रहे हैं, चीन के मंसूबों पर पानी फिरना तय माना जा रहा है।