कई दिनों से मजदूरों को घर भेजने की रट लगाने वाली राजस्थान की अशोक गहलोत सरकार ने अब एक नया यू टर्न लिया है और केंद्र का नाम लेकर कहा है कि सभी को वापस जाने की जरूरत नहीं है।
इससे पहले उन्होंने ट्वीट कर कहा था कि मजदूरों को चरणबद्ध तरीके से लाया जाएगा। अब यहाँ सवाल उठना लाज़मी है कि आखिर ऐसा क्या हुआ कि मजदूरों के आवाजही के लिए हँगामा मचाने वाले अशोक गहलोत क्यों यू टर्न ले रहे हैं जब केंद्र ने मजदूरों को जाने के लिए प्रबंध कर दिया है? कहीं वे मजदूरों के भाड़े के लिए लिए जा रहे राज्य सरकारों से 15 प्रतिशत हिस्से से तो नहीं बचना चाहते हैं?
दरअसल, राजस्थान में अशोक गहलोत सरकार ने नए बयान में गृह मंत्रालय का हवाला देते हुए कहा है कि-
“केंद्र सरकार ने आदेश दिया है कि लॉकडॉउन के दौरान जो लोग अपने घर जाने के दौरान फंस गए थे, उन्हें ही आने-जाने की छूट देनी है, जो लोग आराम से रह रहे हैं, वह जहां हैं, वहीं रहें।”
इससे पहले कई बार अशोक गहलोत केंद्र सरकार के मजदूरों को न लाने के लिए कई बार आलोचना कर चुके हैं। अप्रैल महीने में उन्होंने केंद्र से अपील की थी कि देश के विभिन्न हिस्सों में फंसे प्रवासियों को उनके शहरों तक वापस छोड़ने के लिए रेल सेवाओं की अनुमति दी जानी चाहिए।
इससे पहले, उन्होंने देश के विभिन्न हिस्सों में फंसे प्रवासी मजदूरों को वापस लाने के लिए एक स्पष्ट रणनीति नहीं तैयार करने के लिए केंद्र की आलोचना की थी। उन्होंने कहा था-
“पहले दिन से ही मैं कह रहा हूँ कि देशभर में फंसे प्रवासी श्रमिकों के सुगम आवागमन के लिए रणनीति बनाई जानी चाहिए लेकिन दुर्भाग्य से उसे लेकर कोई स्पष्टता नहीं है।”
उन्होंने यह भी कहा था कि, राजस्थान के लोग बड़ी संख्या में देश भर में हैं। वे एक बार घर आना चाहते हैं और मैं प्रधानमंत्री को पत्र लिख रहा हूं कि राजस्थान के लोगों को जो भी राजस्थान आना चाहते हैं उन्हें आने दिया जाए।“
पहले दिन से ही मैं कह रहा हूँ कि देशभर में फंसे प्रवासी श्रमिकों के सुगम आवागमन के लिए रणनीति बनाई जानी चाहिए लेकिन दुर्भाग्य से उसे लेकर कोई स्पष्टता नहीं है।
2/— Ashok Gehlot (@ashokgehlot51) April 25, 2020
अशोक गहलोत सरकार राज्य में प्रवासी श्रमिकों को वापस लाने के मुद्दे पर कई बार कह चुकी थी कि मोदी सरकार ने कुछ नहीं किया है। लेकिन जैसे ही मोदी सरकार ने प्रवासियों की आवाजाही की अनुमति दी, वैसे ही गहलोत सरकार ने भी चरणबद्ध तरीके से सभी प्रवासी मजदूरों को वापस लाने का फैसला किया था।
हिंदुस्तान टाइम्स की एक रिपोर्ट के अनुसार, राजस्थान सरकार के लगभग 10 लाख प्रवासी अन्य राज्यों में रहते हैं जिनमें से 70 प्रतिशत राजस्थान लौटना चाहते हैं और 30 प्रतिशत अन्य राज्यों के प्रवासी हैं। लेकिन अचानक से गहलोत सरकार ने गृह मंत्रालय के सलाहों के अनुसार चलने लगी।
यह समझ से परे है कि गहलोत सरकार केंद्र के फैसले के खिलाफ विरोध क्यों नहीं दर्ज करा रही है, क्योंकि गृह मंत्रालय ने तो अपने स्पष्टीकरण में केवल फंसे हुए प्रवासियों या stranded’ migrants को ही वापस जाने की अनुमति दे रहा है, अन्य प्रवासियों को नहीं। क्योंकि शुरू से वे सभी प्रवाशियों की वकालत करते आए हैं।
यहाँ अगर हम हालिया मुद्दों को देखे तो यह समझ में आता है कि राजस्थान सरकार के यू-टर्न का कारण प्रवासी श्रमिकों के भाड़े में आई लागत के भुगतान के लिए है।
बता दें कि टाइम्स नाउ ने यह खुलासा किया था कि राजस्थान, केरल और महाराष्ट्र की राज्य सरकारों ने प्रवासियों से टिकट दे कर भाड़ा वसूला है जबकि केंद्र के सभी प्रवासियों के लिए यह यात्रा मुफ्त की थी। प्रवासियों के भाड़े का 85 प्रतिशत केंद्र को और 15 प्रतिशत राज्यों को वहन करना था।
अब गहलोत सरकार को यह समझ आ गया है कि प्रवासी कामगारों के आवाजही के लिए राज्य सरकार को 15 प्रतिशत देना ही पड़ेगा। शायद इसी कारण से अब आलोचना करने के बजाय अशोक गहलोत की सरकार गृह मंत्रालय के सलाह पर ही काम कर रही है।