चीन दुनिया भर में कोरोना फैलाने के बाद अब नए नए कारनामे कर रहा है। कभी South China Sea में अन्य देशों पर हमले कर रहा है तो कभी किसी देश के आंतरिक मामलों में हस्तक्षेप कर रहा है। एक नए मामले में चीन ने भारत के पड़ोसी हिन्दू देश नेपाल के आंतरिक मामलों खुलम-खुला हस्तक्षेप किया है।
दरअसल, पिछले कुछ दिनों से नेपाल की राजनीति में उथल पुथल चल रही है और पार्टी के ही अन्य नेता मौजूदा प्रधानमंत्री KP sharma Oli को हटाना चाहते हैं। यह आंतरिक लड़ाई तब से बढ़ी है जब से केपी ओली की सरकार दो अध्यादेश लेकर आई। पार्टी के ही एक नेता और पूर्व प्रधानमंत्री पुष्प कमल दहल प्रचंड और NCP के वरिष्ठ नेता माधव कुमार का कहना था कि ओली ये अध्यादेश नेपाल के प्रधानमंत्री के रूप में अपनी स्थिति को सुरक्षित करने के प्रयास में लाये हैं।
इसी आंतरिक कलह के बाद चीन ने अपना खेल दिखाना शुरू किया और चीन के राजदूत ने कई वरिष्ठ नेताओं से मीटिंग की। बता दें कि चीन की यह हरकत पिछले 10 दिनों से ही बढ़ी है, जब से चीनी राष्ट्रपति शी जिनपिंग ने नेपाल के समकक्ष विद्या देवी भंडारी के साथ 40 मिनट की फोन पर बातचीत की है।
चीन के एंबेसडर का वरिष्ठ नेताओं से मुलाकात
उसके बाद से नेपाल में चीन के एंबेसडर Hou Yanqi बहुत सक्रिय रहे हैं। गुरुवार को होउ ने प्रधानमंत्री केपी शर्मा को बुलाया और शुक्रवार को वह नेपाल कम्युनिस्ट पार्टी (एनसीपी) के अध्यक्ष पुष्पा कमल दहल और वरिष्ठ नेता माधव कुमार नेपाल, दोनों पूर्व प्रधानमंत्रियों के साथ मुलाकात की। इस मीटिंग के दौरान विदेश मंत्रालय का कोई भी शख्स मौजूद नहीं था और न ही विदेश मंत्रालय को इन मीटिंग्स के बारे में बताया गया था। इससे तो स्पष्ट होता है कि यह कोई राजनयीक मुलाक़ात नहीं थी।
ऐसे समय में जब नेपाल की कम्युनिस्ट पार्टी में आंतरिक कलह चल रही हो तब उसी पार्टी के कई शीर्ष नेताओं से मिलने का क्या मतलब बनता है?
यहाँ यह स्पष्ट दिखाई दे रहा है कि चीन केपी ओली की कुर्सी बचाने के लिए यह सब कर रहा है जिससे नेपाल का नियंत्रण उसके हाथ में रहे। सत्तारूढ़ नेपाल कम्युनिस्ट पार्टी के शीर्ष स्तर पर तालमेल के लिए और इस प्रक्रिया में प्रधानमंत्री के पी ओली की कुर्सी बचाने के लिए की चीन के राजदूत ने होउ यानिकी से यह मीटिंग की थी। पार्टी में ओली की स्थिति इतनी दयनीय हो गई है कि कई नेताओं जैसे दहल, नेपाल और वरिष्ठ नेता झाला नाथ खनाल ने उनसे इस्तीफा देने के लिए कहा, जिससे पार्टी के सदस्यों में डर पैदा हो गया था कि पार्टी विभाजित हो सकती है।
बता दें कि सत्तारूढ़ नेपाल कम्युनिस्ट पार्टी का जन्म मई 2018 में ओली के CPN-UML और दहल के Maoist Centre के बीच विलय से हुआ था। कुछ लोगों का मानना था कि नए संविधान लागू होने और फिर 2015 में भारतीय ब्लॉकेड के तुरंत बाद चीन ने नेपाल में कई राजनीतिक नेताओं का समर्थन करना शुरू कर दिया था। तब से ही चीन की कम्युनिस्ट पार्टी ने सत्तारूढ़ नेपाल कम्युनिस्ट पार्टी से संबंधों को मजबूत करने और द्विपक्षीय यात्राओं में वृद्धि की है।
पहले भी चीन कर चुका है केपी ओली का समर्थन
ऐसा पहली बार नहीं हुआ है जब चीन ने इस तरह से केपी ओली का समर्थन किया हो, इससे पहले भी शी जिनपिंग ऐसा कर चुके है जब 9 केंद्रीय सचिवालय के सदस्यों में से छह ने ओली को पार्टी के चेयरमैन और प्रधानमंत्री के पद से हटाने का समर्थन किया था।
नेपाल में चीन ने बहुत ज्यादा इन्वेस्ट किया है और इसने कई विकास परियोजनाओं में अपनी भागीदारी दी है। वहीं काठमांडू बीजिंग के बेल्ट एंड रोड इनिशिएटिव पर भी हस्ताक्षर करने वाला देश है। इसीलिए चीन नहीं चाहता है नेपाल की कम्युनिस्ट पार्टी में फुट पड़े और केपी ओली को प्रधानमंत्री पद से हटना पड़े।
चीन केपी ओली को एक कठपुतली की तरह इस्तेमाल कर रहा है और यह भारत के लिए खतरे की घंटी है। सिर्फ सुरक्षा की दृष्टि से ही नहीं बल्कि बार्डर जियोपॉलिटिक्स के लिए भी यह खतरा है। चीन का इस तरह से नेपाल के आंतरिक राजनीति में हस्तक्षेप करने से भारत को अब नए सिरे से विचार करना होगा जिससे नेपाल को अपने पाले में किया जा सके। इससे पहले की नेपाल चीन के ‘कब्जे‘ में पूरी तरह से आ जाये, यह नितांत आवश्यक है कि भारत-नेपाल सम्बन्ध और सुदृण हो।