अभी दुनिया किसी तरह वुहान वायरस के प्रकोप से उबर ही रही थी, कि अब उसके सामने विश्व युद्ध का खतरा मंडरा रहा है, जिसे शुरू करने के लिए चीन अति-उत्साहित दिखाई दे रहा है। चीन ने ना केवल आधी से अधिक दुनिया को अपने व्यवहार के कारण अपना शत्रु बना दिया है, अपितु वह अपने सर्वनाश की कहानी भी स्वयं लिख रहा है। ऐसे में यह कहना गलत नहीं होगा कि चीन भी अब उसी जर्मन साम्राज्य के पदचिह्नों पर चल रहा है, जिसने प्रथम विश्व युद्ध में मुंह की खाई थी।परन्तु प्रथम विश्व युद्ध काल के जर्मनी और वर्तमान चीन में क्या समानता है?
इसके लिए हमें जाना होगा 20वीं सदी के प्रारंभ में, जब मानव विकास नित नई ऊंचाइयां छू रहा था। औद्योगिक क्रांति के कारण यूरोप को काफी फायदा मिला था, लेकिन इसका सबसे अधिक लाभ जर्मन साम्राज्य को मिला था। तब जर्मनी पर कैसेर विलियम/ विल्हेम द्वितीय का शासन था, और जर्मनी औद्योगिक उत्पादन में दिन रात नए कीर्तिमान रच रहा था। इसके साथ ही जर्मनी ना केवल शस्त्रों की जमाखोरी में अव्वल स्थान पर था, अपितु जर्मनी ने अन्य देशों के क्षेत्रों पर भी कब्जा जमाया हुआ था।
इसी परिप्रेक्ष्य में जर्मनी ने प्रथम विश्व युद्ध में इसलिए कदम रखा, ताकि उसकी बादशाहत पूरी दुनिया पर कायम हो जाए। परन्तु हुआ ठीक उल्टा। जर्मनी को ब्रिटेन और अन्य सहयोगी देशों ने ना केवल धूल चटाई, अपितु वर्सेल्स के समझौते के अन्तर्गत उसकी सारी बादशाहत को मिट्टी में मिला दिया।
वर्सेल्स के समझौते के अन्तर्गत जर्मनी को शस्त्र छोड़ने के लिए बाध्य किया गया। इतना ही नहीं, जर्मनी को वह क्षेत्र भी त्यागने पड़े, जो उसने अन्य देशों से छीने थे। उदाहरण के लिए 1870 में जर्मनी ने फ्रांसीसी राज्य एल्सेस और लॉर्रेन पर कब्ज़ा जमाया था, जिसे उसे 1919 में वर्सेल्स के समझौते के अन्तर्गत लौटाना पड़ा।
अब आते हैं चीन पर। यदि गौर से देखा जाए, तो तब के जर्मनी और आज के चीन में कोई विशेष अंतर नहीं है। तब जर्मनी विश्व के सबसे तेजी से उभरते अर्थव्यवस्थाओं में शामिल था, और आज वह स्थान चीन ने ले लिया है। तब जर्मनी पर कैसर विल्हेम द्वितीय का दमनकारी शासन था, आज चीन पर शी जिनपिंग का दमनकारी शासन है।
चीन ने आज ना केवल वैश्विक फैक्ट्री का तमगा प्राप्त कर रखा है, बल्कि वह जर्मनी से दस गुना ज्यादा शस्त्र जमा कर सकता है। इतना ही नहीं, उसने ताईवान और हाँग-काँग जैसे देशों पर कब्ज़ा कर रखा है, और अब उसकी नजर जापान और भारत के अहम क्षेत्रों पर भी है।
ऐसे में यदि चीन अमेरिका और उसके सहयोगियों के साथ युद्ध करने की भूल करता है, तो ये उसके लिए बहुत भारी पड़ सकता है। ना केवल चीन इस युद्ध में मुंह की खाएगा, अपितु उसे ताइवान और हाँग-काँग से भी सदा के लिए हाथ धोना पड़ेगा। अमेरिका तो पहले ही चीन के ऊपर काफी आग बबूला है, और यदि चीन ने ज़रा सी भी गलती की, तो अमेरिका उसे सबक सिखाकर ही छोड़ेगा।
प्रथम विश्व युद्ध के बाद ना सिर्फ जर्मनी को बड़ा नुकसान उठाना पड़ा था, बल्कि उसपर देशों ने आर्थिक प्रतिबंध लगा दिये थे और जर्मनी पर बेहद सीमित सेना रखने का आदेश भी थोप दिया गया था। इसी प्रकार आज अगर चीन अमेरिका और उसके साथियों के साथ युद्ध करने की गलती करता है, तो चीन पर भी उसी तरह के वैश्विक आर्थिक और सैन्य प्रतिबंध लगाए जा सकते हैं।
इसके अलावा चीन एक और बात भूल रहा है, और वह है भारत का बढ़ता प्रभाव। चीन हाल ही में भारत के खिलाफ भी जमकर जहर उगल रहा है, लेकिन उसे नहीं भूलना चाहिए कि आज लद्दाख क्षेत्र में भारत चीन को पटखनी देने का दमखम रखता है। इसके अलावा भारत रणनीतिक तौर पर भी चीन को घेर सकता है।
ऐसे में यह कहना गलत नहीं होगा कि चीन के लिए अब स्थिति आगे कुआं तो पीछे खाई समान है। उससे एक भी गलती हुई, तो विश्व युद्ध प्रथम के जर्मनी की भांति उसकी जमकर धुलाई होगी, और आवश्यकता पड़ने पर उसके कब्जे वाले कई प्रान्तों को मुक्त भी कराया जा सकता है।