जहां एक ओर विश्व भर की कम्पनी चीन से बाहर खिसक रही हैं, तो वहीं भारत में सत्ताधारी भाजपा सरकार उनके स्वागत में पलकें बिछाई हुई हैं। एक के बाद एक कई भाजपा शासित राज्य सरकारें श्रम संबंधी कानूनों में व्यापक सुधार करने पर लगे हुए हैं। अभी हाल ही में येदियुरप्पा सरकार ने एक निर्णय लिया है, जिसके अन्तर्गत उद्योग अब किसानों से प्रत्यक्ष रूप में ज़मीन की खरीददारी कर सकेंगे, और बीच में किसी बिचौलिए की आवश्यकता नहीं पड़ेगी। ये भूमि अधिग्रहण में आने वाले अधिकांश समस्याओं को जड़ से उखाड़ फेकेंगी.
परन्तु यह पहला ऐसा मामला नहीं है। हाल ही में एक विशेष अध्यादेश पारित कराकर उत्तर प्रदेश सरकार ने कुछ अहम अधिनियम छोड़कर बाकी सारे श्रम कानूनों को 3 साल तक निष्क्रिय करने का निर्णय लिया है। इससे ना सिर्फ ज़्यादा से ज़्यादा निवेश संभव होगा, बल्कि किसी उद्योग को स्थापित होने वाले में लगाई जाने वाली अड़चनों का भी सफाया होगा।
राज्य में अधिकांश श्रम कानूनों को निलंबित करने के लिए एक अध्यादेश पारित किया गया, ताकि मौजूदा कोरोना वायरस संकट के बीच राज्य में निवेश करने के लिए नई कंपनियों को आकर्षित किया जा सके।
कुल 38 श्रम कानूनों को निलंबित कर दिया गया है और केवल 4 कानून लागू होंगे जो कि भुगतान अधिनियम, 1936 के भुगतान की धारा 5, वर्कमैन मुआवजा अधिनियम, 1932, बंधुआ श्रम प्रणाली (उन्मूलन) अधिनियम, 1976 और भवन और अन्य निर्माण श्रमिक अधिनियम, 1996 हैं।
उत्तर प्रदेश सरकार द्वारा जारी एक आधिकारिक बयान में कहा गया है कि व्यवसायों को लगभग सभी श्रम कानूनों के दायरे से छूट देने का निर्णय लिया गया क्योंकि राज्य में आर्थिक और व्यावसायिक गतिविधियाँ कोरोना वायरस संक्रमण से बुरी तरह प्रभावित हुई हैं।
इसी राह पर चलते हुए शिवराज सिंह चौहान के नेतृत्व में मध्य प्रदेश सरकार ने इंस्पेक्टर राज संबंधी नियमों पर कैंची चलाते हुए श्रम कानूनों में व्यापक बदलाव किए हैं। इनमें प्रमुख है उद्योगों द्वारा easy hire and fire, लाइसेंस पंजीकरण प्रक्रिया को सुगम बनाना और अधिक वर्क टाइमिंग के लिए समय देना इत्यादि।
गुजरात, जो पहले से ही उद्योगपतियों के लिए स्वर्ग समान है, इस समय केवल अधिनियम छोड़कर बाकी सब श्रम कानून निलंबित कर चुका है। यथावत नियमों में Minimum Wages Act, Industrial Safety Rules and the Employees’ Compensation Act शामिल हैं।
इसी भांति हरियाणा, हिमाचल प्रदेश जैसे राज्य भी अपने श्रम कानूनों में व्यापक सुधार हेतु लग चुके है। इतना ही नहीं, पंजाब और राजस्थान जैसे कांग्रेस शासित राज्य भी इस अहम सुधार पर विचार कर रहे हैं।
भारत में सस्ते लेबर और युवा डेमोग्राफिक की कोई कमी नहीं है, कमी थी तो बस उचित श्रम सुधार की, जिसके बीच में वामपंथी फल, ट्रेड यूनियन और पूर्ववर्ती सरकारें बाधा बनके खड़ी थी।
परन्तु अब और नहीं। कोरोनावायरस ने दुनिया के देशों में चीन के खिलाफ गुस्सा भर दिया है, और यही कारण है कि अब चीन में मौजूद सभी कंपनियां जल्द से जल्द अपना सारा सामान समेटकर वहाँ से बाहर निकलना चाहती हैं। उन्हें डर है कि अगर दुनिया के देश चीन पर किसी प्रकार का प्रतिबंध लगाते हैं, तो उन्हें एकदम चीन से बाहर निकलकर किसी और देश में व्यापार स्थापित करने का समय नहीं मिलेगा।
इसीलिए हजारों कंपनियां अब चीन से बाहर निकलने का विचार कर रही हैं और भारत को इसमें सबसे बड़ा फायदा हो सकता है, क्योंकि ये कंपनियां चीन के मुक़ाबले भारत को ही सबसे बढ़िया इनवेस्टमेंट डेस्टिनेशन मानती हैं। भारत के साथ-साथ वियतनाम और मेक्सिको जैसे देशों को भी बड़ा फायदा होने का अनुमान हैं।
सरकार ने पिछले साल आर्थिक मंदी से निपटने के लिए कई आर्थिक सुधारों को अंजाम दिया था, जिनमें सबसे बड़ा बदलाव corporate tax को कम करना था। सरकार ने इसे घटाकर 25.17 प्रतिशत कर दिया था, इसके साथ ही नए उत्पादकों के लिए यह corporate tax सिर्फ 17 प्रतिशत कर दिया गया था, जो कि दक्षिण पूर्व एशिया के देशों के मुक़ाबले सबसे कम है।
सरकार के इन आर्थिक सुधारों का ही परिणाम है कि अब बड़े पैमाने पर दक्षिण कोरियन, अमेरिकी और जापानी कंपनियां चीन को छोड़कर भारत आने को लेकर उत्साहित हैं। ऐसे में भाजपा शासित राज्यों द्वारा श्रम सुधार ना सिर्फ सोने पर सुहागा है, अपितु भारत को एक मैन्युफैक्चरिंग हब बनाने की ओर भी मार्ग प्रशस्त कर रहा है।