एक तरफ देश कोरोना से लड़ने में व्यस्त है तो दूसरी तरफ देश के सुरक्षा सलाहकार आतंकियों को ठिकाने लगाने में लगे हुए हैं। अजित डोभाल के प्रयासों से म्यांमार सरकार ने भारत को 22 उग्रवादी सौंपे हैं। इन सभी उग्रवादियों पर पूर्वोत्तर राज्यों में आतंक फैलाने का आरोप हैं। हिंदुस्तान टाइम्स की रिपोर्ट के अनुसार इन सभी उग्रवादियों को मणिपुर और असम में राज्य पुलिस को सौंपा गया है। ये उग्रवादी NDFB(S), UNLF, PREPAK (Pro), KYKL, PLA and KLO जैसे संगठनों से जुड़े हुए हैं। अगर सूत्रों की बात माने तो इस पूरे ऑपरेशन का नेतृत्व स्वयं NSA अजित डोभाल कर रहे थे।
बता दें कि इन उग्रवादियों में से 10 मणिपुर में वॉन्टेड थे जबकि अन्य की असम में तलाश थी। रिपोर्ट के अनुसार इन उग्रवादियों को विशेष विमान से लाया गया है। इन उग्रवादियों को लाने वाला पहला विमान मणिपुर की राजधानी इंफाल पहुंचा और इसके बाद गुवाहाटी गया। एक शीर्ष अधिकारी ने बताया कि यह पूरा अभियान राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार अजित डोभाल के नेतृत्व में हुआ। अधिकारी ने कहा कि यह पहला मौका है जब म्यांमार सरकार ने भारत के निवेदन पर पूर्वोत्तर उग्रवादी संगठनों के सदस्यों को हमें सौंपा है। इन आतंकियों में सबसे बड़ा नाम राजन डिमरी का है। राजन बोडो आंतकी समूह NDFB का प्रमुख है। यही नहीं इसने स्वयं को होम सेक्रेटरी घोषित किया हुआ था। राजन के अलावा UNLF का कैप्टन सन्तोम्बा निंगहोऊजाम, PREPAK का पशुराम लैशराम जैसे बड़े और मोस्ट वांटेड आतंकी म्यांमार ने भारत को सौंपे हैं।
भारत और म्यांमार के सम्बन्धों को देखते हुए यह एक बड़ा कदम है जिससे दोनों देशों के संबंध और मजबूत होंगे।
भारत कई देशों के साथ म्यांमार से भी अपनी सीमा साझा करता है और यह लगभग 1600 किलोमीटर के आस पास है। सीमा घने जंगलों से ढकी है। इसके अलावा यहां स्थित नदी-नाले सुरक्षाकर्मियों की गश्त में बाधा बनते हैं। इसका फायदा यहां के उग्रवादी संगठन उठाते हैं। ऐसे में पूर्वोत्तर राज्यों में पनपे उग्रवादी संगठन अपने छिपने के लिए दशकों से भारत म्यांमार सीमा का सहारा लेते हैं। मगर जब से पीएम मोदी ने सत्ता संभाली है, तब से पूर्वोतर राज्यों पर खास ध्यान दिया गया और और उग्रवादियों पर लगातार कर्रवाई की गयी है। इससे इन उग्रवादियों का भारत की सीमा में कैंप लगाना मुश्किल हो गया जिसके बाद वे म्यांमार के अंदर अपना कैंप लगाना शुरू कर चुके थे। परंतु वहाँ की सरकार ने भी कई कड़े कदम उठाए तथा भारतीय अधिकारियों के साथ मिलकर इन संगठनों से निपटने के लिए कई कदम उठाए।
म्यांमार की सेना द्वारा भारतीय सेना के साथ ऑपरेशन करने पर सहमति बनने के बाद पिछले कुछ वर्षों से विद्रोही समूहों पर अत्यधिक दबाव बन चुका है। पिछले वर्ष, म्यांमार की सेना ने भारतीय सुरक्षा एजेंसियों द्वारा प्रदान किए गये इंटेलिजेंस के आधार पर फरवरी और मार्च 2019 के मध्य, इन उग्रवादी संगठनों के खिलाफ कई अभियान चलाया था। म्यांमार की सेना ने पहले चरण में अरुणाचल प्रदेश में विजयनगर के तागा में कई आतंकी संगठनों के शिविरों पर हमला किया था, तथा दूसरे चरण में अरकान, नीलगिरि और हकियत शिविरों को नष्ट किया था। इन्हीं अभियानों में सभी 22 विद्रोहियों को म्यांमार सेना ने सागिंग क्षेत्र में पकड़ा था।
अजीत डोभाल के नेतृत्व में भारत और म्यांमार के बीच सैन्य संबंध पहले से अधिक गहरे हुए हैं। वर्ष 2018 में भारतीय सेना द्वारा म्यांमार सेना के सहयोग से पूर्वोत्तर में किए गए सर्जिकल स्ट्राइक को कौन भूल सकता है जब भारतीय सेना के कमांडों ने बड़ी संख्या में उग्रवादी मार गिराए थे। यह सर्जिकल स्ट्राइक भी अजित डोभाल के दिमाग की ही देन थी।
एक वरिष्ठ राष्ट्रीय सुरक्षा अधिकारी ने कहा, “यदि पाकिस्तान ने भी आतंकवादियों के खिलाफ कार्रवाई की होती, जैसा कि इन दोनों देशों ने किया है, तो शायद ही कोई आतंकी संगठन बचा होता।”
यानि देखा जाए तो अजित डोभाल एक बार फिर से भारत के सुपर कॉप साबित हुए हैं जिन्हें भारत के जेम्स बॉन्ड के नाम से भी जाना जाता है। कई सालों से एनएसए अजीत डोभाल देश की रक्षा और सुरक्षा से संबंधित सभी मामलों के केंद्र में बने हुए हैं। अजीत डोभाल ने करियर में ज्यादातर समय खुफिया विभाग में ही काम किया है। अमृतसर के स्वर्ण मंदिर से चरमपंथियों को निकालना हो या पाकिस्तान में खुफिया जासूस के तौर पर रहना अजित डोभाल ने वह सब किया है जिसकी हम सिर्फ कल्पना कर सकते हैं। अजीत डोभाल 33 साल तक नार्थ–ईस्ट, जम्मू–कश्मीर और पंजाब में खुफिया जासूस रहे हैं आज देश को उसी अनुभव का फायदा मिल रहा है और आज देश सुरक्षा मामलों में पहले से अत्यधिक सजग हो गया है।