बुरहान वानी याद है ना? अरे वही कश्मीर का नौजवान, जो एक गरीब हेडमास्टर का लाडला था। कितनी बेरहमी से इस बेचारे भटके हुए नौजवान को ईद के दिन भारतीय सुरक्षा कर्मियों ने मौत के घाट उतार दिया था।…..अरे अरे, चौंकिए मत। यह हम नहीं कह रहे, बल्कि भारतीय मीडिया का वह धड़ा कह रहा है, जिसे हमारे देश के निर्दोष नागरिकों की हत्या करने वाले राक्षसों का महिमामंडन करने में जाने कौन सा आत्मीय सुख मिलता है।
अब यही मीडिया हाल ही में पाताल लोक भेजे गए हिजबुल मुजाहिदीन के कमांडर रियाज़ नाइकू के महिमामंडन में जुट गए हैं। रियाज़ नाईकू का हाल ही में हमारे सुरक्षा कर्मियों ने एक लंबे सर्च ऑपरेशन के बाद संहार कर दिया है।
याकूब मेमन को फांसी दिए जाने पर सरकार और सुप्रीम कोर्ट पर तंज कसने के लिए बदनाम इंडियन एक्सप्रेस ने बुरहान वानी के तर्ज पर रियाज़ नाईकू का भी महिमामंडन किया. उसके शैक्षणिक योग्यता के बारे में गुणगान करने में इस पोर्टल ने ज़रा भी शर्म नहीं दिखाई।
The son of a tailor of Beighpora village in Awantipora in south Kashmir, Riyaz Naikoo acquired a degree in mathematics and taught the subject at a local school. Village residents remember him as a teacher popular among students. #ExpressExplained https://t.co/jIHRxXPCso
— Express Explained 🔍 (@ieexplained) May 6, 2020
अब ऐसे में हफिंगटन पोस्ट भला कैसे पीछे रहता? इसने भी रियाज़ नाईकू के गणित शिक्षक वाले बैकग्राउंड पर फोकस करते हुए बताया कि कैसे एक गणित शिक्षक हिज्बुल मुजाहिदीन का मुखिया बन गया।
https://twitter.com/anuraag_saxena/status/1257901030974480389?s=20
आज तक चैनल ने भी बहती गंगा में हाथ धोते हुए बताया कि कैसे गणित के शिक्षक से आतंकी सरगना बने रियाज़ नाईकू को पेंटिंग का भी शौक था। अब इसे नीचता की पराकाष्ठा नहीं कहें तो क्या कहे?
@aajtak did it. 😂 pic.twitter.com/eoQbbcLcVW
— AJAY🇮🇳 (@ajay_uk12) May 6, 2020
इसी भांति इन रिपोर्टरों ने लिबरल होने के नाम पर हमेशा कश्मीर मुद्दे पर भारत विरोधियों के पक्ष में अपनी बात रखी है। अधिकांश अवसरों पर इन सभी ने उग्रवादियों और उनकी नापाक हरकतों का महिमामंडन किया, और भारतीय सेना की प्रतिक्रियाओं को कश्मीरियों पर अत्याचार की तरह दिखाने का प्रयास किया है। वर्तमान स्थिति में भी उन्होंने अलगाववादियों का समर्थन किया है, और सुरक्षाबलों की अतिरिक्त तैनाती को देखते हुए इनका डर लाज़िमी भी है।
यहां पर भी बरखा दत्त और उनके स्वभाव पर प्रकाश डालना अत्यंत आवश्यक है। जब बुरहान वानी को हमारी सुरक्षा एजेंसियों ने मौत के घाट उतार दिया था, तब भी मीडिया का वामपंथी गुट बुरहान के महिमामंडन में लगा हुआ था। बरखा दत्त ने तो बुरहान वानी को एक गरीब हेडमास्टर के मासूम लड़के के तौर पर दिखाने का प्रयास किया था।
हाल के ट्वीट्स से इन लेफ्ट लिबरल पत्रकारों का एजेंडा एक बार फिर उजागर हुआ है। यह जानते हुए भी कि सेना का काम केवल राज्य के नागरिकों को सुरक्षा प्रदान करना है, फिर भी इन पत्रकारों का मकसद केवल कश्मीरियों में डर के माहौल को बढ़ावा देना है, उनमें भारतीय सेना के प्रति विरोध की भावना भड़काना है।
वास्तव में इन लेफ्ट लिबरल पत्रकारों को कश्मीरियों की वास्तविक भावनाओं की कोई परवाह नहीं है, और न ही उन्हें इससे मतलब है कि घाटी के नागरिकों को किन दिक्कतों का सामना करना पड़ता है। ये कश्मीरियों के वास्तविक दर्द को समझे बिना ही उनका दर्द समझने का दावा करते हैं।
अब रियाज़ नाईकू में ये लोग अपना नायक ढूंढने का घृणित प्रयास कर रहे हैं, ताकि कश्मीर में ये अपना कुत्सित एजेंडा कायम रहे और घाटी में पूर्ण शांति कभी स्थापित ना हो सके, और इस कृत्य की जितनी निंदा की जाए, वह कम है।