चीन के वुहान से आए कोरोना वायरस ने दुनिया को आर्थिक और सामाजिक क्षेत्र में कई वर्ष पीछे धकेल दिया है। विश्व के कई बड़े आर्थिक केन्द्रों जैसे न्यू यॉर्क, लंदन हाँग-काँग को होने वाले नुकसान का अंदाजा भी नहीं लगाया जा सकता है। भारत में उस स्तर का नुकसान नहीं हुआ जिस स्तर का अमेरिका या यूरोप में हुआ लेकिन फिर भी देश के कुछ बड़े शहरों को कई गुना नुकसान हुआ जिसमें मुंबई सबसे पहले नंबर पर आता है। भारत की आर्थिक राजधानी में कोरोना ने तबाही तो मचाई लेकिन इसके साथ ही मुंबई ने चीन से भागने वाली कंपनियों को आकर्षित करने का मौका भी गंवा दिया।
एक समय में विश्व के आर्थिक केन्द्रों जैसे न्यू यॉर्क, लंदन हाँग-काँग शंघाई और टोक्यो के बीच अपना नाम दर्ज कराने की राह पर चलने वाली मुंबई में कोरोना ने ऐसा तांडव मचाया है कि न सिर्फ वहाँ कोरोना का प्रतिशत ज्यादा है बल्कि आज मुंबई वुहान से भी अधिक प्रभावित दिखाई दे रहा है। इसका कोई और कारण नहीं, बल्कि महाराष्ट्र की उद्धव सरकार है। उद्धव ठाकरे ने कोरोना महामारी से निपटने में जिस अनुभवहीनता और अपरिपक्वता का परिचय दिया, वह शायद भारत के इतिहास में किसी मुख्यमंत्री ने नहीं दिया होगा। अकेले मुंबई में कोरोना के 35,485 पॉज़िटिव मामले दर्ज किए गए हैं जिसमें से 1,135 लोगों की मौतें हुई हैं। आज देश भर के शहरों में मुंबई कोरोना के मामले में सबसे आगे है लेकिन फिर भी अभी तक उद्धव सरकार को कोई होश नहीं आया है।
क्या सरकारी कर्मचारी क्या डॉक्टर, यहां तक कि पुलिसकर्मी और जेल अफसर भी इस महामारी की चपेट में आ गए हैं। अब तक 750 से अधिक पुलिसकर्मी महाराष्ट्र में इस महामारी से संक्रमित पाए गए हैं, और ऐसे में यह कहना गलत नहीं होगा कि उद्धव ठाकरे ने महाराष्ट्र को नर्क में परिवर्तित कर दिया है।
महाराष्ट्र सरकार के इस लचर रवैये के कारण सिर्फ मुंबई का नुकसान हुआ, बल्कि पूरे देश का हुआ है। आज अगर मुंबई में कोरोना काबू में रहता तो आने वाले कुछ वर्षों में दुनिया का आर्थिक केंद्र बन सकता था। आज चीन से सभी कंपनियाँ भाग रही हैं और नए जगह की तलाश में है। भारत के ही उत्तर प्रदेश और हरियाणा जैसे राज्य उन कंपनियों को अपने राज्य में आकर्षित करने के लिए लेबर कानून में बदलाव जैसे कई बड़े कदम उठा चुके हैं जिससे रोजगार के अवसर बढ़े और राज्य में आर्थिक गतिविधियों को बढ़ावा मिले।
मुंबई के पास वह सब कुछ पहले से था जो एक मल्टी नेशनल कंपनी की आवश्यकता होती है। इनफ्रास्ट्रक्चर, वर्क फोर्स, आर्थिक गतिविधियां, ग्लैमर और आगे बढ़ने की चाहत। सभी Mumbai में मौजूद है। अगर मुंबई ने जरा सा प्रयास किया होता तो चीन से भागने वाली कंपनियों को Mumbai में अपना केंद्र स्थापित कर निवेश करने में कोई परेशानी नहीं होती। इस सुनहरे मौके को विश्व की कई बड़ी कंपनियाँ भी भुनाती जिससे मुंबई को वैश्विक आर्थिक केंद्र बनने के दिशा में एक बूस्ट मिलता।
मुंबई पहले से ही भारत की आर्थिक राजधानी है और वहाँ देश के व्यवसायिक समुदायों जैसे गुजराती, बोहरा, खोजा मुस्लिम, पारसी, मारवाड़ी और देश के अन्य हिस्सों से आए लोगों की भरमार है, वे आगे बढ़ना चाहते हैं, कमाना चाहते हैं। कोई भी कंपनी इस व्यावसायिक वातावरण का भरपूर फायदा उठाना चाहती और मुंबई में निवेश करती।
परंतु उद्धव सरकार के लचर प्रशासन के वजह से बेकाबू हुए कोरोना ने मुंबई के सभी सपनों पर पानी फेर दिया है। मुंबई को होने वाले इस नुकसान के लिए कोई और नहीं बल्कि मुख्यमंत्री उद्धव ठाकरे जिम्मेदार हैं। बेकाबू हुए कोरोना ने सभी कंपनियों के मन में एक डर पैदा कर दिया है।
जब महाराष्ट्र के CM देवेन्द्र फडणवीस थे तभी मुंबई ने अंतर्राष्ट्रीय वित्तीय केंद्र बनने का सपना देखा था और उस पर काम भी चालू हो गया था। कई बड़े इन्वेस्टर को तत्कालीन सरकार ने आकर्षित भी किया था। जैसे रूस की कंपनी नोवोलिपस्टेक स्टील महाराष्ट्र में दो चरणों में वर्ष 2022 तक 6,800 करोड़ रुपये का निवेश करने वाली थी। इसी तरह अगर इस कोरोना के समय में भी मुंबई को बचाया जाता तो शायद Mumbai के पास भी एक सुनहरा मौका होता और कंपनियाँ मुंबई को अपना केंद्र बना कर वहाँ निवेश अवश्य करती। बड़े निवेश से मुंबई का नाम दुनिया के चुनिन्दा आर्थिक केन्द्रों में अपना नाम दर्ज होता परंतु उद्धव ने सभी सपनों पर पानी फेर दिया।