वुहान वायरस ने मानो चीन की हवा टाइट कर दी है। इस महामारी के प्रमुख स्त्रोत होने के कारण जिस तरह से चीन को दुनिया भर की आलोचना का सामना करना पड़ रहा है, उससे घबराकर चीन के प्रशासन ने अब फिर से वही पुराना तरीका अपनाया है, जिससे वो इस संकट से मुक्ति पा सके और अपने जनता का विश्वास सरकार में बनाए रखे।
चीन ने दूसरे देश को आक्रामक दिखाने के अपने पुराने ढर्रे को फिर से अपनाया है। इसीलिए वह अपने पड़ोसियों, विशेषकर भारत के साथ कुछ ज़्यादा ही हेकड़ी दिखा रहा है। हाल ही में बड़े पैमाने पर पीपुल्स लिबरेशन आर्मी द्वारा लद्दाख क्षेत्र में घुसपैठ की खबरें सामने आई है.
इससे स्पष्ट है कि बीजिंग कैसे भी करके COVID 19 पर से विश्व का ध्यान हटाना चाहती है, और इसी उद्देश्य से उसने लद्दाख क्षेत्र में घुसपैठ बढ़ा दी है, ताकि दुनिया को लगे कि भारत चीन पर हमला करने की तैयारी कर रहा है।
ग्लोबल टाइम्स के कथित सूत्रों के अनुसार भारत ने गैलवान क्षेत्र में घुसपैठ करने का प्रयास किया था। रिपोर्ट के अनुसार- “भारत की इस कार्रवाई से बार्डर पर हुए दोनों देशों के बीच समझौतों का गंभीर रूप से उल्लंघन हुआ है। यही नहीं इससे चीन की क्षेत्रीय संप्रभुता का उल्लंघन होने के साथ–साथ दोनों देशों के सैन्य संबंधों को नुकसान पहुंचा है“।
ग्लोबल टाइम्स ने चीनी सेना के एक सूत्र के हवाले से लिखा है कि इस क्षेत्र में भारतीय सैनिक गश्ती के लिए आते हैं और यह मई के शुरुआत से ही हो रहा है। जिन्हें रोकने के लिए यह तैनाती की गई है। चीन ने भारत पर लगाए आरोप पत्र में दावा किया है कि गैलवोन घाटी पर उसका अधिकार है। इस क्षेत्र में भारत सामरिक ठिकाने बनाकर नियंत्रण रेखा पर एकतरफा बदलाव लाने की कोशिश कर रहा है।
अब यह सभी को पता है चीनी अखबार ग्लोबल टाइम्स चीन की कम्युनिस्ट पार्टी के लिए झूठी कहानियाँ परोसता रहता है और इस बार भी भारत से हार के कारण अपनी इज्जत बचाने के लिए इस तरह के दावे पेश कर रहा है। इस महीने की शुरुआत में ही जब चीन ने सिक्किम और लद्दाख में अपने कदम बढ़ाने की कोशिश की तो भारतीय सेना ने चीनी सेना पर पलटवार करते हुए उन्हें मजा चखा दिया था। सिक्किम में तो दोनों ओर की सेनाओं को हल्की-फुल्की चोटें भी आई थी।
परन्तु चीन के यह नापाक प्रयास यहीं तक सीमित नहीं है। हाल ही में नेपाल की कम्युनिस्ट पार्टी के सांसदों ने संसद में एक विशेष प्रस्ताव पेश किया है जिसमें कालापानी, लिंपियाधुरा और लिपुलेख में नेपाल के क्षेत्र की वापसी की मांग की गई है। कैबिनेट से प्रस्ताव को मंजूरी मिलने के बाद नेपाल की राष्ट्रपति बिद्या देवी भंडारी ने कहा–
“लिंपियाधुरा, लिपुलेख और कालापानी इलाके नेपाल में आते हैं और इन इलाकों को वापस पाने के लिए मजबूत कूटनीतिक कदम उठाए जाएंगे। नेपाल के सभी इलाकों को दिखाते हुए एक आधिकारिक मानचित्र जारी होगा।”
बता दें कि कुछ दिनों पहले ही रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह ने धारचूला से लिपुलेख तक बनाई गयी नई रोड का उद्घाटन किया गया था। हालांकि इस रोड पर नेपाल ने तुरंत आपत्ति जताते हुए भारत के राजदूत विनय मोहन क्वात्रा को तलब कर लिया था। लेकिन तब भी भारत ने कहा था कि ‘उत्तराखंड के पिथौरागढ़ जिले में हाल ही बनी रोड पूरी तरह भारत के इलाके में हैं।
वहीं नेपाल के पीएम केपी शर्मा ओली ने संसद में बयान दिया कि भारत का राष्ट्रीय चिन्ह अशोक स्तम्भ सत्य मेव जयते है न कि सिंह मेव जयते? उन्होंने आगे कहा कि, “वह ‘सत्यमेव जयते‘ में विश्वास करते हैं और ऐतिहासिक गलतफहमी को दूर कर हम भारत के साथ अपनी दोस्ती को गहरा करना चाहते हैं”।
चीन का यह पैंतरा पहले भी उपयोग में लाया गया है। जब गौरैयों की बड़ी संख्या में हत्या करने के कारण चीन में भुखमरी फैलने लगी, तो उससे ध्यान हटाने के लिए माओ त्से तुंग के नेतृत्व में चीनी प्रशासन ने भारत पर धावा बोल दिया था। इसी भांति चीन में कम्यूनिस्ट शासन के प्रति उमड़ते आक्रोश से ध्यान हटाने हेतु 1978 के पश्चात वियतनाम पर धावा बोला गया। सच कहें तो चीन एक बार फिर वही भूल दोहरा रहा है, जिसके कारण 1967 में वह भारत द्वारा नाथू ला और चो ला में कूटा गया था।
इसके अलावा भारत के वर्तमान कदम भी चीन के हृदय में शूल की भांति चुभते हैं। सरकार FPI के नियमों में बदलाव करने के बाद चीनी कंपनियों और चीनी नागरिकों के लिए भारत की कंपनियों में FPI निवेश पर भी कड़े नियम लागू करना चाहती है। सरकार इस प्रकार के निवेश से पहले भी सरकार की मंजूरी प्राप्त करने को अनिवार्य कर सकती है।
वहीं सरकार इस मामले पर भी विचार कर रही है कि अगर चीन के नागरिक चीन से बाहर किसी देश से भारत की कंपनी में 10 प्रतिशत से ज़्यादा निवेश करते हैं, तो उसे भी इसी क़ानून के दायरे में लाया जाये। ताइवान के प्रति भारत के बदले स्वभाव में लिखते लिखते एक पूरी किताब छप सकती है।
इसी कारण से चीन बुरी तरह सकपका गया है, और वह चाहता ही कि किसी भी भारत दुनिया के सामने एक विलेन की तरह दिखाया जाए। परन्तु जिस तरह से लद्दाख में उसकी गतिविधियां दिखी हैं, उससे साफ दिखाई देता है कि कैसे चीन अपने ही पैर पर कुल्हाड़ी मार रहा है।