कोरोना ने सिर्फ दुनिया के लाखों लोगों के स्वास्थ्य को ही नुकसान नहीं पहुंचाया है, बल्कि इस वायरस ने सैकड़ों अर्थव्यवस्थाओं को भी तबाही के मुहाने पर लाकर खड़ा कर दिया है। इस महामारी के कारण सबसे ज़्यादा नुकसान उन देशों को हुआ है, जिनकी अर्थव्यवस्था मुख्यतः एक ही सेक्टर पर निर्भर है। उदाहरण के तौर पर कोरोना के कारण जैसे ही कच्चे तेल की वैश्विक मांग में रिकॉर्ड कमी दर्ज की गयी, वैसे ही कच्चे तेल के दाम भी औंधे मुंह गिर पड़े। इसके बाद अब इन खाड़ी के देशों के सामने अपनी-अपनी अर्थव्यवस्थाओं को बचाने का संकट आन खड़ा हुआ है। इसी प्रकार केवल टेक्सटाइल सेक्टर पर निर्भर बांग्लादेश में भी हालात कुछ ठीक नहीं हैं। जिन देशों की अर्थव्यवस्था विविध सेक्टरों पर निर्भर है, उन्हें कोरोना से लड़ने में आसानी हो रही है, लेकिन केवल एक ही सेक्टर पर आश्रित अर्थव्यवस्थाएँ घुटनों के बल पर आ चुकी हैं।
बात अरब देशों की करें, तो अरब दुनिया के बेताज बादशाह सऊदी अरब को पैसों के लिए अब अपने ही नागरिकों को निचोड़ना पड़ रहा है। हाल ही में सऊदी अरब को जरूरी चीजों पर VAT यानि वैल्यू एडेड सर्विसेज को तीन गुना करके 15 फीसदी वसूलने का ऐलान करना पड़ा था। आने वाले दिनों में खाड़ी के अन्य देश भी यही करने वाले हैं क्योंकि उन देशों की हालत सऊदी अरब से भी पतली है। दुनिया भर में तेल का निर्यात कर मोटी कमाई करने वाले सऊदी अरब को कोरोना के संकट के चलते कच्चे तेल की कीमत में आई भारी गिरावट के कारण खर्च में भी बड़ी कटौती करने पर मजबूर होना पड़ा है। राजशाही शासन से चलने वाले सऊदी अरब ने 26 अरब डॉलर तक खर्च में कटौती करने का निर्णय लिया है। यही नहीं सऊदी अरब के नागरिकों को कॉस्ट ऑफ लिविंग अलाउंस भी नहीं मिल पाएगा, जिसे वहाँ की सरकार सालाना भत्ते के तौर पर देती है। सऊदी अरब को यह सब इसलिए करना पड़ रहा है, क्योंकि वहाँ की अर्थव्यवस्था के लिए कच्चा तेल रीढ़ की हड्डी के समान काम करता है।
सऊदी अरब के कुल एक्स्पोर्ट्स का लगभग 80 प्रतिशत हिस्सा कच्चा तेल और इससे जुड़ी चीज़ें के रूप में ही होता है। इस प्रकार सऊदी अरब हर साल लगभग 230 बिलियन डॉलर का कच्चा तेल एक्सपोर्ट करता है। अब कोरोना के कारण जैसे ही लॉकडाउन लागू हुआ, तेल की मांग लगभग खत्म हो गयी और सिर्फ तेल पर निर्भर अरब के देशों का तेल निकल गया।
बता दें कि तेल पर ज़रूरत से ज़्यादा निर्भरता उत्तरी अफ्रीका के कुछ देशों समेत खाड़ी के सभी देशों पर कोरोना बेहद गहरा नकारात्मक प्रभाव डालने वाला है। इराक़, अल्जीरिया, कुवैत, क़तर, UAE, बहरीन जैसे देशों के कुल एक्स्पोर्ट्स में से अधिकतर हिस्सा कच्चे तेल का ही होता है। ये एक्स्पोर्ट्स अब ठप पड़ चुके हैं, जिससे कमाई एक साथ ही शून्य हो गयी है।
इसी प्रकार हमारे पड़ोसी देश बांग्लादेश की अर्थव्यवस्था में टेक्सटाइल सेक्टर रीढ़ की हड्डी का काम करता है। बांग्लादेश की GDP में कपड़ा उद्योग की हिस्सेदारी लगभग 16 प्रतिशत है, और करीबन 40 लाख लोग इस उद्योग में काम करते हैं। देश के कुल एक्स्पोर्ट्स में से लगभग 80 प्रतिशत एक्स्पोर्ट्स भी टेक्सटाइल से जुड़े सामानों का ही होता है। कोरोना के बाद से अब सब बंद हो चुका है। ना सिर्फ सभी पुराने orders को रद्द कर दिया गया है, बल्कि कोई नया order भी नहीं आ रहा है, जिससे इस उद्योग में काम करने वाले 40 लाख लोगों पर बेरोजगारी का खतरा मंडराने लगा है।
यही हाल पाम ऑयल पर निर्भर मलेशिया का भी है। पाम ऑयल देश के कुल एक्स्पोर्ट्स में 4.5 प्रतिशत की हिस्सेदारी रखता है, तो वहीं देश की GDP में इसकी हिस्सेदारी 2.8 प्रतिशत है। हालांकि, यह उद्योग इसलिए सबसे ज़्यादा महत्वपूर्ण हो जाता है क्योंकि इस उद्योग में लगभग 10 लाख लोग काम करते हैं। 6 से 7 लाख लोगों को इस उद्योग में प्रत्यक्ष तौर पर रोजगार मिलता है, तो वहीं लगभग 3 लाख लोगों को अप्रत्यक्ष रूप से! भारत के साथ तनाव के दौरान पहले ही मलेशिया के पाम उद्योग को बड़ा नुकसान उठाना पड़ा था। भारत ने पहले ही पाम ऑयल के इम्पोर्ट को “free” से “restricted” कैटेगरी में डाला हुआ है, वहीं चीन में भी पाम ऑयल की डिमांड गिर चुकी है। ये दोनों ही देश दुनिया में पाम ऑयल के सबसे बड़े इंपोर्टर देश हैं। ऐसे में मलेशिया और इंडोनेशिया में पाम ऑयल उद्योग के सामने कड़ी चुनौतियाँ सामने आ चुकी हैं।
कोरोना ने उन सब देशों को एक कड़ा सबक दिया है, जिन देशों की अर्थव्यवस्थाएँ सिर्फ एक ही सेक्टर पर आश्रित हैं। देश जितना ज़्यादा एक सेक्टर पर निर्भर होते हैं, उसकी अर्थव्यवस्था उतनी ही ज़्यादा vulnerable हो जाती हैं। अरब के देशों, बांग्लादेश और मलेशिया से बेहतर इसे और कौन समझ सकता है।