एक बार फिर से मोदी सरकार ने अकर्मण्य और अपनी मर्यादा पार करने वाले नौकरशाहों को एक कड़ा संदेश भेजा है। हाल ही में 1 करोड़ से ज़्यादा कमाने वाले लोगों पर 40 प्रतिशत आयकर लगाने का घटिया सुझाव देने वाले आईआरएस अफसरों के विरुद्ध कड़ा एक्शन लेते हुए मोदी सरकार ने नियमों का उल्लंघन करने हेतु चार्जशीट दाखिल की है।
हिन्दुस्तान टाइम्स के रिपोर्ट के अनुसार जिन तीन आईआरएस अफसरों ने इस वाहियात रिपोर्ट को बनाने में प्रमुख भूमिका निभाई, उनके विरुद्ध चार्जशीट आधिकारिक रूप से दाखिल की गई है। इससे पहले मोदी सरकार ने ऐसे टैक्स टेररिज्म के सामने घुटने टेकने से साफ मना कर दिया था।
वित्त मंत्रालय ने साफ बताया, “आईआरएस अफसरों के एक समूह ने फोर्स नामक बेबुनियाद रिपोर्ट तैयार की, जिसमें वुहान वायरस जैसी महामारी के समय में राजस्व जुटाने के लिए धनी लोगों पर कर दर बढ़ाने, COVID-19 सेस लगाने, एमएनसी पर सरचार्ज बढ़ाने की बात कही थी। जिस तरह से इन्होंने यह सुझाव मीडिया से साझा किया, वह एक गैर जिम्मेदाराना कार्य है और कुछ अफसरों की मिलीभगत से की गई एक शरारत है। सरकार या आईआरएस एसोसिएशन ने ऐसे किसी रिपोर्ट के लिए स्वीकृति नहीं दी थी”।
हिन्दुस्तान टाइम्स के मुताबिक एक प्रारम्भिक इंक्वायरी में तीन आईआरएस अफसरों को इस कृत्य के लिए दोषी ठहराया गया है। रिपोर्ट में आगे ये भी बताया गया है कि कैसे 30 साल का अनुभव होने के बावजूद सरकारी मशीनरी का उपयोग करने की बजाए इन लोगों ने मीडिया की ओर रुख किया।
एक सरकारी अफसर ने इस कदम के पीछे का तर्क समझाते हुए बताया, “इस रिप्रोट के कारण देश भर में लोगों में टैक्स नीति को लेकर डर फैलने लगा और देश की आर्थिक स्थिति के हिसाब से ये एक बेहद गैर जिम्मेदाराना कदम था”।
इसमें कोई दो राय नहीं है कि यह निर्णय सच में सरकार के वर्तमान रुख के बिल्कुल विरुद्ध था। जब सरकार निवेशकों को आकर्षित करने के उद्देश्य से कॉरपोरेट टैक्स में भारी कटौती से लेकर व्यक्तिगत करदाताओं को कम टैक्स दरों को चुनने की स्वतंत्रता दी हो, तो ऐसे निर्णय उसके लिए किसी दुस्वप्न से कम नहीं होंगे।
इससे पहले भी मोदी सरकार ने नौकरशाही को ऐसे कड़े संदेश समय समय पर भेजे हैं। पिछले वर्ष ही कई भ्रष्ट अफसरों के विरुद्ध केंद्र सरकार ने युद्धस्तर पर कार्रवाई की थी। चाहे वो आईआरएस हो या फिर आईएएस, जो भी सरकार के नीतियों पर खरा नहीं उतरा, उसे तुरंत कंपल्सरी रिटायरमेंट प्रदान की गई।
नेहरूवादी समाजवाद और उससे उत्पन्न एक अति उत्साही नौकरशाही के कारण एक दमनकारी समाजवादी अर्थव्यवस्था की नींव पड़ी। नौकरशाही द्वारा अनेक बाधाएं डालना हो, या फिर लाल फीताशाही हो, ये सभी एक निष्क्रिय समाजवादी तंत्र के परिचायक हैं।
जिस प्रकार से आईआरएस अफसरों ने टैक्स टेररिज्म को बढ़ावा देने का पुनः प्रयास किया, उससे स्पष्ट सिद्ध होता है कि किस तरह एक गैर ज़िम्मेदार नौकरशाही कॉरपोरेट दुनिया के साथ साथ अर्थव्यवस्था को भी खतरे में डाल सकती है।
हालांकि, मोदी सरकार ने इनकी खुशामद ना करते हुए एक कड़ा संदेश भेजा है। ये मोदी सरकार के नीतियों ने अन्तर्गत आता है, जहां लगभग अकर्मण्य पड़ चुके लोक सेवा अफसरों में काम के प्रति निष्ठा को पुनः जागृत कर सके। इससे एक बार फिर सिद्ध होता है कि मोदी सरकार किसी भी स्थिति में अकर्मण्यता कतई नहीं सहेगी और बड़े से बड़े नौकरशाह के विरुद्ध सख्त कार्रवाई भी कर सकती है।