कोरोना काल में शुरू से ही चीन का रुख बेहद आक्रामक देखने को मिला है। चीन ना सिर्फ दक्षिण चीन सागर में अपनी गुंडागर्दी दिखा रहा है, बल्कि वह भारत-तिब्बत सीमा और हाँग-काँग में भी लगातार विवाद बढ़ा रहा है। हाल ही में चीनी सरकार ने हाँग-काँग में विवादास्पद राष्ट्रीय सुरक्षा कानून को लागू करने की मंजूरी दे दी है, जिसके बाद हाँग-काँग की स्वायत्ता खतरे में आ जाएगी। चीन द्वारा उठाया जा रहा है यह कदम पूरी तरह गैर-कानूनी है क्योंकि 19 दिसंबर 1984 को चीन और ब्रिटेन के बीच Sino-British joint declaration सहमति बनी थी, जिसके मुताबिक वर्ष 1997 से लेकर अगले 50 वर्षों तक यानि वर्ष 2047 तक Hong-Kong को अपने basic law के तहत कुछ स्वायत्ता प्राप्त रहेगी।
इस स्वायत्ता के तहत Hong-Kong के लोगों को प्रदर्शन करने और सरकार का विरोध करने की आज़ादी हासिल है। पिछले कुछ समय से हाँग-काँग के लोग इन्हीं अधिकारों के तहत चीन की कम्युनिस्ट पार्टी का विरोध कर रहे थे, जिसे खत्म करने के लिए अब कम्युनिस्ट पार्टी तय समय से 27 साल पहले ही Hong-Kong की स्वायत्ता खत्म करने की योजना पर काम कर रही है।
हालांकि, यहाँ सबसे बड़ी हैरानी वाली बात यह है कि चीन जिस UK के साथ हुए समझौते को तोड़ने की दिशा में कदम बढ़ा रहा है, वह UK इस पूरे मामले पर कोई सख्त रुख नहीं दिखा रहा है। यूके की सरकार को जहां चीन के खिलाफ सख्त भाषा का इस्तेमाल कर उसपर हाँग-काँग के बेसिक लॉ में कोई भी बदलाव करने से रोकना चाहिए था, ऐसे समय में यूके की सरकार सिर्फ हाँग-काँग के क्रांतिकारियों को शरण देने की बात कहकर पल्ला झाड़ने की बात कह रही है।
Hong-Kong के मुद्दे पर अगर कोई दो देश खुलकर चीन का विरोध कर रहे हैं, तो वो हैं अमेरिका और ताइवान! ताइवान ने अपने यहाँ ना सिर्फ हाँग-काँग के क्रांतिकारियों को शरण देने की बात कही है, बल्कि हाँग-काँग में लोकतन्त्र का समर्थन भी किया है। इसके साथ ही अमेरिका भी चीन को उसके कदम के गंभीर परिणाम भुगतने की धमकी दे चुका है। अमेरिकी विदेश मंत्री ने इस मुद्दे पर हाल ही में कहा था “आज की तारीख में कोई भी यह नहीं कह सकता कि हॉन्ग कॉन्ग को चीन से स्वायतत्ता मिली हुई है। इसे लेकर अब कोई उम्मीद नहीं बची है। आज मैंने यूएस कांग्रेस को बता दिया है कि हॉन्ग कॉन्ग को अब चीन से मिली स्वायतत्ता खत्म हो गई है। इसे लेकर तथ्य भी पेश किए गए हैं। अमेरिका हॉन्ग कॉन्ग के लोगों के साथ खड़ा रहेगा”।
हालांकि, जिस देश को चीन का सबसे ज़्यादा विरोध करना चाहिए था, वह UK तो बस Hong-kong के लोगों को शरण देने की बात कर रहा है। यूके को अब ना सिर्फ चीन पर आर्थिक प्रतिबंध लगाने की बात करनी चाहिए बल्कि अपने यहाँ से सभी चीनी कंपनियों की घर वापसी के भी इंतजाम करना चाहिए। हुवावे के मामले पर तो यूके पहले ही ऐसा कर चुका है। इसके अलावा टाइम्स अखबार की रिपोर्ट के अनुसार ब्रिटिश प्रधानमंत्री बोरिस जॉनसन ने नौकरशाहों को निर्देश दिया है कि चिकित्सा आपूर्ति और अन्य रणनीतिक आयातों के लिए चीन पर से ब्रिटेन की निर्भरता को समाप्त करने की योजना बनाई जाये। कुल मिलकर UK अमेरिका के दबाव में आकर अन्य मामलों में तो चीन के खिलाफ खड़ा होता दिखाई दे रहा है, लेकिन हाँग-काँग के मुद्दे पर जहां यूके को चीन का पूरी ताकत के साथ विरोध करना चाहिए था, ऐसे में यूके अपने हाथ पीछे खींचता दिखाई दे रहा है। यूके के नेतृत्व को खुलकर हाँग-काँग के लोगों का समर्थन करना चाहिए