हुआ ये की शुक्रवार को दिल्ली सरकार के मंत्री गोपाल राय ट्वीट करके जानकारी देते हैं कि केजरीवाल सरकार ने लॉकडाउन की वजह से दिल्ली में फंसे हुए मजदूरों को श्रमिक एक्सप्रेस से उनके घर बिहार वापस भेजने का प्रबंध कर दिया है, ट्रेन 1200 लोगों को लेकर बिहार के मुजफ्फरपुर के लिए निकल चुकी है और साथ मे ये भी बताते हैं कि उन सबके किराए का खर्च दिल्ली की केजरीवाल सरकार वहन करेगी।
बात यहीं नहीं रुकती है, केजरीवाल सरकार एक बयान जारी कर अपनी पीठ थपथपाते हुए ये भी बताती है कि कैसे सोशल डिस्टेंसिंग का पालन किया गया, किस तरह उनकी सरकार ने मानवता के आधार पर मजदूरों को वापस भेजने का फैसला किया।
कहानी में मोड़ तब आता है जब जदयू नेता अजय आलोक ट्वीट कर ये जानकारी देते हैं कि दिल्ली के केजरीवाल सरकार ने बिहार सरकार से श्रमिक एक्सप्रेस के किराए के पैसे की मांग की है। ट्वीट में वो दिल्ली सरकार के एक सचिव का बिहार सरकार के सचिव को लिखा एक पत्र जारी करते हैं जिसमे बिहार सरकार से 1200 मजदूरों के किराए के 6.5₹ के भुगतान की मांग की जाती है।
इसमे गौर करने वाली बात ये है कि केन्द्र सरकार पहले ही साफ कर चुकी है कि रेलवे किराए का 85% हिस्सा केंद्र सरकार खुद वहन करेगी उसके बावजूद दिल्ली सरकार ये बताने की कोशिश करती है कि वो किराए के पैसे अपने खजाने से दे रही है और चुपके से बिहार सरकार से भी पैसे लेने का प्रयास करती है।
इस मामले के सामने आने के बाद विपक्षी पार्टियां केजरीवाल सरकार पर हमलावर हो जाती है एवं सोशल मीडिया पर भी केजरीवाल सरकार की काफी आलोचना होती है।
सीएम केजरीवाल शुरुआती दिनों से ही इस तरह की राजनीति के लिए जाने जाते रहे हैं। देशभर के अखबारों में अपने फोटो के साथ झूठे विज्ञापन हो या किसी न किसी बहाने पुरे दिन टीवी पर उनका प्रकट होना,काम कम प्रचार ज्यादा में हमेशा से अव्वल रहे हैं।
पर ऐसे समय मे जब पूरा देश कोरोना कि वजह से परेशान है, लोग तकलीफ में हैं उस समय ऐसी ओछी राजनीति किसी भी तरह से जायज नहीं ठहराया जा सकता। केजरीवाल जी को इस तरह की राजनीति करने की जगह दिल्ली में कोरोना के बढ़ते प्रभाव के रोक-थाम एवं लोगों के भलाई में ज्यादा ध्यान देना चाहिए।