वुहान वायरस के महामारी का स्वरूप लेने के बाद विश्व के लगभग सभी देशों ने चीन के खिलाफ एक्शन लेने और स्वतंत्र जांच की मांग की है। अमेरिका से लेकर ऑस्ट्रेलिया तक चीन से जवाब मांग रहे हैं। इसी क्रम में अब यूरोपियन यूनियन भी शामिल हो गया है। इससे न सिर्फ चीन और यूरोपीय संघ के सम्बन्धों में खटास आएगी बल्कि चीन को इसके कड़े परिणाम भुगतने पड़ेंगे।
पिछले कुछ वर्षों में चीन और यूरोपियन यूनियन के संबंध एक समय में इतने प्रगाढ़ हो चुके थे कि ऐसा लग रहा था मानो चीन अब यूरोप को अपने कब्जे में कर लेगा। लेकिन कोरोना वायरस के कारण चीन का यूरोप के साथ संबंध अब एक जली हुई रस्सी के सामन हो गयी है जो कभी भी टूट सकती है।
दरअसल कई देशों द्वारा चीन की निंदा किए जाने कुछ दिनों बाद यूरोपियन यूनियन ने भी चीन के खिलाफ एक रिपोर्ट लिखी थी जिसमें वुहान वायरस से निपटने में चीन की भूमिका पर भी प्रश्न किए गए थे। इसके बाद चीन काफी नाराज हो गया था और यह खबर आई कि चीन ने EU पर दबाव डालकर रिपोर्ट में संशोधन करवाया । EU ने रिपोर्ट में से चीन के खिलाफ लिखे गए कड़े शब्दों को संशोधित कर उसे सामान्य रिपोर्ट में बदल दिया था।
इसके बाद यूरोपियन यूनियन के सदस्य देशों ने EU पर उनकी छवि कमजोर करने का आरोप लगाया और European Parliament की मीटिंग बुलाई थी। उस दौरान यूरोपीय यूनियन के प्रमुख ने भी ये माना था कि चीन ने अपने डिप्लोमेटिक चैनल के जरिये रिपोर्ट को प्रभावित करने की कोशिश की थी। परंतु उन्होंने चीन के सामने झुकने की रिपोर्ट को खारिज कर दिया।
यूरोपीय संसद की चेक गणराज्य की सदस्य मार्केटा ग्रेगोरोवा (Markéta Gregorová ) ने कहा कि इससे यूरोपीय संघ की प्रतिष्ठा को धक्का लगा है।
यानि देखा जाए तो इस ताकतवर ब्लॉक के सदस्य देश चीन के खिलाफ प्रखर रूप से सामने आ रहे हैं। यही नहीं स्वीडन ने भी COVID -19 महामारी की उत्पत्ति की जांच के लिए यूरोपीय संघ से कहने की योजना बना रहा था।
हालांकि, यूरोपीय यूनियन पहले तो चीन के खिलाफ खुल कर बोलने से इन्कार कर रहा था लेकिन, जैसे जैसे सदस्य देश चीन के खिलाफ बोल रहे हैं वैस-वैसे EU भी धीरे धीरे सावधानी से अपने सुर बदल रहा है। यही नहीं European Union Commission की अध्यक्ष Ursula von der Leyen ने भी कोरोनोवायरस की उत्पत्ति की जांच का समर्थन किया और कहा कि चीन को इस प्रक्रिया में शामिल होना चाहिए।
EU के ये स्वर यूं ही नहीं बदले बल्कि कोरोना के समय में भी चीन द्वारा अर्थव्यवस्थाओं को हाईजैक करने की कोशिश के बाद बदला है। चीन ने यूरोप के कुछ देशों जैसे फ्रांस और इटली में वित्तीय तौर पर कमजोर कंपनियों में हिस्सेदारी खरीद कर इन्हें अपने कब्जे में लेने की फिराक में था जिसके बाद कई यूरोपीय देशों ने रातो रात अपने FDI नियमों में बदलाव किया था। यही नहीं कुछ हफ़्ते पहले, यूरोपीय संघ के कंपीटीशन मुख्य मार्गेटे वेस्टेगर ने चीन को दूर रखने के लिए यूरोपीय संघ के सदस्य-देशों को पूंजी की कमी के कारण कमजोर कंपनियों में हिस्सेदारी खरीदने के लिए कहा है जिससे ऐसे कंपनियों को चीन के हाथों में जाने से बचाया जा सके।
यानि देखा जाए तो यूरोपियन यूनियन के साथ साथ प्रत्येक देश के साथ चीन का संबद्ध खराब हो चुका है। ऐसे समय में जब चीन पूरी दुनिया के सामने एक्सपोज हो चुका है तब EU द्वारा चीन के लिए थोड़ी सी भी हमदर्दी दिखाना उसपर भारी पड़ेगा। ऐसे इसलिए क्योंकि ब्रेक्जिट के बाद से EU की छवि पहले से ही खराब हो चुकी है और अब कोरोना जैसी महामारी के लिए जिम्मेदार चीन का साथ देना उसके बस की बात नहीं है।
यूरोपीय यूनियन के साथ चीन के संबंध खराब होना चीन के लिए किसी बड़े झटके से कम नहीं है। चीन के यूरोपीय यूनियन के दोस्त के समान था जो उसके ट्रेड में बड़ी सहभागिता रखता है। चीन और यूरोप के बीच संबंधों में आर्थिक और व्यापारिक संबंध का महत्वपूर्ण स्थान रहा है। वर्ष 2018 तक यूरोपीय संघ लगातार 15 वर्षों तक चीन का सबसे बड़ा व्यापारिक साझेदार बना रहा है। उधर चीन यूरोपीय संघ का दूसरा बड़ा व्यापारिक साझेदार भी है। यूरोपीय संघ में चीन का प्रत्यक्ष विदेशी निवेश तेज़ी से बढ़ा और 2016 में सबसे ऊंचे स्तर पर 37.2 बिलियन यूरो पहुंच गया था। 2008 से अभी तक 30 यूरोपीय देशों में चीन की निवेशी गतिविधियां अमरिका के मुक़ाबले 45 प्रतिशत अधिक रहीं थी।
इसके अलावा चीन BRI के जरिये भी यूरोप में अपने प्रभाव बढ़ा रहा था। 2019 तक चीन के इस महत्वाकांक्षी प्रोजेक्ट से 22 यूरोपीय देश जुड़ चुके थे। यही नहीं बल्कि चीन न केवल यूरोपीय संघ के साथ 62 बिलियन यूरो का ट्रेड सरप्लस चलाता है। कई यूरोपीय कंपनियों के अपने मैन्युफैक्चरिंग यूनिट चीन में है जो लाखों चीनी लोगों को रोजगार प्रदान करते हैं। चीन का यूरोप के साथ खराब होते संबंध से चीन की अर्थव्यवस्था को ही नहीं बल्कि वहाँ के समाज को भी गहरा झटका लगेगा। अगर यूरोपीय कंपनियाँ चीन से नाराज होकर किसी अन्य देश में अपनी मैन्युफैक्चरिंग यूनिट स्थापित करती हैं तो लाखों चीनी लोग बेरोजगार हो जाएंगे और चीन की कम्युनिस्ट शासन के खिलाफ असंतोष बढ़ जाएगा।
यूरोपीय यूनियन के साथ चीन के खराब होते रिश्ते चीन के लिए अमेरिका से ट्रेड वार के बाद सबसे बड़ा झटका है और यह चीन की कम्युनिस्ट सरकार और राष्ट्रपति शी जिनपिंग के लिए खतरे की घंटी है।