चीन एक ऐसा देश है जिसने कभी भी मल्टी कल्चर या बहुलवाद को समर्थन नहीं किया और इसी कारण से आज तह वह अन्य देशों से सांस्कृतिक रूप से दूर रहा है। चीन की सत्ताधारी कम्युनिस्ट पार्टी द्वारा उइगर मुसलमानों का व्यवस्थित उत्पीड़न भी चीन के इसी वास्तविकता से परिचय करवाती है। इतने दिनों तक के उत्पीड़न के बाद अब चीन ने कोरोना वायरस के कारण श्रमिकों में आए कमी को पूरा करने के लिए इन उइगर मुसलमानों का ‘पुन: शिक्षा’ के कैंप के बाद फैक्ट्रियों में इस्तेमाल करने का फैसला लिया है।
यहाँ ध्यान देने वाली बात है कि चीन का इन मुसलमानों के कुछ लेना देना नहीं है बल्कि यह सिर्फ घृणा है। यह ठीक उसी तरह है जैसे हिटलर ने द्वितीय विश्वयुद्ध से पहले यहूदियों को फैक्ट्री में दासों की तरह इस्तेमाल किया और फिर उन्हें यातना कैंप में भाप बना दिया था।
दरअसल, south china Morning Post की रिपोर्ट के अनुसार चीन अब CCP के शिक्षण कैंपो में रह रहे हजारों उइगर मुसलमानों को एक दूसरे स्थान पर ले जाने पर काम कर रही है। इन सभी चीन के विभिन्न हिस्सों में ले जाया जाएगा और जहां भी कामगारों की आवश्यकता होगी वहाँ उन्हें फैक्ट्रियों में काम पर लगा दिया जाएगा। SCMP के अनुसार, 19 चीनी प्रांतों और शहरों को उइगर मुसलमानों को काम के लिए हायर करने के लिए ‘कोटा’ दिया गया है। इन सभी का पूरी तरह से ब्रेनवाश करने के बाद, अब चीन की कम्युनिस्ट पार्टी विभिन्न प्रांतों में काम पर लगाने के लिए परोस रही है।
यह उल्लेख करना आवश्यक है कि इसी वर्ष फरवरी में, जब चीन अपने ही फैलाये एक महामारी से तबाह हो रहा था तब भी, सीसीपी हजारों उइगर मुसलमानों को चीन के विभिन्न हिस्सों में मजदूरों के रूप में भेज रहा था। आखिर ऐसे मजदूरों से क्या करवाए जाने की उम्मीद है? उनके भोजन और आवास का ध्यान तो रखा जाएगा लेकिन उन्हें अपने डॉर्मिटरी से बाहर आसपास घूमने की अनुमति नहीं दी जाएगी।
चीन ने इस प्लान को पिछले वर्ष ही लागू करने का मन बनाया था लेकिन कोरोना ने सब काम बिगाड़ दिया। लेकिन फिर भी यह कुछ समय के लिए ही रुका और अब चीन इसे अंजाम देने जा रहा है। इसी के साथ चीन यह भी PR करने में जुट गया है कि उसने कोरोना को काबू कर लिया है।
चीन भले ही कितना भी प्रचार कर ले लेकिन उसके इस कदम से दुनिया अच्छी तरह जानती है कि वह इन मुसलमानों के साथ क्या करने वाला है। कम वेतन, उनके घूमने पर प्रतिबंध, पुन: शिक्षा के शिविरों से स्नातक, यह सभी जबरन मज़दूरी के संकेत हैं।
इससे पहले भी दुनिया ने एक शासक द्वारा किसी खास समुदाय के लिए इस तरह की घृणा देख चुकी है। यह नाजी जर्मनी की याद दिला रहा है और हिटलर की तुलना शी जिंपिंग से करने में कोई हिककिचाहट नहीं होनी चाहिए।
हिटलर ने जिस तरह से यहूदियों का इस्तेमाल जबरन मजदूरी के लिए किया वह आज भी इतिहास में काले अक्षरों से लिखा है। वही काम अब शी जिंपिंग उइगर मुसलमानों के साथ कर रहे हैं।
द्वितीय विश्वयुद्ध के के दौरान, नाजियों ने यहूदियों के लिए Arbeitslager या श्रमिक कैंप चलाया था तो वहीं, चीन आज उइगरों को “re-education” कैंप में संग्रहीत कर रहा है।
पोलैंड पर आक्रमण के बाद, 12 साल की उम्र में पोलिश यहूदियों और पोलैंड के निवासियों को जबरन मजदूरी करना पड़ा था। 1930 से 1940 के बीच लाखों यहूदियों और अन्य विजित लोगों का इस्तेमाल जर्मन कॉरपोरेशन जैसे कि Thyssen, Krupp, IG Farben, Bosch, Daimler-Benz, Demag, Henschel, Junkers, Messerschmitt, Siemens और यहां तक कि Volkswagen द्वारा गुलाम मजदूरों के रूप में किया गया था।
अब चीन भी उइगर मुसलमानों को अपने विभिन्न प्रान्तों में भेजकर काम पर लगाना चाहता है, ऐसा तब जब चीन में कोरोना वायरस का सेकेंड वेव आया हुआ है। पिछले तीन वर्षों में, चीन ने एक लाख से अधिक कज़ाख और उइगर मुसलमानों को बंदी बना कर उन्हें re-education के नाम पर शोषित कर रहा है।
अब चीन का असली मकसद सामने आया है और CCP उइगरों का इस्तेमाल गुलाम मजदूरों की तरह करने जा रहा है। जिस तरह से अभी तक किसी भी देश ने उइगर मुसलमानों पर होने वाले अत्याचार के बारे में खुलकर चीन का विरोध नहीं कर सका है उसी तरह अब भी यह मामला शायद ही वैश्विक स्तर पर उठ पाये। मानवाधिकार की बात करने वाले किसी बिल में ही छिपे होंगे क्योंकि उन्हें डर है कि कहीं वो भी गायब न हो जाए।