जैसे जैसे कोरोना का कहर बढ़ता जा रहा है वैसे वैसे भारत और भारत की संस्कृति में रचे बसे तत्वों का महत्व भी सामने आता जा रहा है। यूरोप और अमेरिका जैसे फ़र्स्ट वर्ल्ड कंट्री में त्राहिमाम मचा हुआ है, अर्थव्यवस्था औंधे मुंह गिरने के कगार पर खड़ी है। अमेरिका में तो लोगों को खाना नहीं मिल रहा है, हर पंचवा बच्चा भूखा सो रहा। वहीं दूसरी तरफ देखा जाए तो भारत में लोग लॉकडाउन की स्थिति में भी अन्य देशों के मुक़ाबले बेहतर सुविधा के साथ रह रहे हैं। चाहे कोई व्यक्ति अपने शहर से दूर ही क्यों न है, वह इस लॉकडाउन में भूखे नहीं मर रहा है। भारत में मध्यम वर्ग के लोग भी सोशल मीडिया जैसे इंस्टाग्राम पर रोज़ नए नए पकवान की फोटो डाल रहे हैं। यह कैसे संभव है?
यह भारत की संस्कृति ही है जिसने इस देश में एक परिवार के महत्व को जीवित रखा है और वही परिवार इस विपत्ति की घड़ी में आज हम सभी की मजबूती का कारण बना हुआ है।
बता दें कि कोरोना ने अमेरिका में तांडव मचाया हुआ है और पॉज़िटिव मामलों की संख्या 1 मिलियन से ऊपर जा चुकी है। वहीं 76 हजार से अधिक लोगों की मौत हो चुकी है। अर्थव्यवस्था अब ढहने के कगार पर है। वहाँ पर लॉकडाउन लगाए जाने की वजह से एक के बाद एक लगभग सभी कारोबार रातों रात ठप पड़ते जा रहे हैं। इस कारण से अमेरिका में बेरोजगारी भी अपने चरम पर पहुंच चुकी है। पिछले सप्ताह बेरोजगारी इन्शुरन्स के लिए 3.17 लोगों ने अप्लाई किया था। यही अगर पीछले 7 सप्ताह को देखें तो यह संख्या 33.5 मिलियन पहुंच जाती है।
भोजन बैंक पर निर्भर अमेरिका के लोग
ऐसे लोगों के परिवार खाने के लिए भोजन बैंक पर निर्भर हो चुके हैं। समाचार एजेंसी एएफपी की रिपोर्ट के मुताबिक, बड़ी संख्या में लोग खाने-पीने के लिए दानदाताओं पर निर्भर हो गए हैं। यही नहीं कुछ कारों में लोग कतार लगाए दान के लिए घंटों इंतजार करते देखे जा रहे हैं। पेन्सिलवेनिया में ग्रेटर पीट्सबर्ग कम्युनिटी फूड बैंक के एक वितरण केंद्र में करीब एक हजार कारें कतारों में खड़ी रहीं। आलम यह है कि कम्युनिटी फूड बैंक के भोजन के पैकेटों की मांग मार्च में करीब 40 फीसदी तक बढ़ गई है।
न्यू ओर्लीन्स से लेकर डेट्रोइट तक पूरे अमेरिका में लोग भोजन के लिए भोजन बैंकों की तरफ दौड़ लगा रहे हैं। Bostan के Chelsea में एक food distribution center में Alana नाम की महिला ने बताया कि, ‘हमें काम पर गए महीनों बीत गए हैं। मुझे कल 15 दिन के नवजात के साथ एक महिला मिली। उसका पति काम नहीं कर रहा है, उसके दो और बच्चे हैं। उसके घर में खाने का कोई सामान नहीं है।‘
पूरे अमेरिका में यही हालात हैं। बुधवार को जारी Brookings Institution के सर्वे में पाया गया कि 12 साल या उससे कम उम्र के बच्चों की 17.4 प्रतिशत माताओं ने बताया कि पैसों की कमी के कारण उनके बच्चे पर्याप्त मात्रा में भोजन नहीं कर पा रहे हैं। घरों में भोजन की कमी के कारण खाने में कटौती की जा रही है और बच्चों को जबरन भोजन नहीं लेने को कहा जा रहा है। लगभग हर पंचवा बच्चा खाने की कमी से जूझ रहा है।
आज कमाओ-आज उड़ाओ
अमेरिका जैसे फ़र्स्ट वर्ल्ड देश के ये हालात कभी किसी ने सोचा भी नहीं होगा। आज अगर सभी खाने की कमी से जूझ रहे हैं तो उसमें वहाँ की संस्कृति का बहुत बड़ा योगदान है। US और UK जैसे देशों में लोगों के जीने का मंत्र होता है “आज कमाओ-आज उड़ाओ”, ना तो वे कभी savings पर ध्यान देते हैं, और ना ही उनके पास कभी पूंजी होती है। इसके साथ ही आज जो हालात पैदा हुए हैं उसके लिए वहाँ का फैमिली सिस्टम भी जिम्मेदार है।
इन देशों में हर पीढ़ी एक अलग घर में रहना चाहती है, वो चाहते हैं कि उनके पास बढ़िया कार हो और वे हर weekend पर पार्टी करें, और इस चक्कर में वे अपनी कमाई से ज़्यादा खर्च कर बैठते हैं। साथ ही अपने परिवार के सदस्यों से दूर होते चले जाते हैं। और फिर जब कोरोना जैसे हालात आते हैं तो इनकी मदद के लिए कोई नहीं होता है। Financial Times की एक रिपोर्ट के मुताबिक US और UK, दोनों देशों में सेविंग्स रेट negative है, यानि लोग कमाते कम हैं और खर्च ज्यादा कर रहे हैं।
आज की बचत, कल का सुख
जबकि भारत में ऐसा नहीं है। भारत में लोग कितने भी पश्चिमी देशों की नकल करें लेकिन वे अपने परिवारजनों से दूर नहीं होते हैं। चाहे किसी भी प्रकार की विपत्ति आए भारत में लोग अपने परिवार के सदस्यों के साथ भुखमरी की स्थिति में नहीं जाते हैं। भारत वासियों के बारे में कहा जाता है कि बेशक उन्हें इन्वेस्ट करना नहीं आता हो, लेकिन उन्हें savings करना बखूबी आता है। भारत के लोगों के पास अक्सर savings करने के कई कारण होते हैं। भारत में एक कहावत बड़ी मशहूर है और वह है “आज की बचत, कल का सुख”, इसी से समझा जा सकता है कि भारत के लोग अपनी सेविंग्स को लेकर कितने सजग हैं। यही नहीं परिवार का हर सदस्य बचत करता है। आज हालत यह है कि विकासशील और पश्चिमी देशों के मुक़ाबले भारत में तो एक महीने से ज़्यादा के लॉकडाउन के बाद भी लोग खुशी से अपने घरों में रह रहे हैं, जबकि UK और US जैसे अति-विकसित देशों में लोगों को खाने के लाले पड़ गए हैं। भारत के लोग अपने परिवारजनों के साथ घरों में बंद हो कर नए नए पकवान बना कर इंस्टाग्राम पर डाल रहे हैं तो अमेरिका में बच्चों के भोजन के लिए food distribution center की ओर दौड़ लगा रहे हैं। यहाँ यह कहना गलत नहीं होगा कि यह भारत की अद्वितीय परिवार प्रणाली है जो इस अंतर का कारण है।