जहां एक ओर चीन भारत से एलएसी के मुद्दे पर आँखें तरेर रहा है, तो वहीं अब उसकी गुंडई का मुंहतोड़ जवाब देने के लिए जापान ने भी कमर कस ली है। वर्षों में पहली बार जापान ने स्पष्ट किया है कि चीन द्वारा सीमा लांघने पर जापान अपनी रक्षा में चीन पर घातक हमले करने से पहले एक बार भी नहीं सोचेगा।
मीडिया से बातचीत के दौरान जापान के रक्षा मंत्री तारो कानो ने बताया, “हमें विश्व को इस बात से अवगत कराना पड़ेगा कि जापान के आसपास अभी क्या चल रहा है”। ये बयान इसलिए भी अहम माना जा रहा है क्योंकिJapan ने अभी हाल ही में लॉकहीड मार्टिन (Lockheed Martin) के साथ होने वाली एक बहुचर्चित डील को हाल ही में ठुकरा दिया था।
दरअसल, लॉकहीड मार्टिन Japan को काफी सस्ते में एयर डिफेंस के लिए एक मजबूत सिस्टम देने वाला था। परंतु जापान के अकीटा और यामागुची क्षेत्रों ने इसका विरोध करते हुए कहा कि इस सिस्टम के सक्रिय होने पर इसके कुछ पार्ट्स रिहायशी इलाकों में भी गिर सकते हैं।
ऐसे में जापान का राष्ट्रीय सुरक्षा परिषद चीन को सबक सिखाने के लिए किफ़ायती, पर असरदार विकल्प की तलाश कर रहा है। जब pre emptive strikes का प्रश्न उठा, तो तारो कानो ने उत्तर दिया, “जब चर्चा होगी, तो हम किसी विकल्प को बाहर नहीं रख रहे हैं”।
यह जापान के पारंपरिक ‘sword and shield’ पद्वति से काफी भिन्न है। हो भी क्यों न, आखिर वुहान वायरस के बहाने चीन ने एशिया में अपने पड़ोसियों का जीना जो हराम कर दिया है। जापान के विदेश मंत्री तोशिमित्सु मोटेगी ने इसी परिप्रेक्ष्य में कहा था, “यह वो समय नहीं जब ‘sword and shield’ से ही काम हो जाएगा।”
जापान का संविधान विश्व युद्ध द्वितीय के बाद से ही शांति को प्राथमिकता देता रहा है। लेकिन चीन की बढ़ती गुंडई के कारण अब Japan को भी अपना रुख बदलना पड़ रहा है। जापान ने स्पष्ट किया है कि समय आने पर वह आत्मरक्षा में शत्रुओं के अड्डों को ध्वस्त करता है, जिसके लिए संविधान पूर्ण रूप से स्वीकृति देती है। 1956 में तत्कालीन जापानी प्रधानमंत्री ईचीरो हतोयामा ने कहा था, “मैं नहीं मानता क हमारा संविधान हमारे विध्वंस के लिए प्रतीक्षा करने को बाध्य करेगा”।
अब टोक्यो चीन को उसकी गुंडई के लिए मुंहतोड़ जवाब देने हेतु ऐसे शस्त्रों की व्यवस्था कर रहा है जिससे वह अपनी आत्मरक्षा बिना किसी समस्या के कर सके। जापानी प्रधानमंत्री शिंजों आबे और उनकी सरकार इसीलिए अपने ‘फ्री एंड ओपेन इंडो पैसिफिक’ रणनीति को और धार दे रही है, जिससे वह चीन के विरुद्ध वैश्विक गठबंधन में अपनी स्थिति ही मजबूत बना सके।
यह इसलिए भी अधिक आवश्यक है क्योंकि चीन इंडो पैसिफिक क्षेत्र में तीन स्थानों पर स्टेटस quo को बदलना चाहता है, चाहे वो हिमालय में भारत के साथ हो, दक्षिण चीन सागर में वर्चस्व को लेकर हो, या फिर पूर्वी चीन सागर में Japan के साथ ही क्यों न हो। चीन पूर्वी एशिया के साथ भारत को भी अपनी गुंडई से बहुत परेशान कर रहा है, और जापान भी इससे अछूता नहीं है ।
अभी हाल ही में जापान ने सेनकाकु द्वीप का नाम बदलने का निर्णय लिया है, जिससे चीन काफी बौखलाया हुआ है, और उसने जापान के क्षेत्र में घुसपैठ करने का भी प्रयास किया है। ऐसे में Japan अब चीन को उसकी हेकड़ी के लिए ऐसा जवाब देना चाहता है , जिसे चीन सालों साल न भूल पाये। अभी हाल ही में जापानी रक्षा मंत्री ने भारत और अन्य दक्षिण पूर्वी एशियाई देशों के साथ बातचीत में ये स्पष्ट किया है कि status quo को बदलने की हर नापाक हरकत का मुंहतोड़ जवाब देना ही पड़ेगा। अब लगता है जापान ने भी चीन को पटक पटक कर धोने के लिए कमर कस ली है।