हाल ही में कश्मीर घाटी में एक हिन्दू सरपंच अजय पंडिता की हत्या एक बार फिर हमें याद दिलाती है कि कश्मीर घाटी की समस्या सुलझाना इतना आसान नहीं। जिस तरह से अजय को बाइक सवार आतंकियों ने गोलियों से भून दिया था, उससे स्पष्ट है कि आतंकियों ने उसे सिर्फ इसलिए नहीं मारा क्योंकि वह भारतीय लोकतन्त्र का एक प्रतिनिधि था, बल्कि इसलिए भी मारा क्योंकि वह एक हिन्दू था, और कश्मीर के कुछ ‘ठेकेदारों’ की नज़रों में एक काफिर।
अजय पंडिता 2018 से ही बतौर सरपंच अनंतनाग के एक गाँव में तैनात थे, और काँग्रेस पार्टी के सदस्य थे। बता दें कि भाजपा द्वारा पीडीपी से सभी संबंध तोड़ने के बाद पंचायती चुनाव कराये गए थे, जिसका पीडीपी और नेशनल कॉन्फ्रेंस ने पूर्ण बहिष्कार किया था। ऐसे में अजय पंडिता जैसे कई सरपंच को कई क्षेत्रों में निर्विरोध चुना गया था, और ऐसे में अजय पंडिता की हत्या से कश्मीर घाटी में एक बार फिर समीकरण बिगड़ने का खतरा बना हुआ है। फिलहाल, अजय पंडिता के पीछे उसके माता पिता और उसकी निर्भीक बेटी है, जिसने खुलेआम प्रण लिया है कि वह अपने पिता के हत्यारों को बिलकुल भी नहीं छोड़ने वाली है।
Proud Daughter of #AjayPandita who was killed by Terrorists in Anantnag.
Nobody better than me can feel her pain, Dear Sister you are crying today i cried long back.
Stay Strong, There are thousands of ways to Fight back. See You Soon!
— Sajid Yousuf Shah (@TheSkandar) June 10, 2020
पर अजय पंडिता की हत्या क्यों हुई? क्या इसलिए, कि अब कश्मीर के ठेकेदारों के हाथ से उनका साम्राज्य खिसकता जा रहा है, या इसलिए कि पिछले कुछ महीनों में एक के बाद कई आतंकियों को भारतीय सेना ने नर्क भेजने का प्रबंध कर दिया है? अब तक 100 से ज़्यादा आतंकियों का हमारे जवानों ने संहार किया है, जिसमें से एक बुरहान वानी के बाद हिजबुल मुजाहिदीन का सरगना और दुर्दांत आतंकी रियाज़ नाइकू भी शामिल था। केवल अप्रैल और मई में ही कुल 44 आतंकी को पाताल लोक भेजा जा चुका है। अभी आधा जून भी नहीं बीता है और 15 से ज़्यादा आतंकी मारे जा चुके हैं। ऐसे में ये कहना गलत नहीं होगा कि बौखलाए हुए आतंकी एक बार फिर गैर मुस्लिमों पर हमला कर अपनी बौखलाहट जगजाहिर कर रहे हैं।
अब इस समस्या से कैसे निपटा जाये? इसके लिए पहले इस समस्या की जड़ों तक जाना पड़ेगा। क्या हमलावर पेशेवर आतंकी थे, या फिर वे महज कट्टर इस्लामी थे? कश्मीर घाटी में कट्टर इस्लाम कूट कूट के भरे हुए हैं, और गैर मुस्लिमों के लिए कश्मीरियों की नफरत किसी से नहीं छुपी है। निस्संदेह इन लोगों के विषैले सोच से निपटने में हमारे सुरक्षाबल सार्थक प्रयास कर रहे हैं, पर क्या उतना काफी है?
अभी जम्मू कश्मीर का स्थानीय प्रशासन क्या कर रहा है? दो महीने पहले अजय पंडिता ने सुरक्षा की मांग की थी, पर प्रशासन की लापरवाही के कारण अजय को अपनी जान से हाथ धोना पड़ा। अजय पंडिता की हत्या के बाद कई पंचायत सदस्य इस्तीफा देने की सोच रहे हैं, और क्यों न हो? जब सुरक्षा का कोई ठिकाना नहीं, तो कौन अपनी जान जोखिम में डालना चाहेगा?
अजय पंडिता की हत्या ने एक बार फिर से कश्मीर समस्या पर हमारी दुविधा को स्पष्ट रेखांकित किया है। यदि प्रशासन ने सिर्फ अनुच्छेद 370 के निरस्त होने के बाद कश्मीर के लिए आगे की नीति के बारे में कुछ ठोस कदम उठाए होते, तो कम से कम आज अजय पंडिता जीवित होते। अगर घाटी से कट्टरपंथी इस्लाम की विषबेल उखाड़ फेंकनी है, तो केवल एक कानूनी प्रावधान से काम नहीं चलेगा। इसके लिए एक सुनियोजित योजना के अनुसार आगे बढ़ना है।