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अमेरिका ने जर्मनी से फौज हटाने की बात क्या कहीं, मर्केल फूट-फूट कर रोने लगी

अब तो चीन या अमेरिका, कोई एक चुनने को मजबूर है जर्मनी

Abhinav Kumar द्वारा Abhinav Kumar
9 June 2020
in मत
अमेरिका ने जर्मनी से फौज हटाने की बात क्या कहीं, मर्केल फूट-फूट कर रोने लगी
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अमेरिका और जर्मनी के रिश्ते दिन प्रतिदिन खराब होते जा रहे हैं। जब से अमेरिका के राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रम्प द्वारा अपने NATO सजयोगी देश जर्मनी से अपने लगभग 10 हजार सेना को हटाने का फैसला किया तभी से तमाम तरह कि खबरे सामने आ रही है। अब ऐसा लगता है कि जर्मनी की एंजेला मर्केल की सरकार को अमेरिका का यह फैसला नहीं पसंद आया है और वह इसकी आलोचना कर रहे हैं।

चांसलर एंजेला मर्केल के सत्तारूढ़ कंजर्वेटिव ब्लॉक के एक सदस्य पीटर बेयर ने एक समाचार पत्र Rheinische को एक इंटरव्यू में कहा, “यह पूरी तरह से अस्वीकार्य है, खासकर जब से वॉशिंगटन में किसी ने अपने NATO सहयोगी जर्मनी को पहले से सूचित करने के बारे में नहीं सोचा है।”    

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यानि इस बयान से यह तो साफ पता चल रहा है कि जर्मनी और एंजेला मर्केल की सरकार को अमेरिका से बिना किसी सूचना के ही इतना बड़ा फैसला ले लिए गया है और अब इसी बात को लेकर मर्केल नाराज है। कुछ दिन पहले ही जर्मनी की विदेश मंत्री Heiko Maas ने कहा था कि जर्मनी के रिश्ते अमेरिका के साथ काफी कॉम्पलिकेटेड हैं। बता दें कि डोनाल्‍ड ट्रंप ने जून के अंत में जी-7 की बैठक बुलाई थी लेकिन इसमें शामिल होने से जर्मन चांसलर ने मना कर दिया था, तभी से ही अमेरिका के तेवर जर्मनी के लिए कुछ सख्‍त नजर आ रहे हैं।

सच तो यह है कि अमेरिका के सेना में कटौती करने से मर्केल की सरकार को बड़ा झटका लगा है। अमेरिका ने बड़ा झटका देते हुए जर्मनी से अपने करीब 10 हज़ार सैनिक निकालने का फैसला लेकर जर्मनी को यह साफ संदेश दिया है कि या तो जर्मनी अमेरिका के साथ हो सकता है, या फिर नहीं! यह सभी को पता है कि अमेरिका अभी सभी देशों पर चीन के खिलाफ जाने का दबाव बना रहा है, वहीं, जर्मनी का रुख चीन के लिए नर्म रहा था। इसी पर अमेरिका ने स्पष्ट संकेत दिया है कि जर्मनी की यह monkey balancing अब और नहीं चलने वाली है।

बता दें कि यूरोपीय देश जर्मनी में द्वितीय विश्व युद्ध के बाद से ही अमेरिकी सैनिक डटे हुए हैं। दूसरे विश्व युद्ध के बाद 1945 से 1955 तक लगभग 10 वर्षों तक जर्मनी मित्र देशों के कब्जे में रहा था, उसी दौरान अमेरिका, ब्रिटेन, फ्रांस, सोवियत संघ के लाखों सैनिक जर्मनी में तैनात थे। फ़िलहाल जर्मनी की बात करें तो वहां अभी करीब 34,500 अमेरिकी सैनिक तैनात हैं जबकि पूरे यूरोप में अमेरिकी सेना के एक दो नहीं बल्कि सात ठिकाने हैं। इन सात ठिकानों में से अकेले जर्मनी में पांच हैं जबकि अन्य दो इटली और बेल्जियम में हैं।  अमेरिकी आर्मी यूरोप का मुख्यालय शहर वीजबाडेन में स्थित है जोकि मध्य पश्चिमी जर्मनी के फ्रैंकफर्ट के पास है।  1990 में जब शीत युद्ध समाप्त हुआ तो अमेरिका ने भी अपने सैनिकों को  काम शुरू कर दिया।

अब अमेरिका जर्मनी से अपनी सेना में कटौती करेगी जिसके जर्मनी में अमेरिकी सैनिकों की संख्‍या 25,000 तक रह जाएगी। जर्मनी की सुरक्षा के लिए अमेरिकी सैनिकों को बड़ा अहम माना जाता है।

लेकिन कोरोना तथा अन्य मामलों पर चीन को सबक सिखाने के लिए अमेरिका अपने साथियों पर दबाव बनाने की भरपूर कोशिश कर रहा है। इसके साथ ही अमेरिका ने यह भी साफ कर दिया है कि वह ऐसे किसी भी “साथी” को बर्दाश्त नहीं करेगा जो चीन के प्रति नर्म रुख दिखाएगा। जर्मनी के खिलाफ अमेरिका का यह कदम इसलिए भी बड़ा महत्वपूर्ण है, क्योंकि जर्मनी NATO का बड़ा सहयोगी है। अमेरिका ने उन सभी देशों को कड़ा संदेश दे दिया है, जो अभी भी चीन को लेकर नर्म रुख दिखा रहे हैं। एंजेला मर्केल की सरकार द्वारा इस तरह से अमेरिका की आलोचना करने से कुछ नहीं होने वाला।

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