यूरोपीय संघ आजकल एक identity crisis से जूझ रहा है। इसी बारे में पिछले कुछ महीनों से फ्रांस के राष्ट्रपति Emmanuel Macron आगाह करते आ रहे हैं। जब यूरोप पर वुहान वायरस का प्रकोप छाया हुआ था, तब मैक्रोन ने बताया था, “यहाँ पर जो सबसे अहम चीज़ बचानी है, वो है यूरोपीय परियोजना का अस्तित्व”।
इसमें कोई दो राय नहीं है कि Emmanuel Macron ने अपने आप को यूरोपीय संघ के वास्तविक अध्यक्ष के तौर पर सिद्ध करने का प्रयास किया है, वो भी ऐसे समय में, जब यूरोपीय संघ अपने सबसे भीषण संकट से जूझ रहा है। ब्रिटेन अब इस ग्रुप का हिस्सा नहीं है और इटली, ग्रीस एवं स्पेन जैसे देश वुहान वायरस के प्रकोप से अपने आप को उबारने में लगे हुए हैं। इसके अलावा बतौर संघ अध्यक्ष एवं जर्मन प्रधानमंत्री एंजेला मर्केल की अक्षमता यूरोपीय संघ को बर्बादी की ओर धकेल रहा है ।
ऐसे में Emmanuel Macron ही इकलौते ऐसे विकल्प हैं, जिन्हें वास्तव में यूरोपीय संघ की कमान संभाल लेनी चाहिए, क्योंकि वे स्वयं इस स्थिति में यूरोपीय संघ के संकट दूर करने के लिए उत्सुक है। वहीं दूसरी ओर एंजेला मर्केल कोई भी अहम बदलाव करने में आनाकानी कर रही हैं, और वे 2021 में अपने भावी रिटायरमेंट की ओर अधिक ध्यान दे रही हैं।
सच कहें तो एंजेला मर्केल अभी भी पुराने सिद्धांतों पर चलने वाली वो राजनीतिज्ञ है, जिनके लिए आज भी globalization सर्वोपरि है, विशेषकर ऐसे समय में, जब इस विचार को पूरी दुनिया में नकारा जा रहा है। जहां एक ओर दुनिया चीन को वुहान वायरस फैलाने के लिए घेरने को तैयार है, तो वहीं एंजेला मर्केल चीन को गले लगाना चाहती हैं।
इसके अलावा एंजेला मर्केल की अमेरिकी राष्ट्रपति ट्रम्प के लिए दुर्भावना भी किसी से छुपी नहीं है। जब से डोनाल्ड ट्रम्प अमेरिका के राष्ट्रपति बने हैं, तभी से एंजेला मर्केल उनसे चिढ़ी हुई है। इसके अलावा एंजेला मर्केल के नेतृत्व में ईयू ने बीजिंग को गले लगाने और वुहान वायरस के लिए उसे जवाबदेह ठहराने से बचाने में कोई कसर नहीं छोड़ी है। यही नहीं, ईयू चीन द्वारा हाँग काँग, तिब्बत और शिंजियांग में स्थानीय जनता पर हो रहे अत्याचारों पर भी कोई एक्शन लेने को तैयार नहीं है।
वहीं दूसरी ओर फ्रेंच राष्ट्रपति Emmanuel Macron ने न केवल चीन और उसकी औपनिवेशिक मानसिकता के विरुद्ध मोर्चा संभाला है, अपितु वुहान वायरस को दुनिया भर में फैलाने के लिए स्पष्ट रूप से चीन को आड़े हाथों लिया है। अप्रैल में फाइनेंशियल टाइम्स को दिये एक साक्षात्कार में उन्होंने कहा था, “देखिये, हमें इतना भी नादान नहीं होना चाहिए कि हमें ये लगे कि चीन ने इस महामारी को बेहतर तरीके से संभाला है। ऐसी कई चीज़ें हैं, जिनके बारे में हम नहीं जानते होंगे”। इतना ही नहीं, मैक्रोन ने कुछ ही दिन पहले रूसी राष्ट्रपति व्लादिमिर पुतिन के साथ वीडियो कॉन्फ्रेंस कर यह भी सिद्ध किया कि आवश्यकत पड़ने पर वे विरोधियों को भी अपना मित्र बना सकते हैं, और लीब्या के साथ-साथ कई अन्य मुद्दों पर सकारात्मक बातचीत भी की।
इसके अलावा फ्रेंच राष्ट्रपति Emmanuel Macron डोनाल्ड ट्रम्प को भी अपना पूर्ण सहयोग दे रहे हैं, और अप्रैल से ही दोनों वुहान वायरस से उबरने और चीन को इसके लिए जवाबदेह ठहराने के अभियान में युद्धस्तर पर काम करने के लिए तैयार हैं। इसी परिप्रेक्ष्य में उन्होंने एक बार ट्वीट भी किया, “डोनाल्ड ट्रम्प के साथ काफी सकारात्मक बातचीत हुई। COVID 19 से बेहतर तरीके से निपटने में हम हर प्रकार से सहयोग करने को तैयार हैं, चाहे वो वैज्ञानिक तौर पर, स्वास्थ्य के क्षेत्र में हो या फिर आर्थिक मोर्चे पर ही क्यों न हो”।
Excellent discussion with @realDonaldTrump. To better deal with Covid-19, we are ready to coordinate our scientific, health and economic response within the framework of the US G7 Presidency.
— Emmanuel Macron (@EmmanuelMacron) March 4, 2020
जहां Emmanuel Macron ट्रम्प के साथ साझेदारी कर विश्व को जल्द ही इस संकट से उबारना चाहते हैं, तो वहीं एंजेला मर्केल का मुख्य ध्येय यूरोपीय संघ को पश्चिमी दुनिया का नया प्रतिनिधि और खुद को पश्चिम के नेता के रूप में ऊपर ले जाना है। इसके लिए वह चीन से भी हाथ मिलाने को तैयार हैं।
परंतु मर्केल को यह कतई नहीं भूलना चाहिए कि वो हवा के विपरीत चलने का प्रयास कर रही हैं। दुनिया अभी globalization से दूर भाग रही है, स्पष्ट है कि वर्तमान में बढ़ते संरक्षणवाद, और राष्ट्रवादी भावनाओं के बीच globalization व्यवस्था को बचाना लगभग असंभव है। ऐसे में मर्केल पश्चिमी देशों की इकलौती आवाज़ नहीं बन सकतीं। मर्केल की ज़िद के कारण भविष्य में यूरोपीय संघ शी जिनपिंग के हाथ की कठपुतली बनकर रह जायेगा और वैश्विक चीनी वर्चस्व की परियोजना में चीन इसका फायदा उठायेगा। ऐसे में Emmanuel Macron जैसे नेता के लिए ये उचित समय है कि वो EU की कमान संभाले और उसे वर्तमान संकटों से उबारे, वरना मर्केल के नेतृत्व में यूरोपीय संघ का बर्बाद होना तय है।